UP सरकार के कद्दावर IAS सहित 26 अफसर फंसे, हर हाल में जमींदोज होंगे सुपरटेक के 40 मंजिला Twin Tower

नोएडा। नामचीन सुपरटेक कंपनी के 40 मंजिला 2 ट्विन टावर में अवैध निर्माण का खुलासा होने के बाद से सरकारी तंत्र में हड़कंप मचा पड़ा है। योगी सरकार इस प्रकरण में काफी गंभीर दिखाई दे रही है। सरकार अब दोषियों को कतई बख्शने के मूड में नहीं है। इसके चलते ताबड़-तोड़ एक्शन हो रहा है। अवैध निर्माण में नोएडा विकास प्राधिकरण की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। प्रारंभिक जांच-पड़ताल के बाद 3 अफसरों को निलंबित किया जा चुका है। इस केस की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) के हाथों में है। एसआईटी जांच में अब तक नोएडा के 26 अधिकारी दोषी पाए जा चुके हैं।

दोषी अफसरों में से सिर्फ 4 अफसर वर्तमान में सेवारत हैं। नोएडा में सुपरटेक के 40 मंजिला 2 ट्विन टावरों के निर्माण में गंभीर अनियमितता सामने आने के बाद से सरकारी मशीनरी की हालत खराब है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले का संज्ञान लिए जाने और कड़ी कार्रवाई के आदेश से उत्तर प्रदेश सरकार तक सकते में है। दोषियों को सबक सिखाने के लिए सरकार ने एक्शन मोड में काम शुरू कर दिया है।

नोएडा सेक्टर-93 ए में रियल्टी ग्रुप सुपरटेक की 40 मंजिला 2 इमारतें निर्माणाधीन हैं। वहां निर्माण कार्य में जरूरी मानदंडों की खुली अनदेखी की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने विगत 31 अगस्त को इस मामले में सख्त रूख अपनाया था। शीर्ष अदालत ने 3 माह के भीतर दोनों टावरों को ध्वस्त करने के निर्देश जारी किए थे। बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पूरे प्रकरण की जांच के आदेश दिए थे। तदुपरांत 2 सितंबर को एसआईटी का गठन किया गया था। एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने रविवार को कहा था कि इस प्रकरण में संलिप्त नोएडा के अधिकारियों, 4 डायरेक्टर और सुपरटेक लिमिटेड के 2 वास्तुकार के विरूद्ध राज्य सतर्कता आयोग में प्राथमिकी दर्ज की जाए।

निशाने पर हैं यह अफसर
नोएडा 2 ट्विन टावर प्रकरण में फंसे सेवानिवृत्त एवं मौजूदा अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। कुछ दोषियों पर कार्रवाई हो चुकी है तो कुछ का नंबर आना बाकी है। सेवानिवृत्त अधिकारियों में नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) मोहिंदर सिंह, तत्कालीन अपर सीईओ आर.पी. अरोड़ा, तत्कालीन अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी पी.एन. बाथम, तत्कालीन विशेष कार्याधिकारी यशपाल सिंह के अलावा नगर नियोजक एके मिश्रा, वरिष्ठ नगर नियोजक राजपाल कौशिक, मुख्य वास्तुनियोजक त्रिभुवन सिंह, उप महाप्रबंधक (ग्रुप हाउसिंग) शैलेंद्र कैरे, परियोजना अभियंता बाबू राम, प्लानिंग असिटेंट टी.एन. पटेल, मुख्य वास्तुनियोजक वीए देवपुजारी, एसोसिएट वास्तुविद एनके कपूर, सहायक वास्तुविद प्रवीण श्रीवास्तव, विधि अधिकारी ज्ञान चंद्र, विधि सलाहकार राजेश कुमार, महाप्रबंधक विपिन गौड़, परियोजना अभियंता एम.सी. त्यागी, वित्त नियंत्रक एस.सी. सिंह और मुख्य परियोजना अभियंता के.के. पांडेय शामिल हैं। जबकि सेवारत सहयुक्त नगर नियोजक ऋतुराज व्यास वर्तमान में (योजना सहायक यमुना प्राधिकरण), अनीता (यूपीसीडा), नियोजक सहायक मुकेश गोयल, सहयुक्त विमला सिंह तथा के.के. पांडेय पर कार्रवाई की जा चुकी हैं।

प्रॉपर्टी भी आएगी जांच के दायरे में
एसआईटी जांच में फंसे अफसरों की प्रॉपर्टी की जांच भी संभवत है। विजिलेंस टीम इन आरोपियों से जल्द पूछताछ कर सकती है। आरोपों की पुख्ता ढंग से पड़ताल करने के लिए यह कवायद की जाएगी। जिन सेवानिवृत्त एवं सेवारत अधिकारियों के हस्ताक्षर फाइलों में हैं, उनसे बिल्डर को लाभ पहुंचाने के लिए किए कार्य पर सवाल पूछे जाएंगे। मुख्य तौर पर कौन दोषी है, इस बावत भी पूछताछ होनी है। पूछताछ में अह्म खुलासे होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है। विजिलेंस टीम यह जानना चाहती है कि इस प्रकरण में कितनी रकम इधर-उधर की गई है। अकूत कमाई की जांच एसआईटी के अलावा अन्य एजेंसियों को भी सौंपी जा सकती है। उधर, नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) रितु माहेश्वरी का कहना है कि नोएडा प्राधिकरण ने भी आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। इसके अतिरिक्त विभागीय जांच के आदेश भी दिए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत
सुप्रीम कोर्ट से सुपरटेक कंपनी को कोई राहत नहीं मिल पाई है। कोर्ट ने सुपरटेक लि. के एमरेल्ड कोर्ट में 40 मंजिला 2 टावर गिराने के अपने पूर्व के आदेश में संशोधन की अपील से जुड़े आवेदन को निरस्त कर दिया है। इस आवेदन में कंपनी ने कहा था कि वह भवन निर्माण मानकों के अनुरूप एक टावर के 224 फ्लैटों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर देगी। इसके अलावा टावर के ग्राउंड फ्लोर पर निर्मित सामुदायिक क्षेत्र को गिराने की भी बात कही गई थी। हालाकि सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को किसी प्रकार की राहत नहीं दी है।

दिल्ली हाईकोर्ट से भी निराशा 

सुप्रीम कोर्ट के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट से भी सुपरटेक कंपनी को निराशा हाथ लगी है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक शिकायत पर सुनवाई की। इस दरम्यान रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक से कहा कि वह अपने एक घर खरीदार को अक्टूबर के अंत तक 40 लाख रुपये का भुगतान करे। इसके अलावा नवंबर के अंत तक घर खरीदार को 17 लाख रुपये का भुगतान किया जाए। जस्टिस अमित बंसल ने यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास क्षेत्र में कंपनी के एक प्रॉजेक्ट में विला का कब्जा देने में देरी के बारे में शिकायत पर सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया।