उत्तर प्रदेश में हुआ एलईडी घोटाला: बिना काम किये एलईडी फर्म को शासन से हुआ करोड़ों का भुगतान

एलईडी लाइट लगाने वाली कंपनी मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड को सभी नियमों को ताक पर रख, निगम बोर्ड एवं दस्तावेजों की अनदेखी करके उत्तर प्रदेश शासन से 9 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। यह मामला इसलिए गंभीर है कि जिस काम के लिए कंपनी को भुगतान किया गया है वास्तव में वह काम हुआ ही नहीं है। मजेदार बात यह भी है कि गाजियाबाद नगर निगम बोर्ड, मेयर एवं पार्षदों ने चीख-चीख कर कई बार कहा गया कि कंपनी ने काम नहीं किया है। नगर निगम बोेर्ड ने कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर दिया। नगर निगम अधिकारियों द्वारा भी शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को कई बार पत्र लिखकर पूरे प्रकरण से अवगत करा दिया गया। इसके बावजूद शासन के कुछ बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड को लगभग 9 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। शासन से यह भुगतान गाजियाबाद नगर निगम की फंड से हुआ है लेकिन नगर निगम को इस भुगतान की जानकारी तक नहीं है। इस खेल का भंडाफोर भाजपा के एक पार्षद ने किया है। मामले की निष्पक्ष जांच की मांग उठ रही है।

विजय मिश्र (उदय भूमि ब्यूरो)
गाजियाबाद। रसूखदारों के लिए कोई नियम कानून नहीं है। यदि आपकी शासन में पकड़ है तो स्थानीय निकाय में मनमानी कर सकते हैं और आपको कोई रोकने टोकने वाला नहीं होगा। भले ही नगर निगम बोर्ड एवं अधिकारी कितना भी विरोध क्यों ना करें शासन स्तर से ही बिना काम के भी आप फर्जी भुगतान ले सकते हैं। एलईडी लाइट लगाने वाली कंपनी मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड के मामले को देखकर यही कहा जा सकता है। मजेदार बात यह भी है कि इस कंपनी को गाजियाबाद नगर निगम में काम करने के बदले शासन से लगभग 9 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। निगम फंड से शासन स्तर पर हुए इस भुगतान की भनक तक गाजियाबाद नगर निगम को नहीं लगने दी गई। मामले का खुलासा करते हुए भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने पूरे प्रकरण की निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और कंपनी से रिकवरी की मांग की है।
भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश शासन द्वारा एक एलईडी कंपनी को बिना काम किये तय रकम से दो गुने से अधिक रकम का भुगतान किया गया है। इस मसले में सोमवार को उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके पत्रकारों को बताया कि जिस एलईडी कंपनी मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड को शासन से भुगतान किया है उसे 2018 में ही नगर निगम की बोर्ड बैठक में सदन ने ब्लैक लिस्ट कर दिया था। इस मामले में शासन के वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में संबधित कंपनी को भुगतान करने के लिए जांच के बाद संस्तुति की थी। इसके बावजूद संस्तुति से अधिक रकम भुगतान करने के मामले की जांच कराने की मांग की गई है।
ज्ञात हो कि नगर निगम के स्ट्रीट लाइट में खपत होने वाली बिजली की बचत के लिए मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड को ठेका दिया गया था कि कंपनी पूरे शहर में एलईडी लाइट लगाएगी। कंपनी को यह ठेका 7 जनवरी 2016 को मिला। कंपनी को 50214 लाईटं लगानी थी। कंपनी ने 48113 लाइटें लगाने का दावा किया। इस मामले की और बारीकी से जांच करने पता चला कि कंपनी ने नई लाईटें लगाने के बदले में स्टोर में केवल 35388 पुरानी लाइटें जमा कराई थीं। इस मामले में अनियमितता पाए जाने पर कंपनी को नगर निगम बोर्ड की बैठक में 27 अगस्त 2018 को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। कंपनी ने 2017 से 2019 के बीच कुल बिजली के बचत का 75 फीसदी हिस्सा भुगतान के लिए निगम के सामने प्रस्ताव रखा। नगर निगम ने बारीकी से जांच के बाद शासन को संबंधित कंपनी को 3 करोड़ 37 लाख रुपये भुगतान करने की संस्तुत की। लेकिन इन सबकी अनदेखी करके शासन द्वारा संबंधित कंपनी को करीब 8 करोड़ 97 लाख रुपये का भगुतान कर दिया। यह निर्धारित रकम से दोगुनी से अधिक है। राजेंद्र त्यागी ने आरोप लगाया एलईडी कंपनी रसूखदार लोगों की है और सत्ता में गहरी पैठ है। शासन में बैठे कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने निजी स्वार्थवश संबंधित एलईडी फर्म को आर्थिक लाभ पहुंचाया है। शासन के इन अधिकारियों द्वारा नियम कायदे को ताक पर रखकर गाजियाबाद नगर निगम और सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है। पार्षद ने इस मामले की जांच निष्पक्ष एजेंसी से कराने की मांग की है जिससे कि शासन में बैठे आला अधिकारियों को बेनकाब किया जा सके। राजेंद्र त्यागी ने सवाल उठाया है कि जब भुगतान गाजियाबाद नगर निगम की मद से होना था तो शासन ने बिना किसी सत्यापन को उसे लगभग 9 करोड़ रुपये का भुगतान कैसे कर दिया गया।

कंपनी ने जो लाइट लगाई उसका कोई रिकार्ड नहीं रखा गया और ना ही टेक्नीकल जांच की गई। इस कारण इस तरह की दुविधा उत्पन्न हुई है। मेरे संज्ञान में आने पर लाइटों की चेकिंग और टेक्नीकल जांच कराई गई। कंपनी ने काम किया था लेकिन अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं किया था। इसलिए कटौती करते हुए 3 करोड़ 37 लाख रुपये भुगतान की संस्तुति महापौर के माध्यम से शासन को भेजी गई। सदन ने कहा कि भुगतान ना किया जाये तो उससे भी शासन को अवगत करा दिया गया था। कंपनी द्वारा लगातार अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं किये जाने के बारे में भी शासन को अवगत करा दिया गया था। पिछले वर्ष कंपनी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई थी। कंपनी को हुए भुगतान के बाबत हमारे पास जानकारी नहीं है। माननीय पार्षद ने कंपनी को हुए अधिक भुगतान का मामला संज्ञान में लाया है। इस भुगतान को लेकर असहमति जताते हुए शासन को अनुरोध पत्र लिखा लिखा जाएगा कि गाजियाबाद नगर निगम इससे सहमत नहीं है।
डॉ. दिनेश चंद्र सिंह
म्युनिसिपल कमिश्नर
गाजियाबाद नगर निगम

यह भुगतान शासन से किया गया है। शासन स्तर का मामला है। हमने शासन को पहले भी इस मामले में रिमाइंडर भेजा था और अब फिर से रिमाइंडर भेजेंगे कि आखिर कंपनी को किस आधार पर भुगतान किया गया है। नगर निगम की बोर्ड बैठक में कंपनी की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगा था और संतोषजनक काम नहीं करने के कारण कंपनी को सदन द्वारा ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था। कंपनी को ब्लैक लिस्ट किये जाने की जानकारी शासन को दे दी गई थी। कंपनी द्वारा जो भी अनियमितता बरती गई है उसके बारे में विस्तृत जानकारी शासन को दी जाएगी। कंपनी को कैसे इतनी अधिक रकम का भुगतान कर दिया गया इस बारे में शासन को लिखा जाएगा।

आशा शर्मा
मेयर
गाजियाबाद नगर निगम