बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी जरूरतों पर ध्यान नहीं

गौरव पांडेय
(लेखक सामाजिक, पर्यावरण एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)     इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

कोई भी सरकार आम बजट आम जनता की सहूलियत व सुविधाओं के लिए बनाती है या फिर बार-बार पूंजीपतियों के हितों को तवज्जो देती है। इसे लेकर अधिकांश लोग गलत-फहमी में रहते हैं और इधर-उधर की तरह-तरह की बातें करते आए हैं। हालांकि कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाएं सबकी प्राथमिकताओं में शामिल है, इसलिए हमने बजट 2022 के बहाने डॉक्टरों से ही यह जानने व समझने की कोशिश की है कि इस साल के बजट से सरकार से उनकी क्या-क्या अपेक्षाएं हैं और वह आम जनता व खास तबके के साथ-साथ इस स्वास्थ्य सिस्टम के लिए कितना जरूरी है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि पेशेवर स्वास्थ्य कर्ताओं ने उन अनछुए पहलुओं को भी उठाया है, जिसके बारे में आम लोग सोच भी नहीं सकते हैं। सबके लिए आवश्यक मेडीक्लेम पॉलिसी, सरकारी व निजी चिकित्सा दर, दवा की कीमत, नियमित स्वास्थ्य जांच, मोबाइल चिकित्सा वाहन और स्वास्थ्य मार्च की जरूरत आदि ऐसी सुविधाएं हैं, जिस पर यदि ध्यान दिया जाएगा तो देश की स्वास्थ्य सुविधाओं में बड़ा बदलाव आ सकता है।

चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा पर बहुत तवज्जो देने की जरूरत है। डॉक्टर तो हर रोज कभी मरीजों की कमियों से तो कभी रोगों की आक्रामकता से जंग लड़ता है और दुश्मन रूपी बीमारी कभी-कभी ना आकर के रोज ही सुरसा सा मुंह बाए खड़ी रहती है। ऐसे में जिनके पास मेडिक्लेम पॉलिसी है या जिन्हें उनकी कंपनी की तरफ से सरकारी या निजी चिकित्सा सुविधा दिलवाने का प्रावधान है, वह तो अस्पतालों में जाकर आसानी से इलाज करा लेते हैं। लेकिन अधिकतर लोग जो मध्यमवर्गीय या बिलो पावर्टी लाइन में आते हैं, उन्हें इलाज कराने के लिए बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में इस वर्ग के लिए चिकित्सा सुविधाओं को और आगे बढ़ाने की आज जरूरत है। हम यह नहीं कहते कि हर चीज मुफ्त में उपलब्ध हो, लेकिन सरकार को चाहिए कि पीपीपी मॉडल पर प्राइवेट अस्पतालों से टाईअप कर और इंश्योरेंस कंपनियों से टाईअप करके एक नेशनल ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी बने, जिसका प्रीमियम बहुत ही कम हो और जिसका कवरेज ज्यादा से ज्यादा हो, जिससे सामान्य बीमारियों का इलाज एवं सर्जरी आसानी से की जा सके।

वहीं, गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए सरकार पूर्ण रूप से मदद करें। प्राय: यह देखा गया है कि जो लोग चिकित्सा पर बहुत ज्यादा खर्च नहीं कर सकते, वह बीमारी होने पर ही डॉक्टर के पास जाते हैं। ऐसे में शुरूआती स्टेज पर बीमारियां पकड़ में नहीं आती हैं। अत: सरकार को चाहिए कि हर एक सरकारी अस्पताल में मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच पैकेज लागू किया जाए, जिससे 40 वर्ष से अधिक के उम्र के व्यक्ति को कराना आवश्यक हो। साथ ही निजी अस्पतालों के साथ बहुत ही कम रेट पर इसका टाईअप किया जाए, जिसमें निजी अस्पताल भी खुशी-खुशी देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाने के लिए आगे आएं। मोबाइल हेल्थ यूनिट सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर हर एक व्यक्ति का चेकअप करे, इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। चिकित्सा एवं चिकित्सा शिक्षा पर ज्यादा बजट एलोकेट किया जाना चाहिए और सरकार को चाहिए कि नए हॉस्पिटल बनाने के लिए लोन और जमीन पर ज्यादा सब्सिडी दे और यह सुनिश्चित करे कि जिन्हें यह लोन और सब्सिडी मिल रही है, वह कम से कम 40 प्रतिशत  बिलो पावर्टी लाइन वालों के लिए निश्चित रखें, जिसका ऑडिट सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी द्वारा किया जाए।

