लेखक : तरुण मिश्र
(समाजसेवी एवं राजनीतिक चिंतक हैं। राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं। देश-विदेश में आयोजित होने वाले व्याख्यानों में एक प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। जनसेवक के रुप में प्रख्यात है।)
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और वरिष्ठ नेता आजम खान की मुलाकात के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत में चर्चाओं का बाजार गर्म है। आजम खान से मुलाकात के बाद अखिलेश यादव का भावुक होना आखिर क्या संदेश देता है? दोनों नेताओं के बीच गर्मजोशी ने उनके समर्थकों के चेहरे खिला दिए हैं। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सपा खुद को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में पुराने एवं वरिष्ठ नेता आजम खान से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश हो रही है। वैसे जेल से रिहाई के बाद आजम खान निरंतर सुर्खियों में हैं। आजम की रिहाई के समय अखिलेश यादव का एक बयान सामने आया था। उन्होंने कहा था कि आज खुशी का दिन है। यह बयान इस बात के स्पष्ट संकेत थे कि सपा को आजम खान की अभी जरूरत है। अखिलेश बार-बार यूपी सरकार पर आजम को फर्जी मामलों में फंसाने का न सिर्फ आरोप मढ़ते रहे हैं बल्कि यह भी कह चुके हैं कि सपा सरकार आने पर सभी मामले निरस्त कर दिए जाएंगे। सपा के संस्थापक सदस्य आजम खान पर सौ से अधिक केस दर्ज हैं। यूपी में भाजपा सरकार आने के बाद से उनके बुरे दिन शुरू हो गए थे।
उन्हें लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। पिछले दिनों आजम खान के बसपा में जाने की चर्चाएं जोरों पर चलीं। कहा गया कि वह जल्द सपा को छोड़ने और बसपा को ज्वाइन करने की घोषणा कर सकते हैं। हालांकि इस सवाल के जवाब पर पूर्व में आजम ने सिर्फ इतना कहा था कि इस बारे में वही बताएंगे जो अटकलें लगा रहे हैं। इसके इतर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि आजम खान चाहें सपा में रहें या बसपा में जाएं, अगले विधानसभा चुनाव में इन दोनों दलों में हार के कारण मातम छाना तय है। भाजपा का यह बयान भी सामने आ चुका है कि आजम को न भाजपा ने जेल भिजवाया था, ना छुड़वाया है। सियासी गलियारों में चर्चाएं थीं कि भाजपा के दबाव के कारण आजम बसपा में जाने की तैयारी में हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक दौर वह था जब सपा में आजम खान और बसपा में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नाम का सिक्का चला करता था। सपा सरकार में आजम और बसपा सरकार में नसीमुद्दीन का जलवा देखने लायक था। इन दोनों नेताओं की मुस्लिम मतदाताओं पर अच्छी पकड़ थी।
समय बदला और आजम व नसीमुद्दीन अर्श से फर्श पर पहुंच गए। आजम जहां कानूनी पचड़ों में उलझते चले गए, वहीं नसीमुद्दीन ने बसपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। वर्तमान में यह दोनों मुस्लिम नेता पहले की भांति राजनीति में सक्रिय दिखाई नहीं देते हैं। क्या आजम खान वाकई बसपा में जाकर नई राजनीतिक पारी आरंभ कर सकते हैं? क्या वह अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं? यह सवाल इसलिए भी उठते रहे कि आजम के समर्थक समय-समय पर सपा मुखिया की आलोचना करते रहे। समर्थकों का मानना था कि जब आजम को सबसे बुरे दौर का सामना करना पड़ रहा है, तब सपा और अखिलेश यादव खुलकर उनके साथ खड़े नहीं हो सके। रामपुर को आजम खान का सियासी गढ़ माना जाता था। वर्तमान में अपने गढ़ में वह अकेले पड़ चुके हैं। रामपुर की जनता ने भी उनसे किनारा कर लिया है। राजनीति में आजम खान का अगला स्टैंड क्या होगा, यह वही जानते हैं, मगर जब तक वह पुन: सक्रिय राजनीति में नहीं आते तब तक अटकलें लगती रहेंगी। फिलहाल अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद आजम के सपा छोड़ने संबंधी अटकलों पर विराम लगने की उम्मीद है।
सवाल यह भी है कि क्या आजम खान पहले की भांति पूरे जोश के साथ सपा के पक्ष में माहौल बना पाएंगे? क्या वह मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने का मादा रखते हैं? सपा में पहले से कुछ मुस्लिम चेहरे मौजूद हैं। आजम खान के सक्रिय होने से इन मुस्लिम नेताओं को सपा में पीछे धकेल दिए जाने का डर भी सताता रहेगा। उधर, बसपा सुप्रीमो मायावती भी एकाएक सक्रिय होने लगी हैं। लखनऊ में विशाल जनसभा का आयोजन कर उन्होंने दलित वोट बैंक को एकजुट करने का प्रयास किया है। बसपा सुप्रीमो ने जिस तरह से सपा पर निशाना साधा, उससे साफ है कि भविष्य में वह सपा-कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। बसपा की जनसभा में उमड़ी भीड़ ने विरोधियों की बेचैनी जरूर बढ़ाई है। मायावती ने योगी सरकार की प्रशंसा कर भाजपा को भी चौंका दिया है। यूपी में भाजपा, सपा-बसपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) अपने-अपने समीकरण बैठाने में लगे हैं। बेशक विधानसभा चुनाव का समय अभी काफी दूर है, मगर भविष्य को ध्यान में रखकर तैयारियां अभी से होने लगी हैं। सपा जहां आजम खान को पुन: सक्रिय करने की योजना पर काम करने लगी है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती खुद आगे आकर बसपा को नए सिरे से मजबूती देने की कोशिश में हैं।