कांग्रेस से अब ‘गुलाम’ ने पाई आजादी

सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चाहकर भी कोई करिश्मा नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस के गिरते ग्राफ से राष्ट्रीय स्तर पर जहां भाजपा को लाभ मिला है, वहीं राज्यों में क्षेत्रीय दल भी अपनी स्थिति मजबूत करने में सफल दिखाई दिए हैं। दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कांग्रेस को अलविदा कर दिया है।

कांग्रेस की बिगड़ी हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया है। पुराने एवं वरिष्ठ साथी उपेक्षा एवं अपमान के कारण निरंतर कांग्रेस का हाथ छोड़ रहे हैं। टूट-फूट का शिकार यह पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करने की बजाए भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़ी है। पुराने एवं कद्दावर नेताओं का कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला रूक-रूककर चल रहा है। लोकसभा एवं राज्यसभा में पार्टी सिकुड़ गई है। देश के कुछेक राज्यों को छोड़कर बाकी में हालत बद से बदतर है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चाहकर भी कोई करिश्मा नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस के गिरते ग्राफ से राष्ट्रीय स्तर पर जहां भाजपा को लाभ मिला है, वहीं राज्यों में क्षेत्रीय दल भी अपनी स्थिति मजबूत करने में सफल दिखाई दिए हैं। दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कांग्रेस को अलविदा कर दिया है। बेहद दुखी मन से आजाद ने यह कदम उठाया है। पार्टी को छोड़ने के साथ उन्होंने राहुल गांधी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। संगठन को मजबूत करने के पूर्व अध्यक्ष एवं वायनाड सांसद राहुल गांधी के सभी प्रयोग असफल रहे हैं।

राहुल गांधी की अपरिपक्वता
राजनीतिक अपरिपक्वता की वजह से वह समय-समय पर उपहास का कारण बनते हैं। गुलाम नबी आजाद के इस्तीफा देने से कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक हलचल है। उन्होंने देश की सबसे पुरानी पार्टी की मौजूदा स्थिति के लिए राहुल गांधी को कसूरवार ठहराया है। आजाद का गांधी परिवार से काफी पुराना नाता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के अलावा सोनिया गांधी तक के साथ उनके मधुर संबंध रहे हैं। कभी आयरन लेडी के नाम से मशहूर रहीं इंदिरा गांधी को भला कौन भूल सकता है। उन्हें राजनीति का अच्छा अनुभव था। बड़े और कड़े फैसले लेने में वह कभी हिचकिचाती नहीं थीं। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ काम कर गुलाम नबी आजाद ने भी काफी कुछ सीखा। मधुर व्यवहार की वजह से विपक्ष के साथ भी उनके प्रगाढ़ संबंध रहे।

गांधी परिवार के करीबी रहे आजाद
कांग्रेस से इस्तीफा देते समय समय आजाद ने अपने दिल पर पत्थर जरूर रखा होगा। अपने इस्तीफे में उन्होंने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक अपने करीबी संबंधों का उल्लेख कर उनकी नेतृत्व क्षमता की सरहाना की है। दरअसल राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद से कांग्रेस की हालत कमजोर होती चली गई। जनवरी 2013 में राहुल को कांग्रेस का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। उपाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने पार्टी में पहले से मौजूद समूचे परामर्श तंत्र को ध्वस्त कर दिया। वायनाड सांसद की अपरिपक्वता का सबसे ज्वलंत उदाहरण उस समय सामने आया था जब उन्होंने एक सरकारी अध्यादेश को फाड़ दिया था। इस हरकत के कारण उन्हें विपक्ष की आलोचना का सामना भी करना पड़ा था। 2019 के आम चुनाव के बाद से कांग्रस की हालात और खराब होती चली गई। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल ने हड़बड़ी में पद छोड़ दिया था।

कांग्रेस में रिमोट कंट्रोल मॉडल
बाद में सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया था। गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के साथ-साथ यूपीए सरकार पर भी निशाना साधने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। उन्होंने यूपीए की सरकार को रिमोट कंट्रोल से संचालित सरकार करार दिया है। कांग्रेस से जाते-जाते उन्होंने यह भी आरोप लगा दिया है कि यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को ध्वस्त करने वाला ‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’ अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लागू हो गया है। सभी महत्वपूर्ण निर्णय राहुल गांधी या उनके सुरक्षा गार्ड और फिर उनके पीए द्वारा लिए जा रहे हैं। यानी राहुल गांधी के पीए और सुरक्षा गार्डों के सामने पार्टी के दिग्गज नेताओं की कोई हैसियत नहीं है। वैसे गुलाम नबी आजाद जैसे पुराने नेता के जाने से कांग्रेस को भविष्य में काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। आजाद से पहले वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल भी कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर गंभीर सवाल उठा चुके हैं।

कांग्रेस में बगावत का तूफान
कांग्रेस में बगावत का तूफान उसी समय उठ गया था कि जब कई वरिष्ठ नेताओं ने एकजुट होकर सोनिया गांधी को संयुक्त हस्तारक्षित पत्र भेजकर संगठन में सुधार करने के लिए आवाज उठाई थी। उस समय भी राहुल गांधी ने बतुकी बयानबाजी कर दिग्गज नेताओं की नाराजगी मोल ले ली थी। दरअसल वायनाड सांसद अपनी कमजोरी एवं असफलता को छुपाने के लिए पार्टी नेताओं से हमेशा रूखा व्यवहार करते रहे हैं। सलाहकार भी उन्हें अच्छी सलाह नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस का बंटाधार होना तय है। उधर, गुलाम नबी आजाद को भाजपा की तरफ से खुला आॅफर मिल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आजाद के अच्छे संबंध हैं। दोनों नेता समय-समय पर एक-दूसरे के काम-काज और व्यतित्व की सराहना करते रहे हैं।

गुलाम नबी से भाजपा को प्यार
राजनीति के जानकारों का मानना है कि गुलाम नबी यदि भाजपा ज्वाइन कर लेते हैं तो निकट भविष्य में उन्हें जम्मू-कश्मीर की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है। दरअसल भाजपा को जम्मू-कश्मीर खासकर घाटी में एक ऐसे नेता की तलाश है जो मुस्लिम समाज का भरोसा जीत सके। इस कसौटी पर आजाद जैसे नेता निश्चित रूप से खरे उतर सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में उनकी पहले से मजबूत पकड़ है। कांग्रेस के शासनकाल में वह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं। क्या गुलाम नबी आजाद अब राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लेंगे, क्या वह नई राजनीतिक पारी शुरू करेंगे, क्या वह भाजपा के साथ चले जाएंगे, ऐसे कई सवाल सियासी गलियारों में उठ रहे हैं, जिनके जवाब जल्द मिलने की उम्मीद है।