नई आबकारी नीति में खेला, केजरीवाल सरकार की ईमानदारी पर सवाल

दिल्ली में नई आबकारी नीति वापस होने के बावजूद घमासान थमा नहीं है। नई आबकारी नीति में खेला करना केजरीवाल सरकार को अब काफी भारी पड़ रहा है। सीबीआई जांच शुरू होने से सियासत और ज्यादा गर्मा गई है। दिल्ली सरकार के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तक सीबीआई जांच की आंच पहुंच चुकी है। सीबीआई जांच में तेजी देखने को मिली है। सीबीआई टीम द्वारा डिप्टी सीएम के आवास के अलावा विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी किए जाने से विपक्ष मानो सदमे में आ गया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है। सरकार के मुखिया आप संयोजक अरविंद केजरीवाल हैं।

केजरीवाल के बेहद करीबी एवं डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर आबकारी विभाग की भी जिम्मेदारी है। इसके चलते वह सीबीआई जांच के लपेटे में आ गए हैं। पहले जान लेते हैं केजरीवाल सरकार की नई आबकारी नीति के विषय में। सरकार ने आबकारी नीति लागू करने से पहले दावा किया था कि इससे शराब की बिक्री में ना सिर्फ पारदर्शिता आएगी बल्कि सरकारी खजाना भी बढ़ेगा। इसके अलावा नेताओं के करीबियों की कमाई पर कैंची चल सकेगी, मगर नई आबकारी नीति लागू होने के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका था। दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर 2021 को नई आबकारी नीति लागू की थी। इसके तहत दिल्ली में शराब बिक्री के कारोबार से सरकार का कोई लेना-देना नहीं रह गया था।

पहले सरकारी दुकानों से शराब की खुदरा बिक्री होती थी। नई आबकारी नीति लागू होने के बाद दिल्ली सरकार द्वारा संचालित तकरीबन 600 शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया था। केजरीवाल सरकार को उम्मीद थी कि नई पॉलिसी से शराब की खरीदारी और ज्यादा आकर्षक होने के साथ-साथ राजस्व में आश्चर्यजनक वृद्धि हो पाएगी। नई पॉलिसी के अंतर्गत सरकार की तरफ से 850 शराब की दुकानों को रिटेल लाइसेंस जारी किए गए थे। इसमें शराब के 266 ठेके प्राइवेट दिए गए थे। शराब की इन दुकानों को 32 जोन में बांटा गया था। दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति पर विपक्ष शुरू से हमलावर रहा था।

दरअसल शराब की दुकानों की संख्या बढ़ने से कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति पैदा हो गई थी। इसके अलावा गली-मौहल्लों में शराब की बिक्री होने से नागरिकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। शराब की दुकानों के बाहर शाम ढलने पर बेवड़ों की भीड़ जुट जाती थी। बेवड़े अक्सर शराब पीकर हुड़दंग मचाते। राह चलती युवतियों एवं महिलाओं से अभद्रता करते थे। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि नई आबकारी नीति से महिलाओं की सुरक्षा प्रभावित हुई है। हालाकि नई पॉलिसी लागू होने के उपरांत शराब की दुकानों की संख्या में निरंतर कमी आती गई। इसके कई कारण रहे। वित्तीय नुकसान होने के कारण शराब की कई दुकानें बंद हो गई थीं।

मई 2022 में दिल्ली में शराब की लाइसेंसशुदा दुकानें 849 से घटकर 649 पर आ गई थीं। जबकि जून में इन दुकानों की संख्या घटकर सिर्फ 464 रह गई। शराब विक्रेताओं ने भी आवाज उठानी शुरू कर दी। उनका कहना था कि मोटी लाइसेंस फीस चुकाने के बाद बिल्कुल भी बचत नहीं हो रही है। बिक्री घटने से कई कारोबारियों को भारी हानि उठानी पड़ी थी। मजबूत होकर उन्होंने इस कारोबारी से पांव पीछे खींच लिए थे। दिल्ली में नई आबकारी नीति पर बवाल बढ़ने के बाद उप-राज्यपाल वीके सक्सेना ने विभागीय जांच के आदेश दे दिए थे। जांच रिपोर्ट आने के बाद 11 वरिष्ठ अधिकारियों को सस्पेंड तक कर दिया गया था। नई एक्साइज पॉलिसी में नियमों की अनदेखी कर टेंडर दिए गए थे।