केंद्रीय सरकार स्वास्थ्य योजना-सीजीएचएस के रेट सन 2014 से अभी तक रिवाइज नहीं किए गए हैं। ऐसे में अस्पतालों की आर्थिक व्यवस्था में असंतुलन हो रहा है। सरकार को चाहिए कि जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और हर चीजों के रेट बढ़ रहे हैं, सरकारी तनख्वाह भी बढ़ रही है, ऐसे में केवल डॉक्टरों और हॉस्पिटलों के साथ रेट ना बढ़ाना उचित नहीं है, विशेषकर बड़े शहरों में। वहीं, दूसरी तरफ हम देखते हैं कि सरकारी अधिकारी हवाई जहाज और पांच सितारा होटलों में रुकते हैं और यदि उनका वह खर्चा देख लें तो आप हतप्रभ रह जाएंगे। लेकिन अस्पतालों के ऊपर खर्च करने के लिए उनके इलाज के रेट इतने कम रखे गए हैं, जो अब छोटे शहर के अस्पतालों में भी वह रेट उपलब्ध नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हम बात कर लें तो एक सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को दिखाने के लिए आज 500 से 1000 रुपए की जरूरत पड़ती है, लेकिन सीजीएचएस का यह रेट मात्र 150 है। फार्मा कंपनियों द्वारा दवाइयों के ऊपर लिखे गए एमआरपी और होलसेल के प्राइस में बहुत अंतर है, जिसका लाभ जनता को मिलना चाहिए। क्योंकि हेल्थ केयर लग्जरी नहीं है बल्कि यह एक अनिवार्य आवश्यकता है। कई बार तो यह प्राण रक्षा के लिए नितांत आवश्यक हो जाती हैं। ऐसे में सरकार को और फार्मा कंपनियों को चाहिए कि कम से कम प्रॉफिट मार्जिन पर दवाइयों को उपलब्ध कराया जाए, जिससे जनता को लाभ मिल सके। साथ ही दवाई बनाने में काम आने वाले कच्चे माल का उत्पादन भारत में बड़े पैमाने पर होना चाहिए। जब चीन और अन्य देशों से कच्चे माल की सप्लाई आनी बंद हो गई तो भारत में दवाइयों का बनना लगभग बंद सा हो गया। हम आज बड़े-बड़े धार्मिक स्थलों को बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। यह गलत नहीं है, लेकिन  यह भी सोचना चाहिए कि देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुसार हमें हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेजे का भी निर्माण करना चाहिए, जिससे जरूरतमंद को सही समय पर इलाज मिल सके और वह एक दुख पूर्ण जीवन या मृत्यु के मुंह में न समा जाए। कुपोषण की मार झेल रहे लोगों के लिए सरकार अनाज तो बांट देती है लेकिन क्या उस अनाज में उतना प्रोटीन होता है जितना कि लोगों को जरूरत है। यदि हम सामान्य व्यक्ति की बात करें तो प्रति किलोग्राम 1 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता प्रतिदिन होती है, और सरकार द्वारा बांटे जाने वाला अनाज यह पूरी नहीं कर पाता। ऐसे में हम भयंकर माल डिफिशिएंसी सिंड्रोम का सामना कर रहे हैं।

सरकार को चाहिए कि प्रोटीन सप्लीमेंट भी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत ही बांटे जाएं, और जो लोग मध्यम वर्ग के हैं या जिनके पास बीपीएल कार्ड नहीं है, उन्हें भी रियायती दरों पर यह प्रोटीन सप्लीमेंट उपलब्ध होने चाहिए। क्योंकि एक स्वस्थ नागरिक ही स्वस्थ समाज बना सकता है। यदि एक व्यक्ति बैलेंस डाइट लेता है, जिसमें उसकी स्वास्थ्य संबंधी प्रतिदिन की जरूरतें पूरी होती हैं तो उसे बहुत सारी होने वाली बीमारियों से बचाया जा सकता है। ऐसे में अस्पतालों के ऊपर भी कम भार पड़ेगा और लोग भी ज्यादा स्वस्थ रहेंगे, इस पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है। डॉक्टरों के लिए एवं स्वास्थ्य कर्मियों के लिए हर सरकारी अस्पताल एवं निजी अस्पताल में सब्सिडी पर जिम की व्यवस्था होनी चाहिए और हर हेल्थ केयर वर्कर को 1 दिन में कम से कम आधा घंटा उस जिम में जाना मैंडेटरी हो, क्योंकि एक स्वस्थ एवं फिट चिकित्सा कर्मी बेहतर एवं ठंडे दिमाग से अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर सकता है। जिससे वह एक अच्छा इलाज भी प्रदान करने में सफल हो सकता है। प्रत्येक अस्पताल को अपने क्षेत्र में साल में दो बार स्वास्थ्य मार्च करना जरूरी होना चाहिए, जिसमें अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी अपने क्षेत्र की जनता को एक प्रोसेशन या मार्च निकाल कर लोगों के साथ मिलें और उन्हें स्वस्थ रहने के प्रति जागरूक करें। इसमें स्थानीय प्रशासन, नगर निगम, नगरपालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों का सहयोग हो और मीडिया के माध्यम से भी इसको प्रचारित किया जाए।