दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल का देश-विदेश में डंका

दिल्ली सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कर देश-दुनिया के सामने मिसाल कायम कर दी है। पिछले कुछ साल में देश की राजधानी में सरकारी शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव आया है। दिल्ली के सरकारी स्कूल अब नामचीन निजी स्कूलों को टक्कर दे रहे हैं। दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल ने कोई रातों-रात कमाल नहीं दिखाया है बल्कि इसके पीछे कड़ी मेहनत और भरसक प्रयास छिपे हैं। इन प्रयासों का श्रेय केजरीवाल सरकार में उप-मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को जाता है। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ईमानदार और मेहनती छवि के लिए जाने जाते हैं। सिस्टम में सुधार लाने के लिए वह निष्पक्ष और निर्भिक तरीके से फैसले लेते हैं। व्यवस्था में अच्छा सुधार आ सके, इसके लिए वह दिन-रात प्रत्यनशील रहते हैं।

सिसौदिया की कथनी एवं करनी में भी कोई अंतर देखने को नहीं मिलता। वह जो कहते हैं, उसे करके दिखाते हैं। नतीजन अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी के प्रति किसी प्रकार की लापरवाही बरतने के मूड में नहीं रहते हैं। दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल को आज देशभर में पसंद किया जा रहा है। यही वजह है कि इस मॉडल को विभिन्न राज्यों में लागू करने की जरूरत भी महसूस हो रही है। दिल्ली सरकार के अधीन संचालित स्कूलों में एक और नया प्रयोग होने जा रहे हैं। इसके अंतर्गत बच्चों के सुनहरे भविष्य को ध्यान में रखकर उन्हें एंटरप्रिन्योर्स की शिक्षा भी देने का निर्णय लिया गया है। यानी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चे स्वत:रोजगार के लिए भी तैयार हो सकेंगे। दिल्ली में शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर रखने को केजरीवाल सरकार किस कदर तक गंभीर है, इसका उदाहरण शिक्षा बजट से मिल जाता है।

दिल्ली का एजुकेशन बजट पिछले छह साल के लिए सरकार के कुल बजट का पच्चीस प्रतिशत है। यह बजट राशि समूचे देश में सबसे अधिक है। सिर्फ छह साल में दिल्ली के स्कूलों में कक्षाओं की संख्या सतरह हजार से बढ़कर सैंतीस हजार तक हो चुकी है। इसके अलावा जरूरी सुविधाओं पर भी भरपूर काम किया गया है। आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे तरणताल, आॅडिटोरियम, प्रयोगशाला, लाइब्रेरी इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध हैं। ऐसे में बच्चों को स्कूल में पढ़ते समय काफी अच्छा लगता है। बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके, इसके लिए सरकार ने शिक्षकों पर भी पूरा ध्यान दिया है। शिक्षकों को भी पढ़ाई में दक्ष बनाने की हरसंभव कोशिश की गई है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में प्रशिक्षित होते हैं।

इसके बाद वह दिल्ली के बच्चों को पढ़ाने में अपनी योग्यता का प्रयोग करते हैं। शिक्षकों को मिले प्रशिक्षण के सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। बोर्ड परीक्षा में बच्चे अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो रहे हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था। केजरीवाल सरकार के आने से पहले दिल्ली के सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता थी। शिक्षा के नाम पर भी सिर्फ खानापूर्ति की जा रही थी। शिक्षक जब-तब डयूटी से नदारद हो जाते थे। शिक्षकों के काम और बच्चों की पढ़ाई का पुरसाल हाल जानने को यदा-कदा निरीक्षण हो जाया करते थे, मगर आज सिस्टम बिल्कुल बदल चुका है। शिक्षकों में भी बड़ा बदलाव आया है। वह बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने के साथ-साथ डयूटी समय का भी ख्याल रखते हैं।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी व्यक्तिगत रूप से सरकारी स्कूलों के बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत करते रहते हैं, जिससे उनका मनोबल बढ़ता है। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया भी नियमित रूप से स्कूलों का दौरा कर वहां की व्यवस्थाओं को जांचते-परखते दिखते हैं। निरीक्षण के दौरान मनीष सिसोदिया बच्चों की पढ़ाई, सुविधाओं और शिक्षकों की समस्याओं की भी जानकारी लेते हैं। जो समस्याएं सामने आती हैं, उनका समयबद्ध तरीके से निस्तारण कराया जाता है। शिक्षक भी बगैर किसी डर के समस्या को सामने रखने में नहीं हिचकते हैं। दिल्ली सरकार की कोर एजुकेशन टीम भी प्रयत्नशील रहती है। यह टीम गैर-सरकारी संगठनों और अन्य मॉडल स्कूलों से सर्वश्रेष्ठ टैलेंट और शिक्षा सुधारों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लेकर आई है, जिससे दिल्ली के बच्चों को लाभ मिला है।

