6 दिसंबर 1992 को राम भक्तों ने रख दी थी मंदिर निर्माण की नींव

तरुण मिश्र

(लेखक समाजसेवी, राजनैतिक चिंतक एवं अखिल भारतवर्षीय ब्राहण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं। विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी से रखते हैं। लेखक 6 दिसंबर 1992 को भी अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद ढ़ांचा गिराये जाने के समय अयोध्या में मौजूद थे। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)

अयोध्या में जल्द ही भव्य राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होगा। लेकिन मुगल दासता का परिचायक रहे विवादित ढ़ांचे का हटाकर वहां रामलला का मंदिर बनाने तक की राह आसान नहीं रही। राम मंदिर निर्माण के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी। 6 दिसंबर का दिन ऐसे राम भक्तों को नमन करने का दिन है। जब कहीं से भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात आती है तो 1992 का अयोध्या का वह मंजर आंखों के सामने घूमने लगता है। यही वह दिन है जब राम भक्तों ने देश के माथे पर कलंक रूपी विवादित ढ़ांचे को ध्वस्त कर वहां मदिर निर्माण की नींव रखी थी। 6 दिसंबर 1992 में दिन के करीबन 11.30 बजे जय श्री राम के नारों के उद्घोष के बीच विवादित बाबरी मस्जिद का पहला ढांचा ध्वस्त कर दिया गया था। ढांचा गिरते ही अयोध्या की धरती जागृत हो उठी थी। इतना बड़ा राम भक्तों का सैलाब मैंने अपने जीवन में दुबारा कभी नही देखा। इस बात का गर्व है कि अयोध्या की धरती पर घटित उस ऐतिहासिक क्षण का मैं प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं। यह एक ऐसा अवसर था जिसने तय कर दिया कि अयोध्या में रामलला के जन्मस्थान पर भव्य मंदिर बनकर रहेगा। 6 दिसंबर 1992 के राम भक्त रण बांकुरों को मैं नमन करता हूं।उस दिन शाम 4 बजे तक विवादित ढांचे के तीनों गुंबद जमींदोज हो चुके थे। डॉ. मुरली मनोहर जोशी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और पार्टी सगठन की तरफ से मुझे उनके सहायक के रूप साथ रहने का दायित्व मिला था। उनके सहायक होने के नाते अयोध्या के उस ऐतिहासिक पल में अयोध्या में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। डॉ. मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवानी, अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, साध्वी उमा भारती, साध्वीं रिताम्बरा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, भानु प्रताप शुुक्ला, चंपत राय के साथ-साथ लाखों राम भक्त वहां मौजूद थे। सभी जबरदस्त उत्साह से लवरेज थे। वहां मौजूद लाखों राम भक्तों गुंबद के मलवे को उठाना शुरू कर दिया। तीनों गुंबत जमीदोंज होेने के प्रश्चात वहांं आवश्यक चर्चा करने के बाद हम सभी वहां रात में रूके। अगले दिन सुबह जब हम राम लला के दर्शन के लिए गये तो देखा कि विवादित ढांचे के मलवे के रूप में एक चुटकी भी मलवा वहां मौजूद नही था। राम भक्त मलवे को वहां से उठाकर अपने साथ ले गये या सरयू में प्रवाहित कर दिया। हम लोगों ने राललला के दर्शन किए और वापस दिल्ली के लिए प्रस्थान कर दिया। उस दिन टैंट में रामलला के दर्शन के दौरान मेरे मन में अटल विश्वास हो गया कि भविष्य में यहां रामलला का एक भव्य मंदिर जरूर बनेगा और अब वह साकार हो रहा है।
15वीं सदी में मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया था और बाबर देश में पहला मुगल शासक बना। 1527-28 के दरम्यान बाबर अपनी फौज के साथ अयोध्या पहुंचा था और यहां पहले से मौजूद मंदिरों को गिराने का आदेश दिया था। इन्हीं में से एक मंदिर भगवान श्रीराम का था, जो उनके जन्मस्थान पर कई सदियों पहले बनाया गया था। हिंदुओं की आस्था को चोटिल करने के लिए राम मंदिर गिराने के बाद बाद बाबर के सेनापति मीर बकी ने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया था। बाद में क्रूर औरंगजेब ने इसी ढांचे को बड़ी मस्जिद के रूप में विकसित करने का काम किया और उसने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। 500 वर्षो का सघर्ष, 500 वर्षो का आंदोलन 6 दिसंबर 1992 को साकार होता दिखाई दे रहा था। उस दौरान राम जन्म भूमि न्यास के अगुवा महंत नृत्य गोपाल दास के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। राम मंदिर आंदोलन के दौरान शहीद होने वाले राम भक्तों के परिवारजनों को भी आज के दिन मैं नमन करता हूं। 6 दिसंबर का दिन हिंदू धर्म के लिए शौर्य का दिन है।