कृषि कानूनों व इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल की वापसी पर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति का किसानों को समर्थन

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति गाजियाबाद उत्तर प्रदेश ने कृषि कानूनों और इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 की वापसी की मांग को लेकर पिछले पिछले 13 दिनों से संघर्षरत किसानों के समर्थन में मंगलवार को देश भर में लगभग 15  लाख बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और इंजीनियरों ने विरोध प्रदर्शन किया। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों हिर्देश गोस्वामी, आलोक त्रिपाठी, अनिल चैरसिया, एससी यादव, उमेश, केके सोलंकी, पंकज, दिलनवाज, शेर सिंह त्यागी, धीरज, जयभगवान ने बताया कि मंगलवार को प्रदेश भर में सभी बिजली कर्मचारियों ने भोजनावकाश के दौरान प्रदर्शन कर किसानों के साथ राजनगर विद्युत निगम के चीफ इंजीनियर कार्यालय पर अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया।

राजधानी लखनऊ में शक्ति भवन मुख्यालय पर विरोध सभा मे भी सैकड़ों बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता सम्मिलित हुए। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 का ड्राफ्ट जारी होते ही बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने इसका पुरजोर विरोध किया था। इस बिल में इस बात का प्रावधान है कि किसानों को बिजली टैरिफ में मिल रही सब्सिडी समाप्त कर दी जाए और बिजली की लागत से कम मूल्य पर किसानों सहित किसी भी उपभोक्ता को बिजली न दी जाए। संयोजक अवधेश कुमार ने बताया कि बिल में इस बात का प्रावधान किया गया है कि सरकार चाहे तो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किसानों को सब्सिडी दे सकती है। लेकिन इसके पहले किसानों को बिजली बिल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा जो सभी किसानों के लिए संभव नहीं होगा। उन्होंने बताया कि किसान संयुक्त मोर्चा के आवाहन पर चल रहे आंदोलन में कृषि कानूनों की वापसी के साथ किसानों की यह एक प्रमुख मांग है कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 वापस लिया जाए। किसानों का मानना है की इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के जरिए बिजली का निजीकरण करने की योजना है। जिससे बिजली निजी घरानों के पास चली जाएगी और निजी क्षेत्र मुनाफे के लिए काम करते हैं। जिससे बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाएंगी। किसानों की आशंका निराधार नहीं है इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के लिए जारी स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट बिजली के निजीकरण के उद्देश्य से लाए गए हैं। ऐसे में सब्सिडी समाप्त हो जाने पर बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट हो जाएगी और किसानों को 8 से 10 हजार रुपये प्रति माह का न्यूनतम भुगतान करना पड़ेगा।