-मॉडर्न कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
-वैदिक शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता पर वक्ताओं ने दिए विचार
उदय भूमि संवाददाता
गाजियाबाद। मोहन नगर स्थित मॉडर्न कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मॉडर्न कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, गाजियाबाद के आईक्यूएसी प्रकोष्ठ, अमृत मंथन वेलफेयर सोसायटी गाजियाबाद एवं माधवी फाउंडेशन, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में 21-22 मार्च 2025 को वैदिक और उत्तर-वैदिक चिंतन में निहित शैक्षिक मूल्य एवं चेतना विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन वर्चुअल माध्यम से किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ मॉडर्न कॉलेज ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज की प्राचार्या प्रो. (डॉ.) निशा सिंह द्वारा किया गया। संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. मिथिलेश दीक्षित (संस्थापक एवं अध्यक्ष, माधवी फाउंडेशन, लखनऊ), मुख्य वक्ता डॉ. प्रशांत अर्वे (अध्यक्ष, इतिहास विभाग, रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय), विशिष्ट अतिथि रस आचार्य डॉ ई मादे (राजदूत, अंतरराष्ट्रीय कला और संस्कृति अकादमी, बाली, इंडोनेशिया) और मुख्य अतिथि डॉ. इंदर जीत शर्मा (संस्थापक, अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति, अमेरिका) सहित सहित कई गणमान्य अतिथि इस अवसर पर उपस्थित रहे।
प्राचार्या प्रो. (डॉ.) निशा सिंह ने स्वागत भाषण में कहा कि वैदिक शिक्षा प्रणाली केवल सूचनाओं का संकलन नहीं थी, बल्कि यह जीवन दर्शन पर आधारित थी। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों में आत्मबोध, सामाजिक चेतना और नैतिक मूल्यों का विकास करना था। डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य आत्मबोध और नैतिकता का विकास करना है, जो वैदिक दर्शन का मूल आधार है। मुख्य वक्ता डॉ. प्रशांत अर्वे ने वैदिक और उत्तर-वैदिक शिक्षा प्रणाली को संपूर्ण व्यक्तित्व निर्माण पर केंद्रित बताया। विशिष्ट अतिथि रस आचार्य डॉ. आई मेड ने कहा कि भारत का वैदिक ज्ञान पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक है और इसकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। मुख्य अतिथि डॉ. इंदर जीत शर्मा ने कहा कि हमें अपनी वैदिक और उत्तर-वैदिक शिक्षा पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर नई पीढ़ी तक पहुंचाने की आवश्यकता है।
शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण और तकनीकी सत्र
उद्घाटन सत्र के बाद विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें भारत, नेपाल, इंडोनेशिया, अमेरिका और दुबई सहित विभिन्न देशों से आए विद्वानों और शोधकर्ताओं ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। कुल 70 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें शिक्षा के मूल्यों, नैतिकता, तकनीकी विकास और आधुनिक संदर्भ में वैदिक ज्ञान के अनुप्रयोगों पर चर्चा हुई।
समापन सत्र और संगोष्ठी के निष्कर्ष
समापन सत्र में विद्वानों और शिक्षाविदों ने सम्मेलन की उपलब्धियों और निष्कर्षों पर विस्तृत चर्चा की। वक्ताओं ने भारतीय शिक्षा प्रणाली के ऐतिहासिक और आधुनिक संदर्भों पर प्रकाश डालते हुए वैदिक और उत्तर-वैदिक शिक्षा प्रणाली की वर्तमान प्रासंगिकता को रेखांकित किया। शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत शोध पत्रों के सारांशों पर विचार-विमर्श हुआ और भारतीय ज्ञान परंपरा एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली के बीच समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
सम्मेलन को ऐतिहासिक कदम बताया गया
शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं ने इस सम्मेलन को वैदिक और आधुनिक शिक्षा के समावेश के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करने वाला बताया। इस अवसर पर विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्रवक्ता, शिक्षाविद एवं शोधरत छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। इस संगोष्ठी ने प्राचीन शिक्षा प्रणाली और आधुनिक आवश्यकताओं के बीच सेतु निर्माण करने का प्रयास किया। वक्ताओं ने समय-समय पर ऐसी संगोष्ठियों के आयोजन को समाज के लिए आवश्यक बताया, जिससे शिक्षा केवल तकनीकी दक्षता तक सीमित न रहकर मनुष्य के चारित्रिक एवं सांस्कृतिक उत्थान में भी योगदान दे सके।