श्री लक्षचंडी महायज्ञ: ब्राह्मणों-आचार्यों के मंत्रो से गूंजी नगरी

-पीठापति श्री स्वतमाननेंद्र सरस्वती स्वामि एवं श्रेध्य श्री श्री गुमटी वाली माता से तरुण मिश्र ने लिया आर्शीवाद

कुरुक्षेत्र। गांव गुमटी मंदिर में यज्ञ की परंपरा 72 वर्षों से चली आ रही है, लेकिन पहली बार श्री लक्षचंडी महायज्ञ का आयोजन हो रहा है, जिसमें 22 राज्यों से पहुंचे ब्राह्मण मंत्रोच्चार कर रहे हैं। वहीं विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु भी पहुंचे हैं, जिसके यज्ञ नगरी में भारतीय संस्कृति की अद्भुत छटा दिख रही है। सोमवार को अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्र महायज्ञ में सम्मलित हुए। साथ ही विशाखा श्री शारदा पीठम के उत्तर पीठापति श्री स्वतमाननेंद्र सरस्वती स्वामि एवं श्रेध्य श्री श्री गुमटी वाली माता श्री (श्री देवा) के दर्शन कर आर्शीवाद लिया।

श्री गुमटी वाली माता का कहना है कि यजुर्वेद प्रथम अध्याय अनुसार यज्ञ ही सर्वोत्तम कर्म है। इसे ध्यान में रखते हुए ही श्री गुमटी मंदिर में 72 वर्षों से यज्ञों का आयोजन हो रहा है। वहीं पहली बार हो रहे श्री लक्षचंडी महायज्ञ में दक्षिणी भारत के केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक से 400 ब्राह्मण व उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश व चण्डीगढ़ से तथा पश्चिमी भारत के गुजरात, राजस्थान व महाराष्ट्र के अलावा पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार तथा झारखंड से करीब 1800 ब्राह्मण पहुंचे हैं। श्रीश्री 1008 माता प्रकाश देवी द्वारा वर्ष 1950 में इसकी स्थापना की गई थी।

उन्होंने बताया महायज्ञ में स्थापित किए गए कलश में देश के 21 तीर्थों, 11 नदियों, 11 शक्तिपीठ और गंगा सागर समुद्र का जल शामिल है। अयोध्या से सरयू नदी का जल, कामाख्या से ब्रह्मपुत्र का जल, हिमाचल के सभी शक्तिपीठ ज्वाला जी, चिंतपुरनी, चामुण्डा देवी, नैना देवी और व्र्रजेश्वरी देवी जी से जल, भुवनेश्वर जगन्नाथ पूरी के मंदिर के कूप से जल, भुवनेश्वर जी से लिंगराज जी का जल, कटक चंडी शक्तिपीठ जल और मां वैष्णो देवी जी से जल लाने में उन्हें महीनों का समय लगा था।
पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्र ने कहा कि इस महायज्ञ से गांव गुमटी ही नहीं अपितु आसपास की धरती पवित्र हो जाएगी। उन्होंने श्री शारदा पीठम के उत्तर पीठापति श्री स्वतमाननेंद्र सरस्वती स्वामि एवं श्रेध्य श्री श्री गुमटी वाली माता श्री (श्री देवा) और समस्त मैनेजमेंट को इस महायज्ञ के सफल आयोजन के लिए बधाई दी।

उन्होंने कहा गांव गुमटी में स्थित ऐसा अलौकिक दृश्य उन्होंने पहले कभी नहीं देखा है। इस तरह का आयोजन शायद पहली बार देखा गया हैं। जिस तरह से ब्राह्मण समाज के उत्थान के लिए कार्य किए जा रहें है, वह सराहनीय हैं। यज्ञ भारतीय संस्कृति का प्राण तथा वैदिक धर्म का सार है। यज्ञ के द्वारा मानव जीवन के लिए प्रेरणा दी गई है। यज्ञ ही संसार में श्रेष्ठतम कर्म है और संसार का श्रेष्ठतम कर्म यज्ञ ही है। तरुण मिश्र ने कहा यज्ञ को केवल भौतिक कर्मकांड न समझा जाएं अपितु इसको आध्यात्मिक रूप से समझकर इसका आध्यात्मिक अनुष्ठान आवश्यक है। वस्तुत: यज्ञ एक आंतरिक प्रक्रिया है। भौतिक दृष्टि से यज्ञ का महत्व अत्यधिक है इसके साथ ही आंतरिक, वैचारिक, मानसिक प्रदूषण समाप्त करने का अमोघ उपाय है।