गाजियाबाद की सड़कों का होगा पिनकोड, नंबरों से पहचानी जाएंगी सड़कें

निर्माण विभागा की कार्यप्रणाली में सुधार लाने की म्युनिसिपल कमिश्नर महेंद्र सिंह तंवर की पहल

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। गाजियाबाद की सड़कों का पर्मानेंट आइडेंटीफीकेशन नंबर (पिनकोड) होगा। डाक विभाग के पिनकोड की ही तरह नगर निगम द्वारा निर्धारित किये जाने वाले पिनकोड में भी जोन, कॉलोनी, मुहल्ला और सड़कों नंबर निर्धारित किया जाएगा। इसी नंबर के आधार पर सड़कों को जाना जाएगा और कंप्यूटर में उसका रिकार्ड फीड रहेगा। नगर निगम के इस प्रयास से जहां सड़क निर्माण कार्य में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी वहीं भविष्य में भी यह पता लगाना आसान हो जाएगा कि कौन सी सड़क कब बनी थी और उसे बनाने में कितना खर्च हुआ था। अभी तक नगर निगम में निर्माण विभाग में राम के घर से श्याम के मकान तक वाली परंपरा पर फाइलें बनती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। नगर निगम के कागजों में पिन कोड की तरह हर सड़क को चार से पांच अंक का एक आइडेंटीफीकेशन नंबर दिया जाएगा। पहला अंक नगर निगम के जोन का होगा, अगले दो से तीन अंक नगर निगम के वार्ड का होगा। इसके बाद गली का अंक होगा। इन सब को जोड़कर जो अंक ( कोड ) बनेगा, वह उस सड़क का आईडेंटीफिकेशन नंबर कहलाएगा। इसी नंबर से सड़कें पहचान होगी।
गाजियाबाद नगर निगम के म्युनिसिपल कमिश्रर महेंद्र सिंह तंवर ने बताया कि सड़कों को नंबर देने के पीछे का उद्देश्य सड़कों के निर्माण में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकना है। सालों से प्रथा चली आ रही है कि गलियों में सड़क निर्माण के लिए प्रस्ताव और टेंडर में वहां के पहले और आखिरी मकान के मालिक का नाम लिखा जाता है। मसलन किसी गली में बायीं तरफ पहला मकान सुरेश और अंतिम मकान दिनेश का है तो इस गली में सड़क बनाई जाएगी तो सरकारी फाइल में लिखा जाएगा कि सुरेश के मकान से दिनेश के मकान तक सड़क का निर्माण हुआ। कई बार देखा गया है कि कुछ समय बाद ही उसी गली में बायीं तरफ रहने वाले शुरूआती और आखिरी मकान के मालिक का नाम लिख कर फाइलों में दोबारा सड़क का निर्माण दर्शा दिया जाता है। सड़का का आईडेंटीफिकेशन नंबर देने से भ्रष्टाचार पर काफी हद तक रोक लग सकेगी। सड़कों का सीमांकन तय करने के लिए सर्वे कराया जाएगा। इसका सीमांकन करना जरूरी है। सीमांकन करने पर सड़क की लंबाई निर्धारित की जाएगी। उसका शुरूआती और अंतिम बिदु तय होगा। इसके लिए नगर निगम सर्वे कराएगा। सर्वे की शुरूआत सितंबर से कराई जाएगी।
म्युनिसिपल कमिश्नर ने बताया कि टूटी सड़कों को पहचानने के लिए नगर निगम सड़कों को कलर कोड देगा। इससे निगम अधिकारियों को फंड की उपलब्धता के आधार पर यह तय करने में आसानी होगी कि पहले किन सड़कों को दुरुस्त कराया जाना जरूरी है। निगम अधिकारियों की मानें तो जैसे ही टूटी सड़क दुरुस्त हो जाएगी और दुरुस्त सड़क जर्जर हो जाएगी तो उसका कलर कोड बदल जाएगा। निगम की आंतरिक व्यवस्था के लिए यह पहल की जा रही है। सड़कों में कलर कोड लाल रंग का होगा। वहीं ,पांच साल से ज्यादा पुरानी जर्जर सड़क को लाल रंग स्टार के साथ ही पांच साल ज्यादा पुरानी अच्छी सड़क पीला रंग, एक से पांच साल तक पुरानी जर्जर सड़क और पीला रंग स्टार के साथ होंगी। वहीं, हरा रंग एक साल पहले बनी सड़क को दिया जाएगा। नगर निगम का यह प्रयास यदि सफल होता है तो अन्य शहरों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकता है।

सड़कों की पहचान सुनिश्चित होने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा यह भी पता रहेगा कि कब कौन सड़क बनी। आईडेंटीफिकेशन नंबर कंप्यूटर में डालते ही संबंधित सड़क की समस्त जानकारियां सामने आ जाएंगी। यह एक तरह से सड़क का सिजरा होगा जिसमें उसका पूरा रिकार्ड दर्ज रहेगा। सड़कों की कोडिंग किये जाने से पहले उसका सीमांकन भी किया जाएगा। प्रयास है कि बेसिक्स को सुधार कर सिमित संशाधन होने पर भी बेहतर परिणाम दिया जाये।
महेंद्र सिंह तंवर
म्युनिसिपल कमिश्नर
गाजियाबाद।