मोदी मैजिक: बीजेपी जीती, नीतीश हारे

अभय कुमार मिश्र
शिक्षाविद् एवं स्तंभकार

(लेखक पेशे से शिक्षक हैं। विभिन्न सम सामयिक मुद्दों एवं राजनैतिक घटनाक्रम पर अपनी बात बेबाकी से रखते हैं। उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)

मोदी मैजिक ने नीतीश कुमार की लाज बचा ली है। जिस प्रकार से बिहार की राजनीति के सुशासन बाबू को 30 साल के युवा तेजस्वी यादव ने पटखनी दी है उससे साफ हो गया है कि नीतीश को अब जनता पसंद नहीं कर रही है। चुनाव में नीतीश के जदयू की नैय्या डूब गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीतीश के तारणहार बनकर आये और सरकार बच गई। साफ शब्दों में कहें तो एनडीए की जीत हुई और सरकार बननी तय है लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हार गये हैं। देश की राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रेष्ठता एक बार फिर साबित हो गई है। कोरोना काल में विषम परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद आमजन ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपनी आस्था को बदला नहीं है। बिहार में विधान सभा चुनाव के परिणाम इस बात का ताजा उदाहरण हैं कि मोदी पर जनता का भरोसा कायम है। प्रधान सेवक की बातों और नीतियों का गहरा प्रभाव जनता-जर्नादन पर पड़ा है। बिहार में पिछले 15 साल से सत्ता संभाल रहे नीतीश कुमार की चमक भी मोदी के आगे अब फीकी पड़ गई है। बिहार में नीतीश कुमार को अपनी सियासी जमीन कमजोर होने का अहसास काफी पहले हो गया था। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विधान सभा चुनाव के अंतिम चरण के प्रचार के दौरान नीतीश को यह कहना पड़ा था कि वह अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं। सुशासन बाबू के इस बयान के कई मायने निकाले गए। विरोधियों ने इसे मतदाताओं को रिझाने की चाल तक बता दिया था। हालांकि नीतीश कुमार की भावुक अपील का बिहार चुनाव के नतीजों पर बहुत ज्यादा असर पड़ता दिखाई नहीं दिया। जनता दल यूनाईटेड प्रमुख की चिंता वाजिब निकली। उन्हें चुनाव से पहले हवा के रूख का अंदाजा हो गया था। अब बात बिहार विधान चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के असर की आती है। पीएम मोदी ने बिहार चुनाव के दरम्यान 4 दिनों में कुल 12 रैलियां की थीं। मोदी ने विगत 23 अक्टूबर को चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया। 3 नवंबर को उन्होंने दूसरे चरण के मतदान के दिन आखिरी रैली को संबोधित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 23 अक्टूबर को सासाराम, गया और भागलपुर, 28 अक्टूबर को दरभंगा, मुजफ्फरपुर और पटना, 1 नवंबर को छपरा, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर तथा 3 नवंबर को पश्चिम चंपारण, सहरसा और फारबिसगंज में चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। प्रत्येक चुनावी रैली में पीएम मोदी सीधे जनता से जुड़ते दिखाई दिए थे। उन्होंने नीतीश कुमार के शासन में बिहार के समुचित विकास और 15 साल पहले लालू राज में जंगलराज की बात को प्रमुखता से उठाया। पीएम मोदी ने बिहार में डबल युवराज की बात कर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव पर भी तंज कसने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। बिहार में भाजपा-जनता दल (यू) के गठबंधन की डबल इंजन की सरकार के फायदे भी नागरिकों को बताए थे। चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के महापर्व छठ का जिक्र किया था। उन्होंने यहां तक हा था कि माताएं पूरे उत्साह के साथ महापर्व छठ की तैयारियां करें, क्योंकि उनका बेटा दिल्ली में बैठा है। उन्होंने केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं और कोरोना काल में आमजन के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख किया था। प्रधानमंत्री मोदी का जादू बिहार के नागरिकों पर सिर चढ़कर बोलाा। मतदाताओं ने उन पर भरोसा कायम रखकर बिहार में भाजपा को बढ़ाने में हरसंभव सहयोग दिया है। पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 53 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इस बार भाजपा पिछले रिकॉर्ड को तोड़ती दिखाई दी है। चुनावी नतीजों ने नीतीश कुमार को यह अहसास भी करा दिया कि वह अब बिहार के बॉस नहीं रह गए हैं। अब तो चर्चायें भी शुरू हो चुकी हैं कि क्या नीतीश कुमार स्वेच्छा से मुख्यमंत्री की कुर्सी बीजेपी को सौंपेंगे। बीजेपी नेता अजित चौधरी की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद नीतीश पर दवाब भी है कि नैतिकता का परिचय देते हुए वह खुद से सीएम की कुर्सी बीजेपी को आॅफर करें। हालांकि बीजेपी के बड़े नेता बोल रहे हैं कि नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन क्या यह बिहार की जनता के साथ छल नहीं होगा। जिस जनता ने नीतीश के खिलाफ वोट देकर अपना गुस्सा दिखाया है वह फिर से उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगे। नीतीश कुमार पहले ही रिटायरमेंट के संकेत दे चुके हैं। इसके अलावा चुनाव परिणाम आने से पहले ही बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे कह चुके हैं कि नीतीश कुमार को केंद्र में चले जाना चाहिए। चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी नेता संजय मयूख ने भी कहा है कि विकल्प पर चर्चा बाद ही फैसला लिया जाएगा। भाजपा बिहार में आत्मनिर्भर बनना चाहती है। चुनाव परिणाम ने दिखा दिया है कि बीजेपी में आत्मनिर्भर बनने का दम है। बीजेपी पहली बार बिहार में नंबर-1 पार्टी बनी है और जदयू तीसरे नंबर की पार्टी है। 2005 से अब तक के इतिहास में जदयू अपने निम्नतम स्कोर पर है। चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था कि बीजेपी ने भले ही नीतीश के चेहरे को आगे रखा लेकिन उन पर भरोसा नहीं किया। चुनाव की कमान बीजेपी ही संभाल रही थी। नीतीश ने खुद ही कह दिया है कि यह उनका आखिरी चुनाव है। ऐसे में संभव है कि नीतीश नैतिकता का पालन करें। चुनाव परिणाम से दो महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकला है। पहला यह कि युवा तेजस्वी यादव बिहार चुनाव में स्ट्रांग लीडर के रूप में उभर के सामने आए हैं। दूसरा एनडीए की जीत के बावजूद नीतीश कुमार की हार हुई है। बिहार में 20 साल बाद भाजपा बिग ब्रदर बना है। नीतीश का रुतबा कमजोर हुआ है और कद घटा है। मौजूदा चुनाव परिणामों से बिहार और एनडीए में काफी कुछ बदलने वाला है। बिहार में भाजपा और जदयू की भूमिका और रुतबा दोनों बदलेगा। जदयू अब तक बिहार में भाजपा के बड़े भाई की भूमिका में होती थी। सीट बंटवारे में भी यह दिखता रहा है। नीतीश कहते रहे हैं कि हम बिहार की राजनीति करेंगे, भाजपा केंद्र की राजनीति करे। लेकिन हमेशा नीतीश की बादशाहत बर्दाश्त करने वाली बीजेपी इस बार पूरी तरह से नतस्मतक नहीं होगी। बीजेपी के नेता भले ही नीतीश के अधिपत्य को स्वीकारें लेकिन कार्यकर्ता ऐसा नहीं कर पाएंगे।