फिर धड़ाम एग्जिट पोल के अनुमान

डॉ. संजय कुमार मिश्रा

( लेखक राजनैतिक एवं सामाजिक विषयों पर बेबाकी से लिखते हैं। उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं। )

एग्जिट पोल की भविष्य एक बार फिर गलत साबित हो गई है। बिहार में विधान सभा चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल के अनुमान से विपरित आए हैं। एग्जिट पोल की दुहाई देकर जो कल तक जश्न मनाने की तैयारियों में मशगूल थे, वह आज मुंह छुपाते भी दिखाई दिए। हार का सामना होने पर कुछेक ने ईवीएम के सिर दोष मढऩा शुरू कर दिया। ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। अधिकांश एग्जिट पोल में सत्ता की चाबी महागठबंधन के हाथों में जाने का दावा किया गया था, मगर ईवीएम खुलने के बाद परिस्थितियां बिल्कुल बदल गईं हैं। सत्ता पर पुन: भाजपा-जनता दल यूनाईटेड (जदयू) का कब्जा होता दिखाई दे रहा है। बिहार में 3 चरण में विधान सभा चुनाव संपन्न कराए गए। कुल 243 सीटों के लिए 4 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं ने वोटिंग की थी। वोटिंग में ईवीएम का प्रयोग किया गया था। कोविड-19 (कोरोना वायरस) के दौर में भारत में यह पहला बड़ा इलेक्शन था। विधान सभा चुनाव में कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन कराने को चुनाव आयोग ने कोई कमी नहीं छोड़ी। कोरोना काल के बावजूद मतदाता भी उत्साहित दिखाई दिए। अब बात एग्जिट पोल की। 5 प्रमुख एजेंसियों ने एग्जिट पोल कराए थे। इनमें से 4 एजेंसियों ने राष्ट्रीय जनता (दल) को पूर्ण बहुमत मिलने का अनुमान जाहिर किया था। इन एजेंसियों ने भाजपा-जेडीयू गठबंधन को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बताया था। एग्जिट पोल के मुताबिक इंडिया टीवी ने एनडीए को 90 से 110, महागठबंधन को 103-120, आज तक ने एनडीए को 69-91, महागठबंधन को 139-161, रिपब्लिक टीवी ने एनडीए को 91-119, महागठबंधन को 116-138, न्यूज-24 ने एनडीए को 91-119, महागठबंधन को 116-138 और एबीपी न्यूज ने एनडीए को 104-128, महागठबंधन को 108-131 सीटें मिलने का अनुमान जाहिर किया था। सिर्फ एबीपी न्यूज ने एनडीए को बहुमत से ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान जाहिर किया था। हालाकि असल नतीजे एग्जिट पोल से अलहदा आए हैं। घोषित परिणाम और रूझानों को देखकर यह साफ हो गया है कि बिहार में भाजपा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है। इसके अलावा एनडीए की सत्ता में वापसी का रास्ता भी क्लीर है। बिहार में भाजपा के मुकाबले जेडीयू बेशक ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है, मगर महागठबंधन की अपेक्षा एनडीए के यह दोनों प्रमुख दल अपनी नाव को किनारे तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं। महागठबंधन में दूसरे प्रमुख दल कांग्रेस का प्रदर्शन न सुधरने के कारण राजद की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसीकी पार्टी की सक्रियता बढऩे का खामियाजा महागठबंधन को भुगताना पड़ा है। इसका लाभ भाजपा को मिला है। जबकि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने जेडीयू की कामयाबी में रोड़े अटकाने का काम किया है। इसका फायदा भी भाजपा खेमे को मिला है। राजनीति पंडितों का कहना है कि बिहार में भाजपा ने अपना प्रदर्शन सुधार कर नीतीश कुमार की छाया से बाहर आने की कोशिश की है। अब तक बिहार चुनाव में जेडीयू को बड़ा भाई और भाजपा को छोटा भाई की संज्ञा दी जाती थी। भविष्य में बिहार की राजनीति में भाजपा को बड़ा भाई होने का सुख मिल सकता है। विधान सभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री पद भाजपा को देने की मांग भी उठने लगी है। हालांकि जेडीयू नेता इस बात पर बार-बार जोर दे रहे हैं कि एनडीए यदि सत्ता में आएगी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे। यह पहले से तय है।