इसके अतिरिक्त दिल्ली सरकार बच्चों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए उनके माता-पिता को बेहद करीब से शामिल करने में यकीन करती है। दिल्ली एकमात्र ऐसा राज्य है जो निजी नामचीन शिक्षण संस्थानों की भांति नियमित रूप से मेगा पैरेंट-टीचर मीटिंग का आयोजन करता है, जिससे बच्चों के माता-पिता को शिक्षकों से उनके बच्चों के प्रदर्शन के बारें में नियमित रूप से जानकारी मिलती रहे। दिल्ली के भव्य निजी स्कूलों की भांति प्रत्येक सरकारी स्कूल का मैनेजमेंट पूर्व सैन्य अधिकारियों के हाथों में है, जिन्हें मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा एस्टेट मैनेजर के रूप में भर्ती किया जाता है। स्कूल के प्रधानाचार्य सिर्फ स्कूल के शिक्षाविदों की देखभाल करते हैं, जबकि एस्टेट मैनेजर अन्य पहलुओं की देखभाल करते हैं।

दिल्ली सरकार के स्कूल अपने विद्यार्थियों में स्पेशल स्किल्स विकसित करने के लिए विभिन्न तरह के कार्यक्रम भी संचालित कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक बच्चा पढ़ने और लिखने में सक्षम हो, स्कूलों ने मिशन चुनौती और मिशन बुनियाद आरंभ किया। इसी प्रकार कई अन्य कार्यक्रमों को अपनाया जाता है। दिल्ली सरकार के स्कूलों के सभी शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए मोबाइल टैबलेट का उपयोग करते हैं। डिजिटल शिक्षा की सुविधा के लिए अधिकांश उच्च कक्षाओं में प्रोजेक्टर का उपयोग किया जाता है, ताकि बच्चों को दुनिया के ज्ञान से अवगत कराया जा सके। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए एक और महत्वपूर्ण फैसला लिया है।

इसके तहत नेताजी सुभाष चंद्र यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के 2 कैंपस बनाए जाएंगे। एक कैंपस ईस्ट दिल्ली में तो दूसरा वेस्ट दिल्ली में होगा। कोरोना काल में भी दिल्ली सरकार ने सबसे उम्दा काम किया था। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कोरोना संक्रमण के पहले और दूसरे चरण में बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर तब तक स्कूलों को खोलने की अनुमति नहीं दी, जब तक खतरा टल नहीं गया। इससे अभिभावकों को भी बड़ी राहत मिली थी। सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाओं में सुधार के साथ-साथ सरकार ने निजी स्कूलों की मनमानी रोकने को भी कड़े कदम उठाए हैं। आज पब्लिक स्कूल संचालक मनमानी कर अभिभावकों के लिए मुसीबत खड़ी करने से कतराते हैं।

दरअसल शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जमीन से जुड़े इंसान हैं। उन्हें सभी समस्याओं की जानकारी होती है। वह जानते हैं कि यदि बच्चों की शुरुआती पढ़ाई अच्छी रहेगी तो भविष्य में वह अच्छा नागरिक बनकर देश एवं समाज के काम आ सकेंगे। इसके मद्देनजर वह सरकारी स्कूलों पर गंभीरता से ध्यान देते हैं। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को समय-समय पर सरकारी स्कूलों में बच्चों से बातचीत करते देखा गया है। शुरुआत में उन्हें देखकर बच्चे असहज हो जाते थे, मगर अब बच्चे भी सिसोदिया से घुल-मिल गए हैं। वह किसी भी सवाल का जबाव देने से नहीं कतराते।

दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल से सही मायने में न सिर्फ स्कूलों में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है बल्कि पढ़ाई के प्रति बच्चों में भी खासा उत्साह बढ़ा है। बच्चे अब महज टाइम पास करने स्कूल नहीं जाते। वह पढ़-लिखकर अपना भविष्य संवारने की सोच के साथ पूरी लगन और मेहनत से पढ़ाई करते हैं। अलग तरह के शिक्षा मॉडल का लागू कर उसके अनुरूप काम कराने पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को देश-विदेश से बधाई मिलती रहती हैं। शिक्षा विभाग के आला अधिकारी भी पिछले कुछ साल में आए इस बड़े बदलाव से संतुष्ट नजर आ रहे हैं।