बखान छोड़ गाजियाबाद को ऐतिहासिक पहचान दिलाने पर जोर दें जनप्रतिनिधि: इन्द्रजीत सिंह टीटू

गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश के विकास को लेकर सत्ताधारी पार्टी रोज अपना बखान करती नजर आती है। मगर गाजियाबाद में पिछले पचास साल से कोई ऐसा काम नही किया गया, जिससे गाजियाबाद को अलग पहचान मिल सकें। जबकि गाजियाबाद दिल्ली से लगा हुआ है। सबसे पहला शहर गाजियाबाद जिसकी ऐतिहासिक तौर पर कई पहचान है। एक समय ऐसा था जब गाजियाबाद इंडस्ट्रीज का हब होने की वजह से पहचाना जाता था बहुत अधिक तादाद में यहां से दिल्ली और हरियाणा के लोग नैनीताल जाना हो मसूरी जाना हो आगरा जाना हो गाजियाबाद से होकर गुजरते हैं। जब से न्यू हाईवे बने हैं, तब से कुछ लोग हाईवे से चले जाते हैं। लेकिन फिर भी काफी तादाद में गाजियाबाद से होकर लोगों का आना जाना होता है। उक्त बातें राष्ट्रीय लोक दल अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इंदरजीत सिंह टीटू ने सोमवार को बयान जारी करते हुए कहीं। उन्होंने कहा यहां के सांसद जो एक कैबिनेट मंत्री भी है।

सभी विधायक, महापौर, राज्यसभा सांसद सत्ताधारी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं और ध्यान करने लायक बात है। जबसे गाजियाबाद जिला बना है भारतीय जनता पार्टी के जनप्रतिनिधि ज्यादा रहे हैं। अन्य दूसरे दलों के मुकाबले लेकिन रूटीन के जो विकास के कार्य होने हैं। सड़कें, नाली, खरंजा आदि अगर इनको छोड़ दिया जाए तो किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस तरफ नहीं सोचा की गाजियाबाद को कोई अलग से पहचान दी जाए। जिससे कि पूरे उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद को अपनी अलग पहचान बन सकें। मौजूदा समय में सत्ताधारी सरकार अपने 9 साल के कार्यों की उपलब्धियां हर गली हर चौराहे हर शहर में बता रही है। अच्छी बात देखने वाली बात यह है की पिछले 25 साल से नगर निगम में सत्ताधारी पार्टी का महापौर है। यहां पर राज्यसभा सांसद भी सत्ताधारी पार्टी के हैं। जिले में 5 विधायक भी सत्ताधारी पार्टी के हैं।

इन सबके बावजूद गाजियाबाद में ऐसा कुछ क्यों नहीं होना चाहिए जिसे गाजियाबाद जिला अलग से पहचाना जाए। मैं सरकार से जिला गाजियाबाद के जनप्रतिनिधियों से गाजियाबाद की जनता की तरफ से अपनी पार्टी की तरफ से आने वाली पीढ़ी के लिए एक पुरजोर मांग करता हूं की नगर निगम और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण मिलकर केंद्र सरकार से मदद लेते हुए कुछ ऐसा स्थान कुछ ऐसी पहचान गाजियाबाद को दें कि गाजियाबाद अपनी उस पहचान की वजह से जाना जाए। नहीं तो पुराने लोगों से आने वाली पीढ़ी जरूर सवाल करेगी कि हम को विरासत में जनप्रतिनिधियों ने क्या दिया है।