पर्यावरण और सेहत को बिगाड़ रहा वायु प्रदूषण

लेखक- राकेश कुमार भट्ट

(लेखक सामाजिक विश्लेषक है। डेढ दशक से प्रकृति, पर्यावरण और मानव संसाधन प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हुए है और कई शोध पत्र तैयार किया है। इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

प्रदूषण सेहत के लिए एक बड़ी और गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इसके अनेक कारण हैं। वायु प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता है, क्योंकि यह मनुष्यों में कई बीमारियों का कारण बन सकता है। कुछ की तो मृत्यु भी हो सकती है। वायु प्रदूषण एक ऐसा प्रदूषण है, जिसके कारण मानव स्वास्थ्य निरंतर खराब होता जा रहा है और पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए वायु प्रदूषण की रोकथाम बेहद जरूरी है। हमारा अस्तित्व स्वच्छ हवा पर निर्भर करता है और फिर भी हमारी गतिविधियां वातावरण को दूषित कर रही हैं। प्रदूषण एक प्रमुख जोखिम कारक के रूप में जाना जाता है। 2019 की शुरूआत में भारत सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसका मकसद सबसे बुरी तरह प्रभावित 122 से अधिक शहरों में 2024 तक वायु प्रदूषण के स्तर को 20-30 प्रतिशत तक कम करना है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अगले कुछ साल में भारत के लक्ष्यों में एक हजार से अधिक विद्युत चालित बसों की शुरूआत और कड़े बीएस-6 मानकों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले इंजनों का उन्नयन शामिल है। यह आशा की जाती है कि 2023 तक भारतीय सड़कों पर सभी निजी स्वामित्व के वाहनों में से 25 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) होंगे, और सभी बिजली संयंत्र अक्षय ऊर्जा का भी उपयोग करेंगे। 15 साल से अधिक पुराने या बीएस-6 उत्सर्जन मानकों से नीचे आने वाले किसी भी वाहन को शहर की सड़कों से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।

वायु गुणवत्ता और प्रदूषण मापन-

AQI Remark Color Code Possible Health Impacts
0-50 Good Minimal impact
51-100 Satisfactory Minor breathing discomfort to sensitive people
101-200 Moderate Breathing discomfort to the people with lungs, asthma and heart diseases
201-300 Poor Breathing discomfort to most people on prolonged exposure
301-400 Very Poor Respiratory illness on prolonged exposure
401-500 Severe Affects healthy people and seriously impacts those with existing diseases

मानव स्वास्थ्य पर खराब वायु गुणवत्ता के परिणाम बहुत हैं, लेकिन मुख्य रूप से हृदय प्रणाली के साथ-साथ शरीर की श्वसन प्रणाली को प्रभावित करते हैं। वायु प्रदूषकों के विशिष्ट उदाहरणों में सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, अमोनिया, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, सीएफसी और मीथेन शामिल हैं। हृदय रोग, श्वसन संक्रमण, सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज), फेफड़े का कैंसर और स्ट्रोक सहित विभिन्न प्रदूषण संबंधी बीमारियों के लिए वायु इनडोर वायु प्रदूषण और निम्न शहरी वायु गुणवत्ता को दुनिया की दो सबसे खराब जहरीली प्रदूषण समस्याओं के रूप में जाना जाता है। आज भारत में शायद ही कोई ऐसा स्थान हो जो किसी न किसी रूप में प्रदूषकों के अधीन न हो, जिस हवा में हम रोजाना सांस लेते हैं। औद्योगिक क्रांति के बाद से, लोग पृथ्वी को प्रदूषित कर रहे हैं। चूंकि औद्योगिक उत्सर्जन वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है। प्रदूषकों को इसके प्रभावों को कम करने के लिए स्रोत पर ही नियंत्रित या उपचार किया जा सकता है। हवा में प्रदूषण का एक कारण उड़ती हुई धूल है। कारखानों के परिचालन या जंगल की आग से तमाम किस्म के हानिकारक कण हवा में दाखिल हो जाते हैं, जिनसे पर्यावरण में प्रदूषण फैलता रहता है। दूसरी सबसे बड़ी वजह आबादी का बढ़ना और लोगों का खाने-पीने और आने-जाने के लिए साधन उपलब्ध करवाना है। हालांकि भारत में ऐसी कई प्रथाएं हैं, जो हवा की गुणवत्ता को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, मगर उनमें से ज्यादातर को या तो भुला दिया जाता है या ठीक ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। भारत के कई हिस्सों में, पेट्रोल और डीजल को सीएनजी गैस ईंधन वाले वाहनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है।

