मिथिला हमेशा रहेगा अटल का ऋणी, अटल जी को मिथिलांचल से था विशेष लगाव

लेखक : तरुण मिश्र
(समाजसेवी एवं राजनीतिक चिंतक हैं। राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं। देश-विदेश में आयोजित होने वाले व्याख्यानों में एक प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाते हैं। वर्तमान में अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं।)

अटल जी के करिश्माई व्यक्तित्व के विषय में जितना कहा जाए, कम होगा। वह मृदुभाषी और व्यवहार कुशल होने के साथ-साथ विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनकी सोच व विचार हमेशा सर्वोत्तम रहे। आकर्षक व्यक्तित्व एवं महान विचारों के कारण वह किसी को भी अपना मुरीद बना लेते थे। अटल जी मिथिला की धरती को पावन कहते थे। मिथिला की संस्कृति और खान-पान से उन्हें खूब लगाव था। कोसी महासेतु का निर्माण कर उन्होंने मिथिलांचल के विकास की रूपरेखा तैयार की। मैथली भाषा को संविधान की अष्टम सूची में शामिल कर मिथिलांचल के नागरिकों को अपना ऋणी बनाया। मिथिलांचल उनके हृदय में बसता था। मिथिलांचल के नागरिकों और वहां के विकास के लिए उन्होंने जो किया वह कोई दूसरा नहीं कर सकता। अटल जी मधुबनी की धोती और मखान पसंद करते थे। सादगी और राजनीति में महानता के शिखर पर विराजमान महापुरुष अटल बिहारी बाजपेयी ने कोसी महासेतु का निर्माण कर मिथिला क्षेत्र के विकास की रूपरेखा तैयार की। ऐसे थे हमारे पूजनीय भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी। उनका स्मरण होते ही आंखें नम हो जाती हैं। अटल जी का निधन एक विराट व्यक्तित्व की विदाई थी। उस महापुरुष को पुण्यतिथि पर शत-शत नमन।

एक कार्यक्रम में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के साथ तरुण मिश्र। : फाइल फोटो

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी से मेरी पहली मुलाकात 14 अगस्त 1991 को दिल्ली में हुई। उस समय डॉ. मुरली मनोहर जोशी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और मेरी नियुक्ति डॉ. जोशी के सहायक के रूप में हुई थी। वाजपेयी जी से वह पहली मुलाकात मैं कभी नहीं भूल सकता। मैंने उन्हें पैर छूकर प्रणाम किया। प्रतिक्रिया में अटल जी ने मुझसे पूछा कहां के हो? मैंने जवाब दिया मिथिलांचल से। वह मुस्कुराए और कहा तुम मिथिला की पुण्य धरती से आए हो फिर किसी के पैर क्यों छूते हो। तुमने मुझे प्रणाम क्यों किया पूरा विश्व मिथिला को प्रणाम करता है। अटल जी के मुख से यह शब्द सुनकर मैं अभिभूत हो गया और एकटक उनकी तरफ देखता रहा। उन्होंने फिर मुझसे सवाल किया, तुम्हारा नाम क्या है? मैंने जवाब दिया तरुण मिश्र। मेरा जवाब सुनकर उन्होंने कहा जब तुम मेरी उम्र में आओगे तो क्या अपना नाम बदल लोगे या तरुण ही रखोगे ? मैंने जवाब दिया नहीं मैं नाम क्यों बदलूंगा। यह नाम मेरे माता-पिता ने मुझे दिया है और जीवन पर्यंत मेरा यही नाम रहेगा। उस समय तो मैं अटल जी के इन सवालों को नहीं समझ पाया। लेकिन जब उन्होंने एक कविता लिखी कि जब मैं मृत्यु शैया पर लैटूंगा तब भी मैं अटल ही रहूंगा, तब मैंने उनकी बातों के अर्थ को समझा। अटल जी से मेरी दूसरी मुलाकात पहली मुलाकात के दो महीने बाद डॉ. जोशी के सरकारी बंगले पर हुई। डॉ. जोशी को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते सरकारी बंगला आवंटित हुआ था और बंगले में गृह प्रवेश के कार्यक्रम में अटल जी आए थे। कार्यक्रम के दौरान अटल जी मेरी तरफ आए और उनका हाथ मेरे शर्ट की तरफ बढ़ा। दरअसल मैंने पैंट-शर्ट पहन रखा था और जो शर्ट मैंने पहनी थी उसमें बीच का एक बटन नहीं लगा था। शर्ट पुरानी थी और उसके बीच का एक बटन टूटा हुआ था। अटल जी ने जब यह देखा कि बटन खुले हुए नहीं हैं बल्किए टूटे हुए हैं तो उन्होंने अपनी जेब से 200 रुपए निकाले और मुझे देते हुए कहा कि एक अच्छा कुर्ता खरीद लेना। आज भी मैंने अटल जी के पैसे से खरीदे गए उस कुर्ते को सहेज कर रखा है। हालांकि वह कुर्ता अब काफी पुराना हो गया और कुछ फट भी गया है, लेकिन उस कुर्ते को देख कर अटल जी की यादें ताजा हो जाती हैं और मैं उन्हें अपने निकट महसूस करता हूं। इसके बाद अटल जी से मिलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अनवरत जारी रहा। कई मुद्दों पर वह मुझसे चर्चा करते थे। एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि तुम मेरे साथ आ जाओ। मैंने कहा कि मैं आपके साथ हूं और रहूंगा, लेकिन जोशी जी का मुझसे लगाव है।

