महामना मालवीय और वाजपेयी भारत के अनमोल रत्न

लेखक : तरुण मिश्र

(समाजसेवी एवं राजनीतिक चिंतक हैं। राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं। देश-विदेश में आयोजित होने वाले व्याख्यानों में एक प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। वर्तमान में अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।)

आज का दिन बेहद खास है। आज 2 महान विभूतियों पं. मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई का जन्मदिवस है। दोनों भारत के अनमोल रत्न एवं शिखर पुरूष रहे हैं। महामना पं. मालवीय ने जहां शिक्षा और सामाजिक समरसता के क्षेत्र में प्रतिमान स्थापित किए, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेई ने विकास और विदेश नीति के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। दोनों के अनेक उपलब्धियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्वाधीनता सेनानी पं. मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भारतीय जन-मानस में अपनी जो छाप छोड़ी है, वह प्रशंसनीय है। पं. मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसी संस्था की स्थापना की थी। उनके इस कदम से भारत ने शिक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ी छलांग मारी थी। पं. मदन मोहन मालवीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् व विधिवेत्ता होने के साथ सामाजिक सरोकार को तरजीह देने व्यक्ति थे। पं. मालवीय ने हिंदी में अदालतों में काम-काज की लड़ाई अंग्रेजों के शासन में पहली बार लड़ी। दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने से लेकर वंचित तबकों के उत्थान के लिए उन्होंने भगीरथी प्रयास किए। इसी प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहली बार हिंदी का परचम फहराया। करिश्माई नेता, ओजस्वी वक्ता और प्रखर कवि के रूप में विख्यात वाजपेई ने बतौर विदेश मंत्री 1977 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में उद्बोधन दिया था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे वाजपेई पहले जनसंघ फिर भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष रहे। वह 3 बार प्रधानमंत्री भी रहे। वाजपेई का दौर तेज आर्थिक विकास दर और विश्व स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जाता है। वह पहले प्रधानमंत्री थे, जिनका कभी कांग्रेस से नाता नहीं रहा। वह आरएसएस के स्वयंसेवक होकर भी धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी चेहरा रहे। यही नहीं वाजपेई की लोकप्रियता हमेशा दलगत सीमाओं से ऊपर रही। अटल विहारी वाजपेयी ने राजनीति में विरोधी तो बनाये लेकिन कोई उनका दुश्मन नहीं था। किसी भी राजनैतिक सख्शियत के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मु­ो भारत रत्न अटल विहारी वाजपेयी का स्रेह मिला और उनके नेतृत्व में काम करने का अवसर मिला। जिस अखिल भारतवर्षीय ब्राहण महासभा की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की उस संस्था के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में काम करना मेरे लिए गर्व की बात है।
पंडित मदन मोहन मालवीय के विषय में जितना कहा जाए या लिखा जाए, वह कम होगा। देशहित में उनके उल्लेखनीय कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है, मगर मन तब दुखी होता है जब भारत के इतिहास में अकबर-बाबर सहित तमाम छोटे-बड़े मुगल शासकों को महापुरुष बताकर खूब पढ़ाया जाता है, मगर पं. मदन मोहन मालवीय जैसी शख्सियत के बारे में उतनी जानकारी नहीं दी जाती, जितनी दी जानी चाहिए। प्रतिवर्ष सिर्फ 2 बार जयंती और पुण्यतिथि पर पं. मालवीय को याद कर कर्तव्य की इतिश्री कर देना कतई वाजिब नहीं है। जिस सम्मान के वह हकदार हैं, वह उन्हें मिलना चाहिए। पं. मदन मोहन मालवीय के सपनों का भारत बनाने की दिशा में भी गंभीरता के साथ कदम उठाने की जरूरत है। महामना के सपनों का भारत अभी अधूरा है। पं. मालवीय की कार्यशैली की झलक अटल बिहारी वाजपेई में भी झलकती थी। दोनों राष्ट्र भक्त भारत के अनमोल रत्न अब हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन मैं पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि वह आज जहां भी हैं वहां से हमें आर्शिवाद दे रहे हैं। दोनों भारत रत्न के सपनों को पूरा करने के लिए भागीरथ प्रयास करने की जरूरत है। महामना मालवीय ने हिंदू चेतना और युवा जागृति पर जोर दिया था। आज के युवाओं को भी पं. मालवीय के जीवन दर्शन से अवगत कराना होगा। ऐसा कर युवाओं को राष्ट्र के प्रति सचेत और जवाबदेह बनाने में मदद मिलेगी। इलाहाबाद के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे पं. मालवीय की राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जीवन की शुरूआत वर्ष 1886 में कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन से हुई। पं. मालवीय देश के पहले और अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की उपाधि से नवाजा गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृभाषा तथा भारत माता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले पं. मालवीय ने राष्ट्र की सेवा के अलावा युवाओं के चरित्र-निर्माण और भारतीय संस्कृति की जीवंतता को बनाए रखने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। डॉ. मालवीय के विचारों में देश की उन्नति तभी संभव है, जब वहां के नागरिक सुशिक्षित हों। बिना शिक्षा के मनुष्य पशुवत माना जाता है। वह आजीवन गांवों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में जुटे रहे। उनका मानना था कि व्यक्ति अपने अधिकारों को तभी अच्छी तरह से समझ सकता है, जब वह शिक्षित हो। संसार के जो देश उन्नति के शिखर पर हैं, वे शिक्षा के कारण ही हैं। डॉ. मदन मोहन मालवीय को 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के साथ भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के सम्मान से सम्मानित किया गया। हालांकि महामना का व्यक्तित्व किसी भी सम्मान से ऊपर है। उनके जीवन से जितना सीखा जाएगा, उतना कम होगा। देश एवं समाज में शांति-खुशहाली लाने और समाज को शिक्षित करने के लिए पं. मालवीय के विचारों को आत्मसात करना बेहद जरूरी है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। भारत में उन्होंने उस दौर में शिक्षा एवं राष्ट्र भक्ति की मशाल प्रज्जवलित की थी, जब इसकी विशेष जरूरत थी। वह भली-भांति जानते थे कि यदि नागरिक शिक्षित हो जाएंगे तो देश को तरक्की की राह पर ले जाना कतई मुश्किल नहीं होगा। इसके चलते पं. मालवीय ने निरक्षरता के खिलाफ देश के कोने-कोने में मुहिम छेड़ी थी। वह जहां जाते थे, वहां शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करते थे। उन्होंने युवाओं के चरित्र निर्माण पर बार-बार जोर इसलिए दिया था ताकि देश के युवा गलत मार्ग की तरफ अग्रसरित न हों। उनका सपना भारत को शिक्षित और संस्कारवान बनाने का था। वह चाहते थे कि प्रत्येक नागरिक पढ़-लिखकर अपने अधिकारों को जाने, जिससे विभिन्न ज्वलंत समस्याओं का समाधान स्वत: हो जाए। देश के शिक्षा पाठ्यक्रम में पं. मदन मोहन मालवीय को ज्यादा जगह देनी चाहिए। इससे राष्ट्र प्रेमी और संस्कारवान युवाओं की कोई कमी नहीं होगी। भारत को गांव प्रधान देश माना जाता है। देश की बड़ी आबादी आज भी गांवों में बसती है। पिछले कुछ वर्षों में शहरीकरण के चलते गांवों से आबादी के पलायन की समस्या को बढ़ावा मिला है। गांवों में शिक्षा और जरूरी संसाधन उपलब्ध कराकर पलायन की समस्या को रोका जा सकता है। इसके लिए पं. मालवीय के विचारों को भी समझना पड़ेगा। देश में समय-समय पर राष्ट्र विरोधी कृत्य भी देखने को मिलते हैं। इन कृत्यों में शिक्षित युवाओं की भागीदारी चिंता का विषय है। दिल्ली के नामचीन शिक्षण संस्थान में देश विरोधी गतिविधियां भी सामने आ चुकी हैं। इस प्रकार की समस्याओं से निपटने के लिए भी पं. मालवीय के जीवन और विचारों से सीख लेकर काम करने की आवश्यकता है। देशविरोधी ताकतों को सही जवाब देने के लिए भारत रत्न पं. मालवीय के चरित्र से भी सीख लेनी होगी। अकबर और बाबर जैसे मुगल शासकों की सच्चाई से भी युवा पीढ़ी को अवगत कराना होगा। इन मुगल शासकों ने सिर्फ देश में हिंदू समाज के खिलाफ साजिश रचने और भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को नुकसान पहुंचाने के कोई दूसरा काम नहीं किया था। भारत को परमाणु ताकत से मजबूत बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को विश्व बिरादरी में स्थापित करने का काम किया। देशवासियों को मोदी सरकार से काफी उम्मीदें हैं। उम्मीद की जानी चाहिए की मौजूदा सरकार पं. मदमोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों के भारत का निर्माण करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। सिर्फ सरकार ही नहीं हम सभी को मिले-जुले प्रयास करने होंगे। महामना मदन मोहन मालवीय और देशरत्न अटल बिहारी वाजपेयी को सादर नमन।