सनातन संस्कृति के अग्रणी आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि जी महाराज

देश-विदेश में भारत की ऋषि परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं आचार्य

नरेंद्र चौधरी
उदय भूमि ब्यूरो
हरिद्वार। पूज्य आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज सनातन संस्कृति के आधुनिक ध्वज वाहक हैं। देश-दुनिया में उनके करोड़ों अनुयायी हैं और आचार्य के रूप में लाखों सनातनी साधु-संतों का नेतृत्व कर रहे हैं। भारतीय सनातन संस्कृति के उत्थान और देश विदेश में संस्कृति की अलख जगाए रखने के लिए वह निरंतर प्रयासरत हैं। अपने काम की वजह से उन्हें काफी सम्मान मिलता है और उनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश के दिग्गज राजनीतिज्ञ और गणमान्य जन भी उन्हें धर्म नायक के रूप में सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। महज 6 साल की उम्र से उन्होंने खुद को सनातन धर्म के लिए समर्पित कर दिया। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम से दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर और दक्षिण काली पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी संन्यास परंपरा में शामिल हो गए। पिछले साल 14 जनवरी को आचार्य महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक होने के बाद वह सनातन धर्म के नेतृत्वकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं। जगजीतपुर स्थित आद्य शक्ति महाकाली आश्रम में उनका पहला सन्यासी दिवस भी मनाया गया था, जिसमें काफी संख्या में श्रद्धालु जुटे थे। आचार्य महामंडलेश्वर के पद पर आसीन होने के बाद कैलाशानंद गिरि जी महाराज की जिम्मेदारी भी पहले से ज्यादा बढ़ चुकी है। चूंकि निरंजनी अखाड़े के सभी नागा संन्यासी व संतों को आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में कैलाशानंद गिरि दीक्षा दे रहे हैं। इष्ट देव भगवान कार्तिकेय के बाद अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर सबसे बड़े होते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर बनने वाले काफी विद्वान होते हैं। आचार्य का मानना है कि विद्वान व्यक्ति वही होता है, जिसमें सेवा का भाव हो। अग्नि अखाड़े के बाद कैलाशानंद गिरि का जीवन श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े के लिए समर्पित हो चुका है। श्री दक्षिण काली पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद द्वारा संकलित अति दुर्लभ स्त्रोत्र संग्रह शक्तिस्तवनम का विमोचन भी हो चुका है। इस पुस्तक में अति प्राचीन स्तुति मंत्रों का संकलन किया गया है। शक्ति आराधना को समर्पित यह पुस्तक समाज से बुराइयों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अति प्राचीन मंत्रों का पुस्तक में संकलन कर महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने भारत की ऋषि परंपरा को आगे बढ़ाया है। हिंदू संस्कृति के उत्थान में भी स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज का विशेष योगदान है। वह चारों वेदों के ज्ञाता हैं। दूर-दराज-सुदूर क्षेत्रों में जाकर सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्यरत रहते हैं। लोगों में सनातन धर्म के प्रति आस्था को और मजबूत करने की मुहिम में वह शिद्दत से जुटे हैं। देश-विदेश में उनके करोड़ों की संख्या में अनुयायी हैं। प्रत्येक माह लाखों की संख्या में श्रद्धालु दक्षिण काली पीठ हरिद्वार में पहुंचते हैं। जहां स्वामी कैलाशानंद से वह आशीर्वाद लेते हैं। बिना किसी भेदभाव के वह भक्तों को आशीर्वाद देकर अपना स्नेह लुटाते हैं। सभी राजनीतिक दलों के लोग भी महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। गरीब एवं जरूरतमंदों की मदद के लिए भी वह हमेशा आतुर रहते हैं। पूरे देश में धार्मिक कार्यों को बढ़ावा देने के लिए वह अग्रसर रहते हैं। आचार्य कैलाशानंद जी कहते हैं कि देश, समाज एवं धर्म की रक्षा करना बेहद जरूरी है। इसके लिए प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए। भारत जैसे विशाल राष्ट्र में धर्म की रक्षा के लिए संत-समाज प्राचीनकाल से संघर्ष कर रहा है। संत समाज का एकमात्र मकसद प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता को बनाए एवं बचाए रखना और भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलाना है। समय-समय पर साधु-संतों ने धर्म की रक्षा की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है। इसी क्रम में स्वामी कैलाशानंद गिरि जी महाराज भी काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि संतों ने हमेशा ही समाज का मार्गदर्शन किया है। समाज के उत्थान के लिए हिंदू संस्कृति की रक्षा जरूरी है। भारत का धर्म सनातन धर्म है, यह धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। सनातन का अर्थ है जो सदैव से है और सदैव रहेगा। जिसका न प्रारंभ है और न ही अंत है और जो सदैव नवीन बना रहता है। सनातन धर्म जिन तथ्यों और सिद्धांतों पर आधारित हैं वे मानव निर्मित नहीं हैं, वे इस सृष्टि में स्वमेव अस्तित्व में आए हैं। यह सृष्टि का स्वाभाविक धर्म है, इसलिए सनातन है। संन्यास परंपरा में आचार्यं का पद बहुत बड़ा है। आचार्य का कार्य है धर्म का अनुपालन करना और धर्म की रक्षा करना। आचार्य को देवताओं के समान स्थान मिला हुआ है। निरंजनी अखाड़ा भारतीय संस्कृति में सबसे बड़ा अखाड़ा है, 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा अखाड़ा है। आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज भारतीय सनातन धर्म के सर्वोच्च पद पर आसीन होकर भारतीय संस्कृति की रक्षा और विस्तार पर काम कर रह हैं। सनातन धर्म का फैलाव किस तरह से पूरे विश्व में हो और सनातनियों का किस तरह से विश्व पटल पर सम्मान बढ़े, इसे लेकर वह लगातार प्रयासरत हैं। गाय, गंगा, संस्कृति और संस्कार ही इंसान के समृद्धि एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। निरंजनी अखाड़े में लाखों की संख्या साधु-संत हैं। इन लाखों साधु-संतों के नेतृत्वकर्ता के रूप में अचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद जी भारतीय संस्कृति में विषमता लाने वाले लोगों को पराजित कर भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म को पूर्णरूपेण स्थापित करने में जुटे हैं। आचार्य कोई साधारण मानव नहीं होता है, आचार्य व्यक्तित्व का धनी होता है, आचार्य आचरण का धनी होता है, आचार्य चरित्र का धनी होता है, आचार्य नियति का धनी होता है, आचार्य मौलिक सिद्धांतों का धनी होता है और आचार्य देवत्व को समझने वाला विशिष्ट व्यक्ति होता है। आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि जी महाराज में यह सभी विशिष्ट गुण मौजूद हैं। उनके सानिध्य से उपदेशों से, संपर्क मात्र से लोगों में सनातन धर्म के उत्थान के प्रति लगाव बढऩे लगता है।