किसान और सरकार के बीच बातचीत की गाड़ी कब दौड़ेगी पटरी पर?

लेखक:- प्रदीप गुप्ता
(समाजसेवी एवं कारोबारी हैं। राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर बेबाकी से राय रखते हैं।

किसानों का आंदोलन पिछले 9 महीने से ज्यादा वक़्त से जारी है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब समेत कई राज्यों में अगले साल की शुरुआत में विधान सभा चुनाव है, लेकिन सबकी नजरें टिकी हैं देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश पर। किसान आंदोलन का असर यूपी में क्या होगा? इधर महापंचायत के जरिए किसान अब शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हुई है, लेकिन बीजेपी की इस पर क्या राय है, जरा आप भी समझिए। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने उसी दिन मीडिया से बातचीत में किसान आंदोलन में विपक्षी राजनीतिक दलों के शामिल होने का आरोप लगाते हुए इस आंदोलन का हश्र शाहीन बाग जैसा होने की भविष्यवाणी कर दी। मुजफ्फ़रनगर के ही भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री डॉक्टर संजीव बालियान ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि साल 2022 के विधान सभा चुनाव में कोई भी महापंचायत बीजेपी को नहीं हरा सकती है।लेकिन पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने महापंचायत में किसानों की भीड़ का वीडियो शेयर करते हुए ट्वीट किया कि सरकार को इन किसानों से नए सिरे से बातचीत करनी चाहिए। वरुण गांधी के इस ट्वीट को उनकी मां और सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने भी समर्थन करते हुए री ट्वीट किया। मेनका गांधी साल 2014 में पीलीभीत से ही सांसद थीं और पीलीभीत भी किसान आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 100 से ज्यादा विधान सभा सीट आती हैं। उसमें बीजेपी के पास इस वक़्त अस्सी से ज्यादा सीटें हैं, लेकिन यह स्थिति तब बनी थी जब किसानों और खासकर जाट समुदाय ने बीजेपी का भरपूर समर्थन किया था। वहीं, साल 2012 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 110 में से केवल 38 सीटें हासिल की थीं और साल 2017 में उसकी सीटों की संख्या बढ़कर 88 तक पहुंच गई थी। इसकी एक बहुत बड़ी वजह साल 2013 के बाद जाटों का बीजेपी की तरफ झुकाव रहा। जाट समुदाय न सिर्फ यहां संख्या में ज्यादा हैं बल्कि चुनावी माहौल तय करने में भी उनका बड़ा योगदान है। जाटों की नाराजगी का तोड़ बीजेपी अन्य जातियों को लुभाने की कोशिश करके निकालेगी, लेकिन यदि बहुसंख्यक जाट बीजेपी के खिलाफ चला गया तो बीजेपी को बड़ा नुकसान होने की पूरी संभावना है। न सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बल्कि भारतीय किसान यूनियन और किसानों का संयुक्त मोर्चा अब पूरे उत्तर प्रदेश में पंचायत और सभाएं करने की तैयारी कर रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की नाराजगी बीजेपी से जरूर है लेकिन वो अभी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उनका वोट बीजेपी की बजाय किधर जाएगा, लेकिन इन सबके बीच सरकार को बातचीत के लिए कदम बढ़ाने चाहिए। बातचीत से इस आंदोलन का सम्मानजनक और स्वीकार्य हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए। इस आंदोलन के खत्म होने से देश को भी फायदा होगा। दिल्ली और आस-पास के बॉर्डर जो किसान आंदोलन की वजह से बंद हैं, उनके खुलने से भी लाखों लोगों को फायदा होगा। मेरा मानना है कि अगर किसानों का ये आंदोलन आगामी विधान सभा चुनाव से पहले खत्म हो गया तो बीजेपी को भी इसका निश्चित रूप से फायदा मिलेगा। देखना होगा कि किसान आंदोलन से निपटने के लिए सरकार भविष्य में क्या कदम उठाएगी ? समस्या का समाधान सिर्फ बातचीत के जरिए संभव है। ऐसे में दोनों पक्षों को नरम रूख अपना कर वार्ता की मेज पर आने की कोशिश करनी चाहिए।
(उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)