लोग कहते हैं कि अटल जी अटल थे, वह बदलते नहीं थे। लेकिन मैं कहता हूं कि अटल जी बार-बार बदलते थे। वह अपनी उम्र, गुण, व्यवहार हमेशा बदलते रहते थे। वह जब जिस व्यक्ति से मिलते थे उसी के अनुरूप अपने को ढाल लेते थे। जब वह किसी 70 साल के बुजुर्ग से मिलते थे तो बुजुर्गों की तरह व्यवहार करते थे। जब 20 साल के नौजवान से बात करते तो उनकी भाषा नौजवानों वाली होती थी और किसी बच्चे के साथ मिलने पर पूरी तरह से बच्चा बन जाते थे। अटल जी का यह व्यवहार दूसरों को स्नेह देकर उसे अपना बना लेने का अंदाज सिर्फ इंसानों तक ही सिमटा हुआ नहीं था बल्कि वह पशुओं से भी असीम प्रेम करते थे। कुत्ते-बिल्लियों से उनका विशेष लगाव था। वह उनके साथ काफी देर तक खेलते थे। अटल जी भारतीय इतिहास की सबसे लोकप्रिय और सर्वस्वीकार्य राजनीतिक शख्सियत थे। वह जननायक के साथ-साथ महानायक थे।

कोई अटल जी को मध्य प्रदेश का मानता है तो कोई लखनऊ का। कोई उन्हें दिल्ली का कहता है तो कोई समूचे भारतवर्ष का। इसमें कोई दो राय नहीं की अटल जी ना सिर्फ भारत वर्ष के नेता थे बल्कि वह एक विश्वव्यापी ऐसे नेता थे जिनकी बातों का असर पूरे विश्व पर पड़ता था। लोग अटल जी की जन्म स्थली और कर्मस्थली से जोड़कर उन्हें वहां का बता रहे हैं, लेकिन मैं मानता हूं की अटल जी मिथिला के थे। मिथिलांचल उनके हृदय में बसता था। मिथिलावासियों और मिथिलांचल के विकास को लेकर जो उनकी भावना थी और उन्होंने जो किया वह कोई दूसरा नहीं कर सकता। मुझे याद है कि जब भाजपा की सरकार थी और अटल जी दोबारा प्रधानमंत्री बने थे। हम दोनों के बीच मिथिलांचल और बिहार को लेकर बात हो रही थी। बातचीत के क्रम में उन्होंने मुझसे पूछा तरुण यह बताओ तुम्हारे यहां से बड़े-बड़े विद्वान हुए हैं, बड़े-बड़े अधिकारी हुए हैं। आज भी दिल्ली में देखो तो तुम्हारे यहां के वरिष्ठ अधिकारियों की पूरी जमात है। सिर्फ दिल्ली ही नहीं दूसरे राज्यों के विकास में तुम्हारे यहां के लोग योगदान दे रहे हैं फिर भी तुम्हारा इलाका पिछड़ा हुआ क्यों है? मैंने जवाब दिया की हमारा इलाका प्रतिभा संपन्न है, लेकिन संसाधन हीन है। इस पर उन्होंने कहा कि मिथिलांचल के लिए कुछ करना होगा। राजमार्ग-57 का निर्माण और मिथिलांचल को जोड़ने वाले महासेतु का निर्माण अटल जी ने मिथिला के विकास को ध्यान में रखकर किया। जहां तक मुझे याद है तो कई दशकों तक मिथिलांचल के 2 महत्वपूर्ण पड़ोसी क्षेत्र मधुबनी और सुपौल एक-दूसरे से पूरी तरह से कटे हुए थे। लेकिन अटल जी ने महासेतु के माध्यम से दोनों को जोड़ दिया।

