इंजीनियर देवी सिंह को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, कोर्ट ने 16 मार्च के आदेश पर लगाई रोक

अदालत के दो बार यह कहने के बावजूद कि याचिकाकर्ता दो साल से कम समय में सेवानिवृत्त होने वाला है और इसलिए, याचिकाकर्ता को उसकी पसंद के स्टेशन को छोड़कर स्थानांतरित नहीं करने की राज्य सरकार की नीति की स्पष्ट रूप से अनदेखी की जा रही है। ऐसे में इस मामले में विचार की आवश्यकता है। हाईकोर्ट ने सरकार एवं अन्य संबंधित विभाग को दो सप्ताह की अवधि के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है। कोर्ट ने कहा कि प्रत्युत्तर, शपथ पत्र, यदि कोई हो तो उसे भी एक सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाये। इसके बाद फिर से इस मामले की सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने 16 मार्च 2023 के पुराने आदेश पर रोक लगा दी है।

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। गाजियाबाद नगर निगम में सहायक अभियंता के पद पर तैनात रहे इंजीनियर देवी सिंह के तबादले से संबंधित मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 16 मार्च को दिये गये पुराने आदेश पर रोक लगाते हुए सरकार से फिर से जवाब मांगा है। सरकार को दो सप्ताह के भीतर हलफनाम दायर करना होगा। इंजीनियर देवी सिंह के तबादले से संबंधित मामले में कोर्ट के रूख को देखते हुए लग रहा है कि वह तबादले से संबंधित आदेश को लेकर दिये गये तर्कों से सहमत नहीं है। ऐसे में अगली सुनवाई महत्वपूर्ण होगी और इसमें सरकार का रूख क्या रहता है यह भी देखना होगा।
ज्ञात हो कि गाजियाबाद नगर निगम में सहायक अभियंता के पद पर तैनात देवी सिंह का तबादला कई महीने पहले बस्ती नगर पालिका में हुआ था। तबादला आदेश के खिलाफ देवी सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। देवी सिंह ने हाईकोर्ट को बताया कि उनका तबादला स्थानांतरण नीति जून 2022 के मुताबिक तर्कसंगत नहीं है। उनकी पत्नी बीमार हैं और उनका इलाज चल रहा है और उनकी सेवानिवृत्ति में भी दो साल से कम समय बचा है। ऐसे में उनके स्थानांतरण पर रोेक लगाई जाये। सेवानिवृत्ति के अंतिम वर्षों में सरकारी कर्मचारियों को ऐच्छिक स्थान पर तैनाती देने का प्रचलन रहा है और इससे संबंधित शासनादेश भी है।

हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते देवी सिंह को शासन के समक्ष प्रत्यावेदन देने और सरकार को शासन नीति के मुताबिक तार्किक ढंग से फैसला करने का आदेश दिया। 15 नवंबर 2022 को नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने पत्र जारी कर कहा है कि हाईकोर्ट के आदेशों के क्रम में देवी सिंह का प्रत्यावेदन स्थानांतरण नीति के तहत जनहित में अस्वीकृत किया जाता है और उनके पूर्व के तबादले के आदेश को बरकरार रखा जाता है। पत्र में कहा गया है कि प्रत्यावेदन उत्तर प्रदेश सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की वार्षिक स्थानान्तरण नीति 2022-23 दिनांक 15.06.2022 के पैरा 4 (6आई) एवं पैरा-15 में निहित व्यवस्थानुसार कार्यहित एवं जनहित में पोषणीय न पाते हुए अस्वीकृत कर एतद्द्वारा निस्तारित किया जाता है। नगर विकास विभाग से आये इस आदेश के बाद तत्काल देवी सिंह को गाजियाबाद नगर निगम से कार्यमुक्त (रिलीव) कर दिया गया। इसके खिलाफ देवी सिंह दोबार इलाहाबाद हाईकोर्ट गये और नगर विकास विभाग के आदेश को चुनौती देते हुए फिर से रिट दाखिल की। जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने नगर विकास विभाग के 15 नवंबर 2022 के देवी सिंह के तबादले से संबंधित आदेश को निरस्त कर दिया। एक बार फिर हाईकोर्ट ने नगर विकास विभाग को आदेश दिया कि वह देवी सिंह के तबादले को लेकर फिर से प्रार्थी का प्रत्यावेदन ले और उस पर तबादला नीति के पैरा-5 (7) के तहत रिटायरमेंट में दो वर्ष से कम अवधि होने पर किये गये प्रावधानों के तहत निर्णय लें। दरअसल तबादला को लेकर एक शासनादेश है जिसके तहत कर्मचारी को रिटायरमेंट के अंतिम दो साल में अपने गृह जनपद या फिर एच्छिक स्थान में से किसी एक जगह तबादला किये जाने का प्रावधान है। इस बार भी नगर विकास विभाग अपने पुराने रूख पर अड़ा रहा। देवी सिंह द्वारा दोबारा दिये गये प्रत्यावेदन का निस्तारण करते हुए तबादले के पुराने आदेश को ही बरकरार रखा। इस आदेश के बाद इंजीनियर देवी सिंह ने एक बार फिर हाईकोर्ट का रूख किया।

रिट संख्या 5589 / 2023 याचिकाकर्ता देवी सिंह बनाम स्टेट आॅफ यूपी एवं अन्य में 7 अप्रैल को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि इस अदालत के दो बार यह कहने के बावजूद कि याचिकाकर्ता दो साल से कम समय में सेवानिवृत्त होने वाला है और इसलिए, याचिकाकर्ता को उसकी पसंद के स्टेशन को छोड़कर स्थानांतरित नहीं करने की राज्य सरकार की नीति की स्पष्ट रूप से अनदेखी की जा रही है। ऐसे में इस मामले में विचार की आवश्यकता है। हाईकोर्ट ने सरकार एवं अन्य संबंधित विभाग को दो सप्ताह की अवधि के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है। कोर्ट ने कहा कि प्रत्युत्तर, शपथ पत्र, यदि कोई हो तो उसे भी एक सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाये। इसके बाद फिर से इस मामले की सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने 16 मार्च 2023 के पुराने आदेश पर रोक लगा दी है।