फिर संकट में अर्थव्यवस्था, दूसरों के घर की आग में झुलसेगा भारत

यूक्रेन और रूस के बीच छिड़ी जंग ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। बेशक यह सिर्फ 2 देशों की लड़ाई है, मगर निकट भविष्य में इसका असर विश्व समुदाय पर पड़ना लाजमी है। रूस के आक्रामक रूख के बावजूद यूक्रेन पीछे हटने को तैयार नहीं है। यूक्रेन ने युद्ध मैदान से पीछे हटने से साफ इंकार कर दिया है। इस बीच थर्ड वर्ल्ड वॉर की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा रहा है। युद्ध किसी चीज का हल नहीं है। इसके बावजूद अक्सर युद्ध को टालना मुमकिन नहीं हो पाता। यूक्रेन और रूस की भिड़ंत से निर्दोष नागरिकों की जान जा रही है।

इसके अलावा अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने का खतरा बढ़ गया है। यूक्रेन और रूस में टकराव के बाद से अर्थव्यवस्था को लेकर जिस प्रकार की खबरें सामने आ रही हैं, वह वाकई में चिंता को बढ़ाने वाली हैं। यूक्रेन-रूस विवाद से भारत का भले ही कोई लेना-देना नहीं है, मगर भारत को भविष्य में एक लाख करोड़ का नुकसान होने की संभावना जाहिर की जा रही है। यानि भारतीय नागरिकों को बेवजह की मुसीबत का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। उद्योग जगत भी इस नई समस्या के चलते तनाव में घिरा दिखाई दे रहा है।

दरअसल कोरोना काल में उद्योग जगत को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। मार्च 2019 के बाद से बिगड़ी स्थिति अब तक सुधर नहीं पाई है। खासकर एमएसएमई की हालत सबसे ज्यादा खराब है। कोरोना काल की मुश्किलों से अभी तक उबर नहीं पाए एमएसएमई के लिए मानो संकट का नया दौर दरवाजे पर दस्तक देने को तैयार है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट से भी एमएसएमई की मुराद पूरी नहीं हो पाई थी। कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि का सिलसिला बदस्तूर जारी है। यूक्रेन-रूस जंग के बाद महंगाई में और बढ़ोत्तरी होने की संभावना बढ़ गई है।

निकट भविष्य में रसोई गैस, डीजल-पेट्रोल इत्यादि के दामों में भारी उछाल आ सकता है। इसका असर आम आदमी से लेकर उद्यमियों तक पर पड़ना तय है। पेट्रोल-डीजल के दामों में 10 से 15 रुपए लीटर तक की वृद्धि होने की संभावना जाहिर की जा रही है। महंगाई बढ़ने के साथ-साथ बेरोजगारी का ग्राफ भी ऊंचा होना तय है। देश में रोजगार के साधन पहले की डिमांड के अनुरूप बेहद कम हैं। ऊपर से नई मुसीबत सामने आ गई है। पिछले दो-तीन साल से एमएसएमई की हालत मृत प्राय: जैसी हो चुकी है।

संकट को दूर करने के प्रयास सरकार और उद्यमी जितने करते हैं, मामला उतना बिगड़ता चला जा रहा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। आबादी के लिहाज से चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। ऐसे में भारत की अपनी अलग समस्याएं हैं। देश की अर्थव्यवस्था और रोजगार उपलब्ध कराने में एमएसएमई की भूमिका को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। करोड़ों लोगों को एमएसएमई द्वारा रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। बदले में एमएसएमई को सुविधाओं की बजाए साल दर साल संकट से गुजरना पड़ रहा है।

स्थिति यदि इसी प्रकार बिगड़ती रही तो एमएसएमई का औंधे मुंह गिरना तय है। इसके नतीजे भी भयावह होंगे। ना सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था रसातल में चली जाएगी बल्कि बेरोजगारी का संकट सोच से ज्यादा बढ़ जाना तय है। मौजूदा स्थिति से सरकार भी बेफ्रिक नहीं है। अर्थव्यवस्था को बेपटरी होने से रोकने के लिए सरकार अभी से जरूरी विचार-मंथन करने में जुट गई है। इसके नतीजे क्या होंगे, यह वक्त बताएगा। फिलहाल संकट निरंतर बढ़ रहा है और इससे निपटने के लिए ठोस उपाय करने की जरूरत है। एमएसएमई की गाड़ी यदि बेपटरी हो गई तो स्थिति को काबू करना संभव नहीं हो सकेगा।

अलबत्ता सामने आ रहे संकट से पार पाने को ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जो अचूक साबित हो सके। सरकार को उद्यमियों के साथ चर्चा कर उन्हें आश्वस्त करना चाहिए ताकि उद्यमियों में निराशा का भाव उत्पन्न न हो सके। वह किसी भी विषम स्थिति-परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए खुद को मानसिक रूप से भी मजबूत रख सकें। जानकारों का मानना है कि रूस-यूक्रेन संकट से भारत में तेल के दाम में तेजी आने से अर्थव्यवस्था के समक्ष जोखिम पैदा होने की प्रबल संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम सौ डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गए हैं।

इससे बाह्य स्तर पर स्थिरता और रुपये की गतिविधियों को लेकर जोखिम है। रूस दुनिया में कच्चे तेल एवं गैस का प्रमुख निर्यातक है। अगर पश्चिमी देश रूसी निर्यात पर बड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं, तो इससे ईंधन की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है। पहली बार कच्चे तेल की कीमतों ने सौ डॉलर प्रति बैरल की सीमा को पार किया है, जो रूसी कार्रवाई का सीधा नतीजा है। महंगाई का झटका कोरोना महामारी के वजह से पहले से पटरी से उतरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। भारत के पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव कराए जा रहे हैं।

इन चुनावों में तेल की कीमतों को लेकर पहले से हल्ला मचा है। अब रूस-यूक्रेन संकट ने इस मुश्किल को और बढ़ा दिया है। अगर कच्चे तेल की कीमतें मौजूदा स्तरों पर भी बनी रहती हैं, तो ईंधन की कीमतों में दस प्रति लीटर से अधिक की वृद्धि करनी होगी, जब तक कि सरकार यूनियन एक्साइज ड्यूटी को कम करने या पेट्रोलियम सब्सिडी बढ़ाने के लिए तैयार नहीं होती है। इन दोनों फैसलों से बड़े पैमाने पर बजट में हुई गणना गड़बड़ा सकती है। कीमतों में भारी वृद्धि से महंगाई बढ़ेगी, आर्थिक संकट बढ़ेगा और राजनीतिक असंतोष बढ़ने की भी संभावना है।