नहीं रहे प्रणब दा

 पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन, सात दिन का राजकीय शोक

– मस्तिष्क की सर्जरी के लिए 10 अगस्त को भर्ती हुए थे, कोरोना रिपोर्ट आई थी पॉजीटीव

– राजनीति के अजातशत्रु थे प्रणब मुखर्जी, विपक्षी दल के नेता भी श्रद्धा के साथ जोड़ते थे हाथ

– 1982 में बने थे देश के वित्त मंत्री, 2012 में बने देश के 13वें राष्ट्रपति

– देश में शोक की लहर, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई हस्तियों ने जताया शोक

उदय भूमि ब्यूरो

नई दिल्ली। प्रणब दा के निधन के साथ ही सोमवार को भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया। 84 वर्ष की उम्र में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया। प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने देर शाम ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। मुखर्जी को गत 10 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और सोमवार सुबह जारी एक स्वास्थ्य बुलेटिन में कहा गया कि वह गहरे कोमा में हैं और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया है। देर शाम ट्वीट करते हुए अभिजीत मुखर्जी ने कहा कि भारी मन से आपको सूचित करना है कि मेरे पिता श्री प्रणब मुखर्जी का अभी कुछ समय पहले निधन हो गया। आरआर अस्पताल के डॉक्टरों के सर्वोत्तम प्रयासों और पूरे भारत के लोगों की प्रार्थनाओं और दुआओं के लिए मैं आप सभी को हाथ जोड़कर धन्यवाद देता हूं। दिल्ली कैंट स्थित आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि फेफड़ों में संक्रमण की वजह से वह सेप्टिक शॉक में थे। मुखर्जी के निधन पर भारत सरकार ने 31 अगस्त से छह सितंबर तक सात दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया है।

84 वर्षीय प्रणब मुखर्जी लगातार गहरे कोमा में थे और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। पूर्व राष्टÑपति को 0 अगस्त को दिल्ली कैंट स्थित सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी। मुखर्जी के मस्तिष्क में खून के थक्के जमने के बाद उनका आॅपरेशन किया गया था। इसके बाद उन्हें श्वास संबंधी संक्रमण हो गया था। मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में वर्ष 2012 से 2017 तक पद पर रहे। पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर देश भर में शोक मनाया जाएगा। गृह मंत्रालय ने इसको लेकर एडवाइजरी भी जारी की है। गृहमंत्रालय द्वारा कहा गया है कि इस दौरान देश भर में उन सभी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।

भारत के 13वें राष्ट्रपति रहे

साल 2012 में प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति बने थे। वे भारत के 13वें राष्ट्रपति थे। वह वर्ष 2012 से 2017 के बीच इस पद पर रहे। राष्ट्रपति रहते हुए वह सभी राजनैतिक पार्टियों के पसंदीदा रहे और उन्होंने किसी पार्टी के बजाय देश को सर्वोपरि रखा। संविधान के अनुरूप समस्त निर्णय लिया। राजनैतिक विचारों को लेकर विभेद होने के बावजूद प्रणब मुखर्जी की बातों को सभी राजनैतिक पार्टियां मानती थी।

नहीं बन पाये प्रधानमंत्री

प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति जरूर बने। लेकिन प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना अधूरा ही रह गया। राजनैतिक रस्सा कस्सी और कांग्रेस आलाकमान की पसंद नहीं बन पाने के कारण वह पीएम इन वेटिंग बनकर ही रह गये। यूपीए और कांग्रेस दोनों में प्रणब मुखर्जी लोकप्रिय थे और प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे। लेकिन उनके बजाय मनमोहन सिंह को तरजीह दी गई। राष्ट्रपति के रूप में भी वह कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की पसंद नहीं थे। सोनिया चाहती थी कि हामिद अंसरी राष्ट्रपति बने। लेकिन यूपीए के घटक दलों के दवाब एवं विपक्ष में प्रणब की लोकप्रियता के कारण ऐसा नहीं कर सकी। प्रणब मुखर्जी ने खुद एक बार स्वीकार करते हुए कहा था कि पह वो प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।

मोदी की पसंद थे प्रणब मुखर्जी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रणब मुखर्जी को खूब पसंद करते थे। मोदी की इच्छा थी कि मुखर्जी दुबारा राष्ट्रपति बने। लेकिन अधिक उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था। प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति के एक युग हैं। उन्होंने राजनैतिक पार्टियों और राजनैतिक सख्सियतों के उत्थान और पतन को काफी नजदीक से देखा है। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने यूपीए की सत्ता से बेदखल और भाजपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनते देखा।