कमी शिक्षा व्यवस्था में नहीं, जनसंख्या के कारण कई समस्याएं: प्रगति चौधरी

शिक्षित युवा सभ्य समाज का निर्माण करते हैं और सभ्य समाज से ही समृद्ध देश का निर्माण होता है। शिक्षा हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है। गोलियां सिर्फ आतंकवादियों को मार सकती है लेकिन शिक्षा पूर्ण आकंतवाद को खत्म कर सकता है। जिस देश की शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है, वह देश बहुत तेज गति से विकास करता है। प्रत्येक देश के विकास में उस देश की शिक्षा प्रणाली का बहुत बड़ा योगदान होता है। जिस ईमारत की बुनियाद मजबूत हो वह कभी कमजोर नहीं होता है। इसी तरह बच्चों की अच्छी शिक्षा देश की बुनियाद है। आज के समय में भी भारत की शिक्षा प्रणाली में सुधार को लेकर चर्चाएं हो रही है। कुछ लोगों का मानना है कि भारत की शिक्षा प्रणाली में बहुत सी कमियां हैं। ऐसे में पूरी शिक्षा प्रणाली को ही बदल ना चाहिये। वहीं कुछ लोगों भारत की शिक्षा प्रणाली को अच्छा मानते हैं और समय के साथ उसमें सुधार की बात कह रहे हैं। इन्हीं मुद्दों पर उदय भूमि संवाददाता ने गौतमबुद्धनगर ग्राम चिपियाना बुजुर्ग स्थित डॉल्फिन पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या प्रगति चौधरी से बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश।

शिक्षाविद् प्रगति चौधरी
प्रधानाचार्या, डॉल्फिन पब्लिक स्कूल

प्रश्न: देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली को लेकर आपके क्या विचार हैं। क्या इसे बदलने की जरूरत है?
उत्तर: मेरा मानना है कि देश की शिक्षा व्यवस्था में कोई कमी नहीं है। शिक्षा प्रणाली काफी अच्छी और बेहतर है। भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। पढ़े-लिखकर युवा विदेशों में भी महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। भारतीय युवा अपनी जिम्मेदारी का बखूवी निर्वहन कर रहे हैं। जनसंख्या अधिक होने के कारण कुछ समस्याएं हैं। लेकिन इसके लिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था को दोष नहीं दिया जाना चाहिए। जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से कोई भी सरकार सभी की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकती है। अधिक आबादी यदि किसी देश की ताकत होती है तो वह परेशानी भी पैदा करती है। आबादी के लिहाज से संसाधनों की कमी है।

प्रश्न: कोरोना संकट ने किस तरह से शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित किया है और भविष्य में इसका क्या असर दिखाई देगा?
उत्तर: कोरोना संक्रमण काल में शिक्षा व्यवस्था काफी प्रभावित हुआ है। ऑनलाइन क्लास पढ़ाई का विकल्प जरूर है, मगर सही मायने में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में यह बाधक है। ऑनलाइन क्लास के दौरान बच्चों का व्यक्तित्व विकास और लीडरशिप स्कील पर काम नहीं हो सका। पढ़ाई-लिखाई से इतर स्पोर्ट्स, गायन, नृत्य जैसी गतिविधियों से बच्चों को दूर होना पड़ा। जबकि यह चीजें बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने में सहयोग करती हैं। स्कूल में बच्चों को सिर्फ किताबी शिक्षा ही नहीं दी जाती बल्कि उनके चरित्र का भी निर्माण किया जाता है। जहां तक भविष्य में असर का सवाल है तो इसको लेकर यही कहा जा सकता है कि शिक्षण व्यवस्था में किस तरह तकनीकि का उपयोग किया जा सकता है यह सब हमें कोरोना काल में देखने और समाने को मिला है। कोरोना काल में डॉल्फिन पब्लिक स्कूल ने उन अभिभावकों की पीड़ा को सही तरीके से जाना जो आर्थिक रूप से तंगी में थे। संस्थान स्तर पर उनकी हरसंभव मदद की गई। संस्थान ने आर्थिक रूप से परेशान अभिभावकों का चयन कर उन्हें फीस आदि में काफी रियायतें दीं।

