मानसून के दौरान सुरक्षित पेयजल प्रबंधन

लेखक- राकेश कुमार भट्ट     

(लेखक सामाजिक विश्लेषक है। डेढ दशक से प्रकृति, पर्यावरण और मानव संसाधन प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हुए है और कई शोध पत्र तैयार किया है। इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है) 

भारत में पेयजल की सुलभता केवल किसी बर्तन में द्रव्य से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि सामाजिक़ गरिमा, अवसर व समानता जैसे सार्वभौमिक मुद्दों को भी रेखांकित करता है। सुरक्षित जल आपूर्ति एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का भी आधार होती है, पर फिर भी दुर्भाग्यवश आज भी इसे विश्व स्तर पर उतनी प्रमुखता नहीं दी गई है। एक शोध अनुमान के अनुसार पेयजल से होने वाले रोगों के लिए भारत पर प्रतिवर्ष लगभग 42 अरब रुपए का आर्थिक बोझ पड़ता है। भारत में अभी भी लगभग 50 प्रतिशत से भी कम आबादी के पास पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध है। इस संबंध में डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पेयजल ऐसा होना चाहिए जो स्वच्छ, शीतल, स्वादयुक्त तथा गंधरहित हो और उसका पीएच मान 7 से 8.5 के मध्य हो। मैं अगर स्पष्टता से कह सकूं तो यह हम सबकी नैतिक और राजनीतिक विफलता है कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां उच्चस्तरीय तकनीकी नवाचार और सफलता तो है, लेकिन लाखों लोगों के पास साफ पीने का पानी नहीं है। हम पीछे लौट कर चीज़ों को बदल तो नहीं सकते, लेकिन हमें अपनी विफलताओं को स्वीकार करना होगा और इस अवसर का इस्तेमाल उन प्रणालीगत ख़ामियों को दूर करने में किया जाना होगा, जिनसे यह संकट फलता-फूलता रहा है। जल निकायों के पर्यावरण प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव कम करने और सकारात्मक व प्रभावी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके लिए सामूहिक भागीदारी भी बहुत जरूरी है। तमाम विकसित देश सामूहिक भागीदारी के जरिए अपने पेयजल को शुद्ध बनाने की प्रक्रिया में लगे हैं, लेकिन विकासशील देशों में जागरूकता का अभाव होने की वजह से पेयजल शुद्धता पर उस तरह का ध्यान नहीं दिया जा सका है, जिसकी जरूरत है। इसके लिए यह आवश्यक है कि जल दोहन, उनके वितरण तथा प्रयोग के बाद जल प्रवाहन की समुचित व्यवस्था हो। सभी विकास योजनाएं सुविचरित और सुनियोजित हों, कल-कारखाने आबादी से दूर हों आदि। इसी क्रम में हम सब अवगत है कि बाढ़ सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे आम और व्यापक है। बाढ़ पीने के पानी की व्यवस्था के लिए एक विशेष खतरा है, क्योंकि बाढ़ का पानी अक्सर दूषित पदार्थ जो उपभोक्ताओं को बीमार कर सकते हैं, को अपने साथ ले आता है। बाढ़ मानव स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करती हैं। फिर भी, हालांकि पीने के पानी की गुणवत्ता पर बाढ़ के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जाना जाता है। शुद्ध और साफ जल का मतलब है कि वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अशुद्धियों और रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं से मुक्त होना चाहिए। वरना यह हमारे पीने के काम नहीं आ सकता है। विकास की प्रक्रिया में भारत में बने बड़े बांध सूखा एवं बाढ़ दोनों के लिए जिम्मेदार हैं। यह प्रक्रिया भारतीय चिंतन के अनुरूप नहीं है। इस देश के दर्शनशास्त्र ने कभी भी नदियों की अविरल धारा को अवरूद्ध नहीं किया। संक्षेप में नदियों की प्राकृतिक बाढ़ से दूर-दूर तक के प्रदेशों में हर वर्ष भूजल स्तर कायम रहता था और जमीन में नमी बने रहने से सूखे के प्रकोप से भी रक्षा होती थी। उचित गहराई पर भूजल के प्रवाहित होने से जमीन की धुलाई होती थी और उसकी उपजाऊ शक्ति वर्ष दर वर्ष बनी रहती थी। नहर के पानी की सिंचाई से ज़मीन की धुलाई नहीं हो पाती और धीरे-धीरे जमीन की उर्वरक शक्ति का भी ह्रास होता है। नदियों पर किए गए अत्याचारों का फल तो इस देश की जनता को जरूर भोगना पड़ेगा। इसके साथ ही समुचित और सुरक्षित पेयजल प्रबंधन हेतु हैंडपंप से जल निकास के लिए पुख्ता नालियां बनाएं एवं उसके पास गंदगी न होने दें। खुले कुएं के पानी को ब्लीचिंग पाउडर डालकर नियमित रूप से जीवाणु रहित कर ही उसे पीने के काम में लें। प्राइवेट टैंकरों द्वारा वितरित जल में वितरण से आधा घंटा पूर्व टैंकर की क्षमता के अनुसार ब्लीचिंग पाउडर का घोल एवं जल संग्रह की टंकी के आस-पास स्वच्छ वातावरण रखें। जल में जीवणु का नाश करने के लिए लगभग 15 लीटर में 2 क्लोरीन की गोलियां (500 मिलीग्राम) या हर 1000 लीटर पानी में 3 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का घोल बनाकर डालें एवं आधे घंटे बाद ही उपयोग में लें। कुएं के पानी को कीटाणुरहित करने के लिए उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग प्रभावी रहता है। तांबे के बर्तन में रखें तो यह अन्य बर्तनों की अपेक्षा सर्वाधिक शुद्ध रहता है। एक गैलेन पानी को दो ग्राम फिटकरी या बीस बूंद टिंचर आयोडीन या ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर शुद्ध किया जा सकता है। चारकोल, बालू युक्त बर्तन से छानकर भी पानी शुद्ध किया जा सकता है। पानी को साफ और पीने योग्य बनाने के लिए अब ढेरों तरीके मौजूद हैं, पर पानी को साफ करने का सबसे पुराना तरीका है उसे उबालना ही है। दुनियाभर में आज भी इस परंपरागत तरीके को लाखों लोग अपनाते हैं।