• शीर्ष अदालत ने सभी 140 किसानों की याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया
• सुप्रीम फैसले से यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में विकास कार्य और तेज होंगे
उदय भूमि
ग्रेटर नोएडा। यमुना प्राधिकरण की भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले में हाईकोर्ट के दो विरोधाभासी निर्णयों पर एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया है। अदालत ने‘कालीचरण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले को इस निर्णय का आधार बनाया है। कोर्ट ने सभी 140 किसानों की याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। अब यमुना प्राधिकरण में विकास कार्य और तेज होंगे।
मामले की शुरुआत फरवरी 2009 में यमुना प्राधिकरण के दायरे वाले गांवों में भूमि अधिग्रहण से हुई। प्राधिकरण के लिए जिला प्रशासन ने अधिसूचना जारी की थी। इस भूमि का उपयोग यमुना एक्सप्रेसवे और इसके आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए किया जाना था। भूमि मालिकों ने इस अधिग्रहण को चुनौती दी और कहा कि सरकार ने उनकी आपत्तियों को सुने बिना अधिग्रहण किया है। यह उनके अधिकारों का हनन है। किसानों ने तर्क दिया कि सरकार ने उनकी आपत्तियां सुनने का अधिकार निलंबित कर दिया। तर्क दिया गया कि अधिग्रहण का उद्देश्य सार्वजनिक हित के बजाय वाणिज्यिक और आवासीय परियोजनाओं के लिए था।
अब अदालत ने माना कि यह परियोजना इंटीग्रेटेड विकास योजना का हिस्सा थी। जिसमें यमुना एक्सप्रेसवे के साथ औद्योगिक, आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों का विकास शामिल था। अदालत ने कहा कि परियोजना की विशालता और संभावित देरी के कारण आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग न्यायोचित था। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार की प्रशासनिक संतोष पर केवल सीमित न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। इस मामले में सरकार ने आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया था। यह भी कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा तय किया गया 64.7% अतिरिक्त मुआवजा न्यायसंगत है। इसे प्रभावित किसानों पर लागू किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकांश भूमि मालिकों ने मुआवजा स्वीकार कर लिया है। केवल 140 अपीलकर्ताओं ने इसे चुनौती दी। कोर्ट ने सभी 140 किसानों की याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने प्राधिकरण को बड़ी राहत दी है। इस फैसले ने सरकार की विकास परियोजनाओं को बल दिया है। साथ ही किसानों को उचित मुआवजा देकर उनके हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की है।