प्रश्न: कहा जाता है कि हमारी शिक्षण व्यवस्था किताबी है और व्यवहारिकता से दूर है। ऐसे में शिक्षा पद्धति को किस तरह व्यवहारिक बनाया जा सकता है?
उत्तर: यह बात पूरी तरह सही भी नहीं है और पूरी तरह गलत भी नहीं है। हर व्यवस्था में समय के साथ बदलाव होते रहना जरूरी है। बच्चे कच्चे मिट्टी के समान होते हैं उन्हें जिस तरह से ढ़ाला जाएगा वह उसी तरह से परिवर्तित होंगे। स्कूलों में किताबी शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा और संस्कार दिये जाते हैं। मैं भी इस बात की पक्षधर हूं कि स्कूलों की उच्च कक्षाओं तकनीकि शिक्षा को समाहित किया जाये। जहां तक छोटे बच्चों की शिक्षा का सवाल है तो हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि बच्चों से उनका बचपन दूर ना हो।

प्रश्न: आपके अनुसार शिक्षा का क्या उद्देश्य है? शिक्षा किसी बच्चे को जीवन के लिए कैसे तैयार करती है?
उत्तर: शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को भविष्य का ऐसा नागरिक बनाना है जो तर्कशील हो, मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण हो, अपने आसपास के नागरिक समाज के प्रति जागरूक रहे। शिक्षा बच्चों को विवेकशील और गुणवान बनाता है। बेहतर शिक्षा हमारे जीवन उपार्जन के तरीकों को बेहतर बनाता है। मेरा मानना है कि शिक्षा एक बृहद दृष्टिकोण और विश्लेषण करने की क्षमता देती है।

प्रश्न: बच्चों के जीवन में शिक्षकों के क्या दायित्व होते हैं?
उत्तर: बिल्कुल। शिक्षक बच्चों के बेहद करीब होते हैं और शिक्षक की बातों का बच्चों पर व्यापक असर पड़ता है। मेरे मानना है कि शिक्षकों को अपनी सीखी हुई बातों को छात्र-छात्राओं के साथ सांझा करना चाहिये। शिक्षक एक पथ प्रदर्शक की तरह होता है जो छात्र-छात्राओं को सही दिशा में चलने की राह दिखाता है।

प्रश्न: बच्चे स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं। उनकी इस जिज्ञासा को आप क्लासरूम में किस तरह अभिव्यक्त करने का अवसर देती हैं?
उत्तर: मैं मानती हूं कि बच्चे स्वभाव से ही जिज्ञासु होते हैं। ऐसे में मेरे स्कूल के सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं की कोशिश रहती है कि बच्चों के बीच से आने वाले सवालों का तार्किक ढंग से जवाब देकर उनकी जिज्ञासा को शांत करें। सवाल करने वाले बच्चों को कभी हतोत्साहित नहीं करना चाहिये।

प्रश्न: क्या हमारी स्कूलों की पढ़ाई नंबर गेम में उलझी हुई है और नंबर भूत का आतंक बच्चे और अभिभावक पर भी हावी है?
उत्तर: ऐसा नहीं है। जहां तक टॉपर का सवाल है तो यह सच्चाई है कि नंबर-1 पर तो एक ही बच्चा आएगा। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि जिसके नंबर-2 हैं या नंबर-3 है वह खराब है। ऐसा भी संभव है कि नंबर के मामले में जो नंबर-5 पर है ओवर ऑल परफार्मेंस में वह नंबर-1 हो। नंबर के साथ साथ व्यवहार और तार्किक ज्ञान ही हमें भविष्य के लिए तैयार करता है। नंबर की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन हम सभी को विशेषकर अभिभावकों को समझना होगा कि नंबर ही सबकुछ नहीं होता है।