ईंधन प्रतिस्थापन वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का एक और तरीका है। उद्योगों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का एक अन्य तरीका मौजूदा उपकरणों को संशोधित और बनाए रखना है ताकि प्रदूषकों का उत्सर्जन कम से कम हो। यह प्रदूषण ओजोन की परत को पतला करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। जहां पर वायु को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक ज्यादा हो जाते हैं, वहां पर आंखों में जलन, छाती में जकड़न और खांसी आना एक आम बात है। कुछ लोग इसे महसूस करते हैं और कुछ लोग इसे महसूस नहीं करते, मगर इसकी वजह से सांस फूलने लगती है। बच्चे, बड़ों की तुलना में अधिक नाजुक होते हैं इसलिए उनके ऊपर वायु प्रदूषण का प्रभाव अधिक पड़ता है, जिसकी वजह से बच्चों में ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां हो जाती हैं। भारत में यह मुद्दा इतना गंभीर हो गया है कि वैज्ञानिक बड़ी संख्या में मौतों का श्रेय वायु प्रदूषण के लगातार बढ़ते प्रभावों को देते हैं। वास्तव में प्रदूषित हवा हर साल लोगों को मारती है, क्योंकि हवा इतनी जहरीली होती है कि काम करना असंभव हो जाता है। आधुनिक औद्योगीकरण के साथ-साथ पिछले एक दशक में धुंध संकट पर चुनौतियां नाटकीय रूप से बढ़ रही हैं। जिनमें से एक तेजी से शहरीकरण के कारण निर्माण धूल उत्सर्जन है। धूल नियंत्रण के उपाय किसी भी निर्माण स्थल पर लागू होते हैं। जहां पूरे परिदृश्य में धूल से वायु और जल प्रदूषण की संभावना होती है।

विकासशील देशों में धूल न्यूनीकरण के दृष्टिकोण से बहुत कम शोध किया गया है। धूल नियंत्रण में निर्माण के दौरान धूल की सतह और वायु परिवहन को कम करने या रोकने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रथाएं शामिल हैं। नगर के धुंध के स्रोत कई और जटिल हैं। नई दिल्ली में चारों ओर घना स्मॉग होता है, तो यह सुरक्षित वायु गुणवत्ता के स्तर से 20 गुना अधिक हो जाता है। वास्तव में प्रदूषित हवा हर साल मलेरिया या तपेदिक से अधिक लोगों को मारती है। वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिससे ज्यादा कर्मचारी घर पर ही बैठकर काम करें, और अब सूचना तकनीक के आ जाने से यह संभव भी है, जिससे उनका आने-जाने का खर्च भी नहीं होगा और वायु में प्रदूषण भी नहीं बढ़ेगा। वायु प्रदूषण की रोकथाम सार्वजनिक परिवहन और कारपूलिंग का उपयोग, जब वे उपयोग में न हों तो लाइट बंद कर देना, उत्पादों का पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण, कचरा जलाने और धूम्रपान करने से, पटाखों के प्रयोग से बचना शानदार तरीका है। इसके अलावा छोटे शिशु, अस्थमा के मरीज, फेफड़ों के मरीज को बाहर जाने से रोकें, पैदल चलें, बाइक चलाएं या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। घर के भीतर बायोमास जलाने से बचें। पौधे लगाएं, हवा को शुद्ध करने वाले इनडोर पौधों को रखें। भोजन में विटामिन सी और ए युक्त भोजन का आहार करना चाहिए। अधिक प्रदूषण बढ़ने पर घर से केवल जरूरी काम हो, तो बाहर निकले, किंतु मास्क का उपयोग करना न भूले।