जागरूक रहेंगे तो पास नहीं आएंगी बीमारियां

गौरव पांडेय
(लेखक वरिष्ठ स्वस्थ्यविद्, सामाजिक, पर्यावरण एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।) इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

इलाज से बेहतर बचाव है, अंग्रेजी में कहा गया है कि प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर, यह कहावत सदियों से चरितार्थ है और आगे भी रहेगी। निजी क्षेत्र से लेकर सरकारी क्षेत्रों में इस ओर सतत ध्यान दिया जाता रहा है। सरकार द्वारा संचालित त्रिस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं इसी का द्योतक हैं, जिनमें प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर, कम्युनिटी हेल्थ केयर सेंटर, डिस्ट्रिक्ट हेल्थ केयर सेंटर एवं उसके बाद सर्वोच्च रेफरल अस्पताल का सिस्टम इसीलिए बनाया गया है कि ज्यादा से ज्यादा बीमारियों को ग्रामीण या छोटे कस्बों के स्तर पर ही प्रारंभिक अवस्था में पकड़ लिया जाए एवं उचित निदान कर ठीक कर दिया जाए।

ऐसे में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की भूमिका अहम हो जाती है, जहां ना केवल व्यक्ति के बीमारी के लक्षण प्रारंभ होने पर चिकित्सकीय मदद उपलब्ध होती है वरन सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों का भी संचालन उसी सबसे निचले स्तर से घर-घर में किया जाता है जैसे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर, ट्यूबरक्लोसिस के लिए डॉट्स प्रोग्राम, जननी सुरक्षा योजना, पोषण संबंधित योजनाएं, कृमि निवारण कार्यक्रम, टीकाकरण कार्यक्रम आदि। इसके अगले चरण के रूप में यदि व्यक्ति प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ठीक नहीं होता तो वह आगे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर उपलब्ध डॉक्टर एवं प्रयोगशाला से परामर्श एवं जांच कराकर निदान पा सकता है।

यदि उसे वहां भी आराम नहीं मिलता तो फिर उसे जिला अस्पताल और फिर उसके आगे उच्च रैफरल अस्पताल जैसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान रेफर कर दिया जाता है। इस प्रकार की योजना एवं संरचना को समझना हर व्यक्ति को बहुत जरूरी है। निजी क्षेत्र में भी इसी तरह से रोगों से बचाव के लिए एक सिस्टम कायम है, जिसमें सर्वप्रथम सामान्य चिकित्सक जो एमबीबीएस होता है या जिसे फैमिली फिजिशियन कहते हैं या फैमिली डॉक्टर भी कहते हैं, लोग पहले उसी डॉक्टर को दिखाते हैं और प्राय: देखा गया है कि सामान्य बीमारियों के इलाज में वह प्राय: सफल होते है।

उसके पश्चात पॉलीक्लिनिक्स होते हैं, जहां पर विभिन्न विशेषताओं के डॉक्टर एक साथ बैठते हैं और मरीज को कोई अन्य बीमारी होने पर उसे वहां रेफर कर दिया जाता है और उसे आसानी से एक ही जगह पर 2-3 बीमारियों का इलाज एक साथ मिल जाता है। पॉलिक्लिनिक के बाद नर्सिंग होम होते हैं। जहां पर मरीज के भर्ती की व्यवस्था रहती है। इसे भी हम प्राथमिक स्वास्थ्य के अंतर्गत ही ले सकते हैं। थोड़े बड़े नर्सिंग होम जहां पर ऑपरेशन थिएटर और आईसीआईसीयू की व्यवस्था रहती है, उन्हें हम द्वितीय लेवल पर या सेकेंडरी केयर मे गिन सकते हैं।

उसके बाद बड़े अस्पतालों का नंबर आता है जिनमें 100 से अधिक बेड होते हैं और हर स्पेशलिटी में बड़े डॉक्टर के साथ उच्च तकनीक की मशीनें आईसीयू ऑपरेशन थिएटर और जांच के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई, कैथ लैब, मॉडुलर ऑपरेशन थियेटर जैसी बड़ी मशीनें एवं सुविधाएं होती हैं। उन्हें हम टर्शरी केयर या तृतीयक देखभाल हॉस्पिटल की श्रेणी में रखते हैं। ऐसे हॉस्पिटल जिनमें रोबोटिक सर्जरी, प्रोटोन थेरेपी, हृदय ट्रांसप्लांट, लंग ट्रांसप्लांट जैसी सर्वोच्च उन्नत सेवाएं उपलब्ध होती हैं, उन्हें हम क्वार्टरनरी केयर या चतुर्थक देखभाल हॉस्पिटल की श्रेणी में रखते हैं जो सबसे ऊपर है।

यह सब हमें समझना इसलिए जरूरी है कि यह सब स्वास्थ्य प्रणाली और ढांचा मरीज के बीमार होने के बाद के लिए हैं, किंतु साथ ही स्वास्थ्य प्रणाली में एक ऐसी व्यवस्था भी है जिससे हमें बीमारी होने से पहले ही जांचों द्वारा यह पता लग जाए की बीमारी की शुरूआत हो चुकी है और हम उसे सही समय पर निदान निबंध इलाज करके उचित डॉक्टर की सलाह लेकर उसी समय आगे बढ़ने से रोक सकें, इसे प्रिवेंटिव हेल्थ सिस्टम कहते हैं, जिसमें विभिन्न आयु वर्गों के लिए एवं विभिन्न लक्षणों से संबंधित स्वास्थ्य जांच के लिए वार्षिक ब्लड टेस्ट, रेडियोलॉजिकल टेस्ट एवं डॉक्टरी परामर्श का उपयोग किया जाता है।

40 वर्ष से अधिक के नागरिकों को हर साल यह स्वास्थ्य जांच कराने की सलाह दी जाती है। भारत के शहरी क्षेत्रों में इसका प्रचलन अब बहुत बढ़ गया है। विदेशों की अगर हम बात करें जहां पर सभी नागरिकों के इलाज का खर्चा हेल्थ इंश्योरेंस या सरकार द्वारा शत-प्रतिशत कवर होता है, ऐसे देशों में भी डायग्नोस्टिक रिलेटेड ग्रुप बनाए गए हैं, जिनमें मरीजों का निरंतर वार्षिक स्वास्थ्य जांच किया जाता है, जिससे की बीमारियों के फैलाव को और सही समय पर उसे पकड़ा जा सके और इंश्योरेंस या सरकार पर मरीज के इलाज के खर्चे का बोझ कम किया जा सके। बहुत सारी इंश्योरेंस कंपनियां भी भारत में मेडिक्लेम के साथ एक वार्षिक जांच मुफ्त प्रदान करती हैं।

निजी अस्पताल भी इसमें पीछे नहीं हैं, वह भारी छूट के साथ वार्षिक स्वास्थ्य जांच पैकेज या हर आयु वर्ग एवं बीमारी के लक्षण वालों के लिए संबंधित स्वास्थ्य जांच पैकेज उपलब्ध कराते हैं, जिनमें प्राय: 50 प्रतिशत से अधिक का डिस्काउंट दिया जाता है। ऐसे में लोगों को इसका लाभ उठाना चाहिए, जिससे की बीमारियों को सही समय पर पकड़ कर उसकी रोकथाम की जा सके और लोगों के ऊपर बढ़ रहे स्वास्थ्य जांच के खर्चे को कम किया जा सके, जिससे आर्थिक तनाव और इलाज की वजह से प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत से अधिक की ओर भारत में गरीबी की ओर जा रहे लोगों की मदद की जा सके।

सरकार और निजी अस्पतालों की तरफ से समय-समय पर मुफ्त स्वास्थ्य शिविर भी लगाए जाते हैं एवं सुदूर ग्रामीण इलाकों में मोबाइल वैन द्वारा लोगों का परीक्षण किया जाता है, जिसका भी लाभ लोगों को लेना चाहिए क्योंकि इन जांचों से कई बार बड़ी बीमारी समय रहते पकड़ ली जाती है। वैसे तो यह कहना होगा कि इस दिशा में जागरूकता एवं इन सेवाओं की उपलब्धता के लिए बहुत काम करना अभी बाकी है, सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर इस पर काम करना चाहिए।