-मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में विभागीय ड्यूटी पर पहुंचे अध्यापक मनीष कुमार शर्मा को पुलिस ने किया नज़रबंद, पेंशन बहाली आंदोलन से जोड़ी जा रही कड़ी
उदय भूमि संवाददाता
गाजियाबाद। जिले में शुक्रवार को उस समय हलचल मच गई जब अटेवा के जिलाध्यक्ष और शिक्षक मनीष कुमार शर्मा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही पुलिस ने उठाकर सिहानी थाने में नज़रबंद कर दिया। मनीष कुमार शर्मा, जो सीएस निठोरा लोनी में अध्यापक हैं, विभागीय ड्यूटी के अंतर्गत अपने सहयोगियों के साथ समय से कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे थे। लेकिन पुलिस ने एहतियातन उन्हें कार्यक्रम स्थल पर प्रवेश करने से पहले ही हिरासत में ले लिया। मामले ने प्रशासनिक दखल पर सवाल खड़े कर दिए हैं क्योंकि मनीष कुमार शर्मा न केवल शिक्षक हैं बल्कि अटेवा (अध्यापक, कर्मचारी, अधिकारी पेंशनर्स अधिकार मंच) गाजि़याबाद के जिलाध्यक्ष भी हैं और लंबे समय से एनएमओपीएस आंदोलन के जरिए पुरानी पेंशन बहाली और निजीकरण के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पुलिस ने विशेष बल के साथ मनीष शर्मा को कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही उठाया और सिहानी थाने ले जाकर नज़रबंद कर दिया। यह कार्रवाई ऐसे समय की गई जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गाजियाबाद पहुंचे थे और विकसित भारत – विकसित उत्तर प्रदेश कार्यक्रम में शामिल हो रहे थे। मनीष शर्मा ने प्रशासन को आश्वस्त किया था कि वह इस कार्यक्रम में अपनी विभागीय ड्यूटी निभाने आए हैं और संगठन की ओर से किसी तरह का विरोध दर्ज नहीं कर रहे हैं। इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें नज़रबंद करने का निर्णय लिया।
मनीष कुमार शर्मा ने अपनी गिरफ्तारी पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अटेवा चोरी-छुपे कोई काम नहीं करता। हम हमेशा खुलकर, बोलकर और बताकर अपने विचार रखते हैं। आज मैं यहां विभागीय ड्यूटी पर था, लेकिन केवल इस आशंका के चलते कि मैं मुख्यमंत्री जी से पुरानी पेंशन की मांग कर सकता हूं, मुझे नज़रबंद कर दिया गया। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि आज का कार्यक्रम विकसित भारत 2047 की संकल्पना पर था, लेकिन अगर संगठनों के पदाधिकारियों की आवाज़ ही नहीं सुनी जाएगी और उन्हें थाने में बंद कर दिया जाएगा, तो ऐसे आयोजनों का महत्व ही क्या रह जाता है। प्रशासन के इस कदम को अटेवा और एनएमओपीएस से जुड़ी गतिविधियों से जोड़कर देखा जा रहा है।
मनीष शर्मा लंबे समय से पुरानी पेंशन बहाली और निजीकरण के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते आए हैं। प्रशासन को आशंका रही होगी कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के दौरान वह इस मुद्दे को उठा सकते हैं, इसी वजह से उन्हें नज़रबंद करने का कदम उठाया गया। इस पूरे घटनाक्रम ने जिले में एक नई बहस को जन्म दिया है। सवाल यह उठ रहा है कि जब कोई पदाधिकारी विभागीय ड्यूटी पर है और खुलकर कह रहा है कि वह विरोध दर्ज नहीं करेगा, तो केवल आशंका के आधार पर उसे हिरासत में लेना कहां तक उचित है? लोकतांत्रिक व्यवस्था में विचारों को दबाने और आवाज़ को रोकने का यह तरीका सही है या नहीं, इस पर चर्चा शुरू हो गई है।
















