नफरत की राजनीति और रिटायर्ड नौकरशाह

मोदी सरकार के काम-काज के तौर-तरीके पर देश में अब रिटायर्ड नौकरशाह 2 धड़ों में बंट गए हैं। एक धड़ा जहां सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है तो दूसरा धड़े ने सरकार का बचाव किया है। दोनों धड़ों की तरफ से अलग-अलग पत्र जारी किए गए हैं। यह मामला अब सियासत में भी सुर्खियां बटोर रहा है। इसके पहले भी रिटायर्ड नौकरशाहों के बीच जुबानी जंग सामने आ चुकी है। देश में कुछ दिन पहले सांप्रदायिक हिंसा की सिलसिलेवार घटनाएं प्रकाश में आई थीं। खासकर रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव शोभा यात्रा निकाले जाने पर कई राज्यों में हिंसा देखने को मिली थी।

दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों में शोभा यात्रा पर एक समुदाय विशेष के लोगों ने पथराव कर माहौल बिगाड़ दिया था। दिल्ली के जहांगीरपुरी क्षेत्र में भी शोभा यात्रा पर पथराव होने पर काफी बवाल मचा था। सांप्रदायिक हिंसा की इन घटनाओं पर देशभर में खासा हंगामा खड़ा हो गया था। इस बीच मोदी सरकार के पक्ष और विपक्ष में रिटायर्ड नौकरशाह सामने आ गए हैं। एक गुट ने मोदी सरकार पर नफरत की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है तो दूसरे गुट ने सरकार को बेवजह बदनाम करने की बात कही है।

रिटायर्ड नौकरशाहों के बीच की यह जंग दिलचस्पी होती दिखाई दे रही है। 197 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, नौकरशाहों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में पहले लिखे गए पत्र की मंशा पर सवाल उठाया गया है। दरअसल कुछ दिन पहले पूर्व राजनयिकों, आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अधिकारियों के एक समूह ने कॉन्स्टीयूशन कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) के बैनर तले पीएम मोदी को पत्र लिखकर उनसे नफरत की राजनीति को समाप्त करने के लिए कहा था। पत्र में हाल-फिलहाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर चिंता जाहिर की गई थी। इसके जवाब में 197 सेवानिवृत्त अधिकारियों ने पीएम को पत्र लिखा है।

पत्र में उन्होंने कहा है कि यह उन अधिकारियों का बार-बार अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने का एक प्रयास है, वास्तविकता में ये जानबूझ कर किया गया मोदी सरकार का विरोध है, जिसे यह समूह समय-समय पर करता है। उन्हें लगता है कि ऐसा कर वे जनता की राय को सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ आकार दे सकते हैं। जबकि ये उनकी हताशा दिखाता है क्योंकि जनता अभी भी मोदी के साथ है। हालिया राज्य चुनावों के नतीजों से यह स्पष्ट हो गया है। इस पत्र पर सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रमोद कोहली, पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल और यूपीएससी के पूर्व सदस्य और दिल्ली पुलिस आयुक्त बी.एस. बस्सी आदि के हस्ताक्षर हैं। पत्र में सीसीजी पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों पर वर्तमान सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश का आरोप लगाया गया है।

इसके अलावा पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा पर चिंता न जाहिर कर दोहरे मापदंड से चीजों को देखने का आरोप लगाया गया है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आबादी के लिहाज से भी चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर आता है। कुछ देशों में आज भी लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही देखने को मिल रही है। इनमें चीन, रूस, नॉर्थ कोरिया, पाकिसतान, अफगानिस्तान जैसे देश प्रमुख हैं। भारत में 2014 में मोदी सरकार का आगाज होने के बाद से कई क्षेत्रों में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। मोदी सरकार ने कई ऐसे मुद्दों का समाधान कर दिया, जो आजादी के बाद से हमेशा तनाव पैदा करते रहे थे।

इनमें अयोध्या में भव्य राम मंदिर का मामला हो या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का मसला। मौजूदा सरकार हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखती है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास में सरकार की मंशा साफ देखने को मिलती है। सरकार के अच्छे कार्यों पर भी विपक्ष अक्सर हाय-तौवा मचाता रहा है। सरकार को देश-दुनिया में बदनाम करने के लिए समय-समय पर बुद्धिजीवियों ने अवार्ड वापसी की मुहिम तक चलाई थी। सरकार का विरोध या आलोचना करना गलत नहीं है, मगर बेवजह के मुद्दों को उठाकर सरकार के खिलाफ माहौल बनाना भी कतई तर्कसंगत नहीं है। जिन रिटायर्ड नौकरशाहों ने मोदी सरकार पर नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया है, उन्हें यह क्यूं नहीं दिखता कि धार्मिक जुलूसों के दौरान माहौल खराब करने वालों को ऑक्सीजन-पानी कहां से मिल रहा है?

आजादी के बाद से देश में 80 फीसदी आबादी को हमेशा दबाने की कोशिश होती रही है। भाजपा के फायरब्रांड सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हाल ही में महत्वपूर्ण बयान दिया था। राज्यसभा सांसद स्वामी ने कहा था कि देश में हिंदू समाज को बार-बार समझौता करना पड़ा है। यह परंपरा कतई ठीक नहीं है। एक तरफ से सांसद स्वामी ने उन राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों को आइना दिखाने की कोशिश की है, जो बार-बार मुस्लिम समाज की पैरोकारी में सामने आ जाते हैं। इन दलों और बुद्धिजीवियों को मुस्लिम समाज का शुभचिंतक बनने की बजाए उनकी कमियों के बारे में अवगत कराना चाहिए। ऐसा न होने पर स्थिति में सुधार होना संभव नहीं है।