प्रश्न: सफलता के लिए संघर्ष कितना जरूरी है?
उत्तर: मेरा मानना है कि जिंदगी मे सफलता पाने के लिए संघर्ष करना बहुत जरूरी है। अगर बिना संघर्ष किए ही हमें सफलता मिल जाएं तो उस सफलता की असली पहचान हमें कैसे होगी। इसलिए किसी भी परिस्थिति में डरें नहीं, हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला करें। परिणाम कोई भी हो वह सदैव आपकी मेहनत के अनुरूप ही होता है। याद रखिये की आपका सफल होने का संकल्प आपके किसी भी अन्य कार्य से ज्यादा महत्वपूर्ण है। भविष्य को ध्यान में रखकर स्कूल में छात्रों के लिए अनेक योजनाएं बनाई जा रही हैं, जो उचित समय पर लागू की जाएंगी। अनुशासन व श्रम ही व्यक्तित्व की नींव है।

प्रश्न: महिला दिवस की शुभकामनाएं। महिला दिवस को लेकर आप क्या कहेंगे?
उत्तर: महिला दिवस विशेष दिन है। लेकिन मेरा मानना है कि हर दिन नारी का दिन है। महिलाओं का जागरूक होना बेहद जरूरी है। बगैर जागरूकता के आप आगे नहीं बढ़ सकते। अपनी समस्याओं को दूर भी नहीं किया जा सकता। किसी भी देश की तरक्की तभी संभव है जब उस देश की महिलाओं का विकास सही से किया जाए। महिलाओं और पुरुषों को समान पहचान और अधिकार देने के लिए आज भी इतनी मेहनत करनी पड़ रही है। अभी भी भारत में ऐसे कई गांव हैं। जहां की महिलाओं का जीवन घर की चारदीवारी तक सीमित है। देश में कामकाजी महिलाओं की संख्या भी अन्य देशों के मुकाबले कम हैं। देश में कई पढ़ी-लिखी महिलाएं भी अपने हक के लिए कुछ भी नहीं कर पा रही हैं।

प्रश्न: डॉल्फिन पब्लिक स्कूल क्षेत्र का नामचीन स्कूल है। स्कूल की शिक्षण व्यवस्था को लेकर आप क्या कहेंगे?
उत्तर: डॉल्फिन पब्लिक स्कूल का उद्देश्य छात्र-छात्राओं की बहुमुखी प्रतिभा का विकास करना है। छात्रों के लिए बेहतर से बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए हम संकल्पबद्ध है। डॉल्फिन पब्लिक स्कूल के प्रत्येक छात्र के बहुआयामी व्यक्तित्व को तराशकर, उन्हें सामान्य से विशिष्ट बनाने की नीति ही हमारा उद्देश्य है। इन्हीं उद्देश्य के साथ हमारे यहां शिक्षा दी जाती है। यहां से पढ़ाई कर चुके बच्चे वर्तमान में देश के कई बड़े-बड़े क्षेत्रों में उच्च पदों पर आसीन हैं और देश सेवा कर रहे हैं।

परिचय
शिक्षाविद् प्रगति चौधरी पिछले 17 सालों से शिक्षा जगत में अह्म भूमिका निभा रही हैं। डीडीपीएस गोविंदपुरम में 13 वर्षों तक उप-प्रधानाचार्या की जिम्मेदारी निभाई। विगत चार वर्षों से गौतमबुद्धनगर के चिपियान बुजुर्ग स्थित डॉल्फिन पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्या के पद पर आसीन हैं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) से स्रातक एवं स्रातकोत्तर की पढ़ाई की है। डीयू से फिलोस्पी में ग्रेजुएट हैं। पढ़ाई के प्रति बचपन से उनकी रूचि रही है। शादी के बाद टीचिंग में कैरियर बनाने में सासु मां ने उनकी हरसंभव मदद की। इसके लिए वह परिवार का शुक्रिया अदा करती हैं। खासकर लड़कियों को शिक्षित किए जाने की दिशा में वह निरंतर प्रसासरत हैं। उनका कहना है कि पढ़ाई के प्रति बच्चों में रूचि पैदा करने के लिए नए-नए तरीके अपनाने चाहिए। प्रिसींपल प्रगति चौधरी बताती हैं कि अपने कार्य से अपनी सोच को सही दिशा देने एवं अपने शहर में उच्च स्तरीय शैक्षणिक वातावरण से पूर्ण शैक्षणिक संस्थान के निर्माण की दृष्टि से डॉल्फिन स्कूल से जुड़ी हूॅ।