अटल जी को मधुबनी की धोती और मखान से विशेष लगाव था। वह चुरा-दही और सत्तू खाना पसंद करते थे। जब भी मैं अपने पैतृक गांव मधुबनी जिले के हटनी गांव से दिल्ली आता था तो उनके लिए धोती, मखान और सत्तू लेकर अवश्य आता था। यदि किसी बार किसी कारणवश मैं यह सब लेकर उनके पास नहीं पहुंचता तो वह मेरे गांव का नाम लेकर पूछ बैठते कि तरूण क्या तुम बहुत दिनों से हटनी नहीं गये हो। यह अटल जी का स्नेही और अपनापन स्वभाव ही था कि वह मेरे गांव और जिले के बारे में पूछते, बरसात के दिनों में वहां की बाढ़ की हालत को लेकर जानकारी लेते।

अटल जी खाने-पीने के बड़े शौकिन थे। एक बार मैं उनके साथ लखनऊ गया, जब हम लोग भोजन करने लगे तो अटल जी ने मेरी प्लेट में बहुत सारा मक्खन उड़ेल दिया। दरअसल यह एक विशेष प्रकार का मक्खन था जो अटल जी को काफी प्रिय था। मैंने कहा कि इतना मक्खन नहीं खाऊंगा। इस पर वह बोले अरे तुम्हारे यहां तो लोग 50-60 रसगुल्ले यूं ही खा लेते हैं। मैंने कहा कि 50-50 रसगुल्ले नहीं वह 300-400 रसगुल्ले खा लेते हैं। कभी आप उन्हें बुलाइये तो। इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा हां बुलाउंगा, लेकिन रसगुल्ले का खर्चा तुम्हें देना पड़ेगा। अटल जी सादगी की मूर्ति थे। अटल जी का पूरा जीवन बेदाग रहा और उनके दामन में जीवन के अंत तक कभी कोई दाग नहीं लगा। लोगों ने उन्हें अपनी गाड़ी को धक्का लगाते हुए भी देखा है। 6 रायसीना रोड से पार्लियामेंट तक पैदल जाते हुए भी देखा है। जेपी माथुर के पास एक पुरानी फिएट कार थी। इस फिएट कार के बंद होने पर मैंने खुद अपनी आंखों से अटल जी को उसे धक्का लगाते हुए देखा है। उनके जैसे समावेशी राजनीति के शिल्पकार दुर्लभ हैं। वह विरले थे। उन्होंने राजनेता के तौर पर नए प्रतिमान गढ़े और नई परंपराओं की आधारशिला रखी। विरोधियों को भी माफ कर गले लगाने का हुनर अटल जी से सीखने योग्य है। उनका व्यक्तित्व महज एक लोकप्रिय राजनेता का ही नहीं, कवि हृदय वाले व्यक्ति का भी था। वह कई बातों का जवाब कविता के माध्यम से ही दिया करते थे।

अटल जी ने विरोधी बनाए, लेकिन कोई उनका दुश्मन नहीं था। यही वजह है कि उनकी मृत्यु पर विरोधी भी खूब रोए हैं। अटल जी की याद आते ही मेरी आंखें नम हो जाती हैं और मैं उस महान पुरुष का कृतज्ञ हो जाता हूं जिसने मैथिली भाषा को संविधान की अष्टम सूची में स्थान दिया। मिथिलांचल से आए हुए एक प्रतिनिधिमंडल के साथ में अटल जी से मिला था और कहा कि आप पूछते हो ना कि तुम्हारा क्षेत्र पिछड़ा हुआ क्यों है तो इसकी एक वजह यह भी है कि हमारी भाषा समृद्ध होने के बावजूद उसके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। इस पर उन्होंने कहा यदि मैथिली भाषा को संविधान की अष्टम सूची में स्थान देने से वहां के लोगों का सम्मान होगा तो यह सम्मान देकर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करूंगा। अटल जी ने मैथिली भाषा को अष्टम सूची में स्थान देकर समस्त मिथिलांचल वासियों को अपना ऋणी बना लिया। सही मायने में तो यह ऋण कभी उतर भी नहीं सकता।