हिंदी सिनेमा के बदलते स्वरुप को लेकर फिल्म स्टार गोविंदा से ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री की हुई चर्चा

मुंबई। हिंदी सिनेमा के इतिहास में 1990 के दशक में नए विचारों, नए प्रयोगों और एक्शन फिल्मों की एक नई शैली का प्रवाह देखा गया। यह समय ऐसा था जिसे गैर-पारंपरिक फिल्मों के लिए स्वर्णिम वर्ष कहा जाता है, क्यूंकि इसी दौरान भारतीय सिनेमा में नई तकनीक का आगाज भी हुआ था। 1990 के दशक का समय लंबा होता है, लेकिन फिल्म उद्योग की बात हो तो यह और भी लंबा लग सकता है। इस दौरान भारतीय सिनेमा नित नए बदलावों का गवाह बना, लेकिन कुछ पहलू अब भी पुराने दौर की तरह अपनी जड़ें जमाए हुए हैं। मगर आज हिंदी सिनेमा जगत पूरी तरह से बदल चुका है। पहले जहां परिवार के सदस्य और पड़ोसी एक छत के नीचे बैठकर एक साथ फिल्म देखते थे। तो वहीं आज संयुक्त एक जगह बैठकर फिल्म नही देख सकता है। यह बातें ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्र ने पूर्व सांसद एवं मशहूर फिल्म अभिनेता और बेहद सरल व्यक्तित्व के धनी अरुण आहूजा (गोविन्दा) के साथ हुई चर्चा के दौरान कहीं।

उन्होंने कहा आज का दौर आने वाली युवा पीढिय़ों के लिए बेहद ही भयावह साबित हो रहा है। जिस तरह से आज की फिल्मों में अभिनेत्रियों का चाल-चलन और कपड़े पहने का तरीका फिल्म में दिखाया जा रहा है। उसे देख कर युवा पीढ़ी भी कहीं न कहीं प्रभावित होकर अंधकार की ओर बढ़ रही है। क्योंकि न तो आज की फिल्मों में कोई संस्कार रह गया है और न ही सतकार। उन्होंने फिल्म अभिनेता से कहा अगर हम पूर्व की फिल्मों की बात करें तो उस दौर में फिल्म में अभिनेता और अभिनेत्री का किरदार ही अलग होता था। उसमें संस्कार झलकता था, उसे देखकर लोगों में भी सम्मान की भावना बढ़ती थी। लेकिन आज की फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए है और उस मनोरंजन के चक्कर में युवा पीढ़ी अपने कर्तव्यों से भटकती नजर आ रही है।

राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्र ने फिल्म अभिनेता से अनुरोध किया कि आज के दौर में जिस तरह से फिल्म जगत में ब्राह्मण के किरदार को नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है, उसे रोका जाए। क्योंकि इस किरदार को देख कर ब्राह्मण समाज अपने आपकों को हिंसा की भावना से देखने लगा है। फिल्म जगत का एक ही उद्देश्य होना चाहिए। जिसे देख कर युवा पीढ़ी संस्कारवान बने और किसी भी जाति के लोगों को हिंसा की भावना से न देखे। जातिवाद को लेकर बन रही फिल्मों से भी समाज पर बुरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा पूर्व सांसद एवं फिल्म अभिनेता अरुण अहूजा (गोविंदा) बातों के धनी है और बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति है। उन्हें साहित्य, शास्त्र और वेद का भरपूर ज्ञान है।

फिल्म अभिनेता अरुण अहूजा (गोविंदा) ने कहा उस दौर में फिल्मी सितारों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी। हर अभिनेता एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर काम कर रहा था, लेकिन कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं होती थी। हमारा भी उद्देश्य सिर्फ यही रहता है कि हमारी फिल्मों को देख कर युवा पीढ़ी जागरुक बने। फिल्म में अच्छे-बुरे किरदार सब होते है। उन किरदारों का दिखाने का उद्देश्य भी यही होता है कि लोग समझे कि हमें किस किरदार को अपने अंदर रखना है। क्योंकि फिल्म तो डायरेक्टर बनाता है और हमें उस किरदार को निभाना पड़ता है। लेकिन उस किरदार को निभाने के दौरान भी दर्शकों को सिर्फ अच्छा दिखाने का प्रयास किया जाता है।