आखिर कब सुरक्षित होंगी बेटियां ?

प्रदीप गुप्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष, व्यापारी एकता समिति संस्थान

हमारा देश आज दुनिया के अन्य देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। महिला सशक्तिकरण पर सरकारें जोर दे रही हैं। पीएम मोदी ने सबसे कम लिंगानुपात वाले राज्य हरियाणा से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरूआत की। हमारे देश में बच्चियों को माता का रूप समझ कर पूजा जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

देवी दुर्गा के शक्ति रूप की हम सब आराधना करते हैं। आदिकाल से हमारे देश में सती सावित्री, अहिल्याबाई, झांसी की रानी को पूजा जाता रहा है। लेकिन 21वीं सदी में आज लड़कियां लड़कों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, लेकिन जब बात महिला सुरक्षा की आती है तो जमीनी हकीकत अलहदा है। हमारे देश में आज छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर 70 साल की बुजुर्ग महिलाएं भी महफूज नहीं हैं। और इस बात पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के ताजा आंकड़ों ने भी मुहर लगा दी है। पिछले साल 2020 में हमारे देश में प्रतिदिन बलात्कर के 77 मामले दर्ज किए गए और पूरे साल के दौरान 28 हजार से ज्यादा बलात्कार के मामले देश में दर्ज किए गए।

ये वो आंकड़े हैं जो रिकॉर्ड में दर्ज किए गए। लेकिन बहुत ऐसे भी मामले होते हैं जो पुलिस थाने तक पहुंच ही नहीं पाते। मतलब उन मामलों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं रहता। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 में 4,05,326 थे और 2018 में 3,78,236 थे। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2020 में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के मामलों में से 28,046 बलात्कार की घटनाएं थीं। जबकि पिछले साल कोविड-19 के कारण लॉक डाउन लगाया गया था।

अब आइए इन मामलों में जांच और अपराधियों को सजा दिलवाने की प्रक्रिया पर बात करते हैं। 2012 में देश को हिला देने वाले निर्भया गैंगरेप के बाद बलात्कार से जुड़े कानूनों में संशोधन किया गया। सख़्त सजा का प्रावधान भी किया गया। निर्भया फंड की व्यवस्था की गई जिसका मकसद बलात्कार पीड़ितों का पुर्नवास और उन्हें आर्थिक मदद मुहैया करना था। इसके बावजूद करीब 9 साल बीतने के बाद भी जमीनी हकीकत क्या है, इसकी तस्दीक आंकड़े कर रहे हैं। सबसे ज्यादा दु:ख तब होता है जब बलात्कार जैसे मामलों पर भी सियासत शुरू हो जाती है। धर्म और जाति के आधार पर अपनी-अपनी सियासी रोटियां सेंकने के मकसद से बलात्कार जैसे संवेदनशील मामलों पर सियासत होने लगती है। इसलिए मैं सभी राजनैतिक दलों के नुमाइंदों से ये मांग करता हूं कि बलात्कार जैसे मामलों पर हम सबको सियासत बिल्कुल ही नहीं करनी चाहिए।

वो मामला किसी भी राज्य, जाति या धर्म से जुड़ा हो उसे महिला के साथ अपराध ही मानना चाहिए। आरोपी किसी भी जाति या मजहब का हो उसे आरोपी ही समझना चाहिए और पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिलाने के लिए एकजुट होकर हम सबको ईमानदार प्रयास करने चाहिए। तभी हम बेटियों को एक सुरक्षित समाज दे पाएंगे। जब तक हम बेटियों को सुरक्षित माहौल नहीं दे पाएंगे तब तक वो अपने सपनों को उड़ान नहीं दे पाएंगी। इसलिए यदि देश, सरकार, समाज और सिस्टम सब महिला सुरक्षा के मुद्दे पर एकजुट हो जाएं तो ही बेटियों को सुरक्षित माहौल दे पाना संभव हो पाएगा।
अंत में मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता
जरा एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों