सुख-सौभाग्य, समृद्धि, संतान और सुखी जीवन की कामना के लिए होती है छठ पूजा

गौरव पांडेय
(लेखक वरिष्ठ स्वस्थ्यविद्, सामाजिक, पर्यावरण एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।) इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा 28 अक्टूबर 2022 से शुरू होकर 31 अक्टूबर को समाप्त होगी। यह पूजा पूरे चार दिनों तक चलती है। इसमें नहाय खाय से पर्व की शुरुआत होती है और पारण के बाद पूजा संपन्न होती है। यह महापर्व यूपी, बिहार और झारखंड समेत देशभर में मनाया जाता है। यह त्योहार देश-विदेश तक मनाया जाता है। खासकर भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में महापर्व छठ की धूम देखने को मिलती है। इसमें भगवान सूर्यदेव की अराधना की जाती है जिन्हें हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है। षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।

साल में दो बार छठ का त्योहार मनाया जाता है। पहला चैत्र शुक्ल षष्ठी को और दूसरा कार्तिक माह की शुक्ल षष्ठी को। यह पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है, जिसमें 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, बिहार के मुंगेर जिले में सीता मनपत्थर (सीता चरण) सीताचरण मंदिर है जो मुंगेर में गंगा के बीच में एक शिलाखंड पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने मुंगेर में छठ पर्व मनाया था। इसके बाद ही छठ महापर्व की शुरुआत हुई। इसीलिए मुंगेर और बेगूसराय में छठ महापर्व पूरी श्रद्धा एवं धूमधाम से मनाया जाता है। लोकमान्यता के अनुसार, सुख-सौभाग्य, समृद्धि, संतान और सुखी जीवन की कामना के लिए छठ पूजा की जाती है। छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। इसके बाद खरना, अर्घ्य और पारण किया जाता है। छठ पूजा में सूर्यदेव की अराधना का विशेष महत्व होता है। यह ऐसा पर्व होता है, जिसमें न केवल उगते सूर्य बल्कि अस्त होते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही इस पर्व का समापन होता है।

नहाय-खाए से होती है छठ पूजा की शुरुआत
छठ पूजा में व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं, इस कारण यह व्रत काफी कठिन व्रत माना जाता है। पूजा की शुरुआत आज नहाए-खाए से होगी। जिसमें व्रती गंगा स्नान कर गंगाजल या किसी भी नदी के पवित्र जल से प्रसाद बनाएंगी, जिसमें सेंधा नमक का प्रयोग किया जााता है। पूरी पवित्रता के साथ लौकी और चने की दाल की सब्जी और चावल का विशेष तौर पर प्रसाद बनाया जाता है। व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के अन्य सदस्य प्रसाद ग्रहण करते है। इस व्रत में षष्ठी मैया और सूर्यदेव की पूजा की जाती है। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व संपन्न होता है।

दूसरे दिन खरना की पूजा
नहाए-खाए के अगले दिन, यानी छठ पूजा के दूसरे दिन शाम को पूजा को खरना कहते हैं। इसमें व्रती सुबह से उपवास रखकर शाम को लकड़ी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर, पूड़ी या रोटी बनाती हैं। घी लगी रोटी और खीर के साथ मौसमी फल से भगवान भास्कर को प्रसाद अर्पण करती हैं और फिर व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के बाद अन्य लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।

तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
खरना के बाद व्रती का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। खरना के अगले दिन व्रती नदी या तालाब किनारे सपरिवार जाती हैं और नदी में खड़े होकर विधि-विधान से अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन अर्घ्य के सूप को फल, ठेकुआ मौसमी फल और फूल से सजाया जाता है। अर्घ्य के बाद लोग या तो घर लौट आते हैं या घाट पर ही रातभर रहते हैं। छठ पूजा का पहला अर्घ्य इस साल 30 अक्टूबर 2022 को दिया जाएगा। इस दिन सूर्यास्त की शुरूआत 05 बजकर 34 मिनट से होगी।

चौथे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य
छठ पूजा के चौथे दिन व्रती नदी या तालाब में या कहीं भी जल में खड़े होकर उदीयमान सूर्य को विधि-विधान से सजे हुए सूप के साथ अर्घ्य देती हैं और इसी के साथ लोक आस्था का पर्व छठ संपन्न हो जाता है। व्रती पारण कर छठ पूजा का व्रत तोड़ती हैं और इस तरह से छठ पूजा की समाप्ति होती है।
छठ पर्व को महापर्व कहा जाता है, क्योंकि इस पर्व को आस्था और श्रद्धापूर्वक किया जाता है। यही कारण है कि आज देश से लेकर विदेशों में भी छठ पूजा मनाई जाती है।छठ पर्व में साफ-सफाई के नियमों का विशेष पालन करन होता है। छठी माई की पूजा में घर पर मांस-मंदिरा, लहसुन-प्याज और जूठन करना वर्जित होता है। छठ व्रत करने से घर पर सुख-शांति आती है। इस व्रत से संतान और सुहाग की आयु लंबी होती है।