केदारनाथ में महादेव की आत्मिक अनुभूति होती है: आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद

  • केदारनाथ का कपाट खुलते ही धाम में उमड़ा आस्था का सैलाब
  • महादेव के जयकारों से गूंजी केदारपुरी, 18 हजार श्रृद्धालुं बने साक्षी 

उदय भूमि संवाददाता
रुद्रप्रयाग। द्वादश ज्योतिलिंगों में से एक उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम के कपाट मंगलवार (25 अप्रैल) को दर्शन के लिए खोल दिए गए। केदारनाथ मंदिर के कपाट पूरे विधि विधान के साथ खोले गए, इस दौरान मंदिर को करीब 20 क्विंटल फूलों से सजाया गया। मंदिर के कपाट जिस वक्त खोले गए उस समय करीब 18 हजार श्रद्धालु पहुंचे थे। हालांकि, मौसम खराब रहने की आशंका के मद्देनजर सोमवार को श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। अब अगले छह महीने तक श्रद्धालु मंदिरों के दर्शन कर सकेंगे। कपाट खुलते ही धाम महादेव के जयकारों से गूंज उठा। वहीं, तीर्थयात्री ढोल नगाड़ों की थाप पर जमकर झूमे। सुबह पांच बजे कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। सबसे पहले धार्मिक परंपराओं के निर्वहन के साथ-साथ बाबा केदार की पंचमुखी भोग मूर्ति चल उत्सव विग्रह डोली में विराजमान होकर रावल निवास से मंदिर परिसर में पहुंची। इसके बाद रावल एवं श्री केदारनाथ मंदिर समिति के पदाधिकारियों की मौजूदगी में प्रशासन की ओर से मंदिर के कपाट खोले गए। इसके बाद मुख्य पुजारी ने गर्भ गृह में भगवान केदारनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की। इसके बाद ग्रीष्मकाल के लिए केदारनाथ के दर्शन शुरू हो गए।

आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने बताया कि केदारनाथ मंदिर में शिव अन्य ज्योतिर्लिंर्गों की भांति लिङ्ग रूप में नहीं विराजे हैं बल्कि अपने प्रिय हिमालय के शिखर-सा ही नैसर्गिक और परम निराकार रूप धरा है। न परम्परागत जलाधारी है न पारम्परिक पिण्ड। मानो हिमांचल में बसने से पहले भगवान ने ही अपने स्वरूप की समस्त लौकिक मान्यताओं का विर्सजन कर विशुद्ध प्रकृत भाव और भूषा में अभिव्यक्त होने का निश्चय किया हो। यही कारण है कि शेष शिवालयों में जहां शिवजी के ‘दर्शन’ होते हैं, वहीं अकेले केदारनाथ में उन महादेव की आत्मिक अनुभूति होती है। परम, दिव्य, अनुपम और अलौकिक शिवत्व की अकथनीय शिवानुभूति। लगता है मंदाकिनी के कलकल नाद की ताल पर हिमशृंगों से उठती ओंकार नाद की गूंज के बीच स्वयं शिव ही पद्मासन लगाए ध्यानस्थ हैं। केदार शिवजी के असंख्य नामों में से एक हैं, मगर संस्कृत में इसका एक अर्थ क्यारी भी है।

सम्भव है चारों ओर हिम शिखरों के बीच क्यारी-सी प्यारी भूमि पर विराजमान होने के कारण यहां भगवान केदारनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुए हों। कदाचित क्यारी-सी न्यारी घाटी होने से ही यह क्षेत्र केदार घाटी कहलाया। आसपास के शृंगों का सम्बोधन भी केदार है। हिमालय की गोद में स्थित यह शिवालय अत्यंत प्राचीन है और अनजाने काल से पूजित है। इसकी एक और विशेषता है, जो इसे अन्य ज्योतिलिंर्गों से अलग पहचान देती है। वह यह कि हिम क्षेत्र होने के कारण यह वर्ष में छह मास ही दर्शनार्थ खुलता है। शीतकाल में बर्फ जमने के कारण मंदिर के पट प्राय: नवम्बर के दूसरे सप्ताह में बंद हो जाते हैं और फिर छह मास बाद अप्रैल-मई में शुभ मुहूर्त देखकर ही पुन: दर्शन के निमित्त खुलते हैं। इस तरह आधे वर्ष मनुष्य और आधे वर्ष देवभूमि के देवता केदारनाथ की पूजा करते हैं।

केदार सभा के अध्यक्ष पंडित राजकुमार तिवारी ने बताया कि मंगलवार की सुबह 06:20 मिनट पर केदारनाथ धाम के कपाट दर्शनार्थियों के लिए खोल दिए गए थे। अत्यधिक ठंड के बावजूद मंदिर के कपाट खुलने का साक्षी बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुंचे थे। केदारनाथ धाम में रुक- रुक कर बर्फबारी व बारिश को देखते हुए उन्होंने श्रद्धालुओं से यात्रा शुरू करने से पूर्व प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निदेर्शों का पालन करने और प्रतिकूल मौसमी दशाओं के मद्देनजर केदारनाथ धाम में निवास की व्यवस्था पहले से सुनिश्चित करने की अपील भी की गई थी। वहीं इस दौरान महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने केदारनाथ सभा के अध्यक्ष पंडित राजकुमार तिवारी के साथ बाबा केदारनाथ के दर्शन कर पूजा अर्चना की।

अध्यक्ष ने बताया हिमालयी राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम विश्व की आस्था एवं आध्यात्मिक चेतना का पर्याय है, जहां जनमानस देवत्य की प्राप्ति के साथ-साथ देवभूमि के कण-कण में भगवान शंकर की उपस्थिति का आभास पाता है। यह स्थान धार्मिक महत्व के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक आभा के लिए भी वैश्विक पटल पर भारत के आध्यात्मिक ऐश्वर्य एवं सौंदर्य को अंकित करता है। इसी सुरम्य परिवेश में भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग केदारनाथ स्थित है। प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंर्गों में से एक अपने रुद्र रूप में भगवान शिव 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिव के रूप में विराजमान रहते हैं।