तदुपरांत सीबीआई जांच की सिफारिश की गई। सीबीआई जांच शुरू होने से पहले केजरीवाल सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। सरकार ने 31 जुलाई आते-आते नई आबकारी नीति को वापस लेने में भलाई जानी। यानी एक अगस्त से दिल्ली में पुरानी पॉलिसी लागू हो चुकी है। नई आबकारी नीति पर घिरने के बाद केजरीवाल सरकार अपने बचाव में लगातार सफाई दे रही है। सरकार ने कहा कि पुरानी आबकारी नीति से सालाना लगभग 6 हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिलता था। जब पारदर्शी ढंग से नीलामी हुई, तो सालभर में 850 दुकानों से 9.30 हजार करोड़ का राजस्व आना था। सालभर में सरकार की नई पॉलिसी से आय डेढ़ गुना बढ़ जाती। नई पॉलिसी से भ्रष्टाचार रूक जाता।

केजरीवाल सरकार ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। केजरीवाल सरकार का कहना था कि पहले कुछ प्राइवेट दुकानें थीं, जिनके लाइसेंस अपने दोस्तों को दिए जाते। लाइसेंस फीस भी कम थी। नेताओं के ड्राइवर और नौकरों के नाम थे। भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया गया था, मगर सरकार के अच्छे काम को भाजपा पचा नहीं पाई। उधर, केजरीवाल सरकार को अब डर सता रहा है कि नई आबकारी पॉलिसी के चक्कर में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया बुरी तरह फंस सकते हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कुछ समय पहले यह आशंका जाहिर कर दी थी कि भाजपा सरकार षडयंत्र के तहत मनीष सिसोदिया को भेज भेजने की कोशिश में है।

वैसे नई पॉलिसी के बावजूद सार्थक परिणाम न मिल पाने के बावजूद केजरीवाल सरकार अपनी कमियों को स्वीकार नहीं कर रही है। आबकारी मंत्री सिसोदिया ने भी पिछले दिनों माना था कि नई पॉलिसी के बाद भी सरकार को राजस्व का भारी घाटा उठाना पड़ा है। उधर, सीबीआई जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की परेशानी बढ़ना भी तय हैं। चूंकि एलजी वीके सक्सेना द्वारा कराई गई जांच के बाद दिल्ली सरकार के माथे पर बल पड़ते साफ दिखाई दिए थे। नई पॉलिसी में यदि कोई खेला नहीं हुआ था तो केजरीवाल सरकार को जांच का सामना करने से बचना नहीं चाहिए।

देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा। वहीं, भाजपा ने नई आबकारी नीति की सीबीआई जांच शुरू होने के बाद आप सरकार की घेराबंदी तेज कर दी है। भाजपा का आरोप है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गड़बड़ी की पहले से जानकारी थी, मगर वह सब-कुछ जानकर भी अंजान बने रहे। भाजपा ने इस पूरे खेल में असली खलनायक केजरीवाल को बताया है। बहरहाल दिल्ली में यह कोई पहला मौका नहीं है, जब सत्ता और विपक्ष में घमासान छिड़ा हो। इसके पहले भी भाजपा और आप किसी ना किसी मुद्दे पर एक-दूसरे की टांग खींचते रहे हैं।

सीएम अरविंद केजरीवाल को सिंगापुर जाने की अनुमति न मिलने पर आप ने आसमान सिर पर उठा लिया था। केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली के शिक्षा मॉडल का प्रजेंटेशन करने के लिए उन्हें सिंगापुर में आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था, मगर केंद्र सरकार ने इस यात्रा में बेवजह रोड़े अटका दिए थे। फिलहाल नई आबकारी नीति पर भाजपा और आप आमने-सामने हैं। यह विवाद कहां जाकर रूकेगा अभी इस बारे में कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं है, मगर यह तय है कि नई आबकारी नीति आप सरकार के लिए सिरदर्द जरूर बन गई है।