लेखक-जेपी कौशिक
उद्यमी
( लेखक एमएसएमई सेक्टर के सबसे बड़े संगठन इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के राष्ट्रीय केंद्रीय कमेटी सदस्य हैं। उद्यामियों की समस्या, अर्थव्यवस्था और रोजगार विषय पर लिखते रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है। यह लेखक के निजी विचार हैं। )
देश में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। एमएसएमई सेक्टर को विशेषकर आर्थिक संकट से उबारने के लिए बूस्टर डोज की जरूरत महसूस हो रही है। डोज ऐसा होना चाहिये जो धरातल पर उद्यमियों को लाभ पहुंचाये। सरकार ने एमएसएमई के लिए कई तरह की घोषणाएं की है। इन घोषणाओं से लगता है कि कि एमएसएमई को बड़ी मदद मिलेगी। लेकिन जब हम धरातल पर इन घोषणाओं को देखते हैं तो यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान होता है। सरकार की घोषणाओं को बैंक एवं सरकारी विभाग इस तरह से अमलीजामा पहनाते हैं कि वह औचित्यहीन हो जाता है। वर्तमान में मार्केट में मांग कम है और कच्चे माल की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। ऐसे में उद्यमियों पर दोहरी मार पड़ रही है। मांग की कमी की वजह से उन्हें जबरदस्त कंप्टीशन का सामना करना पड़ता है और कच्चे माल की अधिक कीमतों की वजह से ऑर्डर को पूरा करने में नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस्पात, लौह अयस्क, एल्यूमीनियम, तांबा, प्लास्टिक्स, पीवीसी, कागज और रसायन जैसे कच्चे माल के दाम में भारी वृद्धि ने भी उद्यमियों को परेशानी में डाल रखा है। ईंधन की कीमतें भी आसमान छू रही हैं। यदि एमएसएमई इसी तरह से कच्चे माल का दाम बढऩे के कारण संकट में पड़ते चले गए तो उद्यमशीलता हतोत्साहित होगी और अंतत: इससे आत्मनिर्भर भारत के सरकार का लक्ष्य असफल साबित होगा। एमएसएमई सेक्टर को संकट से बाहर निकालने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा। एमएसएमई की समस्याओं पर गंभीरता पूर्वक चर्चा कर उनके निदान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की मूल आवश्यकता है।
अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और रोजगार के अवसर बढ़ाने में एमएसएमई की अह्म भूमिका है। केंद्र एवं राज्य सरकारें बेशक अपने स्तर से प्रयास कर रही हैं, मगर इसके ज्यादा बेहतर परिणाम सामने नहीं आ सके हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट ने भी उद्यमियों को निराश किया है। आम बजट से उद्यमियों ने जो उम्मीदें लगा रखी थीं, वह पूरी नहीं हो पाई हैं। दरअसल कोरोना संक्रमण काल ने एमएसएमई सेक्टर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। कोरोना संक्रमण की पहली लहर के दौरान कई महीनों उद्योगों को बंद करना पड़ा था। लेकिन इस दौरान भी कर्मचारियों को तनख्वाह दी गई। कोरोना का असर कंपनियों के बैलेंसशीट पर पड़ा। सरकार की घोषणाओं के बावजूद बैंक एमएसएमई को हतोत्साहित करते हैं। बैंकों का कहना है कि आपको नुकसान हुआ है। ऐसे में बैंक लोन नहीं दे सकती है। सरकार ने कैश हैंडलिंग को लेकर जो सख्त नियम बनाएं हैं उससे भी एमएसएमई को काफी परेशानियां हो रही है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय यह स्वीकार कर चुका है कि कोविड-19 महामारी की वजह से वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 9.57 लाख करोड़ रुपए की भारी गिरावट आई थी। इसका असर एमएसएमई पर भी पड़ा। एमएसएमई को आर्थिक संकट से उबारने के लिए बैंकों ने आपात ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत लोन देने को कहा गया। लेकिन नियमों को लेकर बैंकों ने रूख लचीला नहीं किया।
यह सभी जानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण औद्योगिक इकाईयां लगातार कई महीने बंद रहे। पिछले वित्तीय वर्ष में पचास प्रतिशत से अधिक इकाइयों के राजस्व में पच्चीस प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई और कंपनियों को जबरदस्त घाटा हुआ। पिछला वित्तीय वर्ष कोविड-ट्रिगर के कारण चुनौतियों से भरा था। इस अवधि ने छोटे उद्यमियों को बड़ा झटका दिया है। विशेष रूप से जिनके पास कोई क्रेडिट समर्थन नहीं था। महंगाई बढऩे और कच्चा माल आसानी से उपलब्ध न होने के कारण भी एमएसएमई की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। एमएसएमई सेक्टर में उद्यम की स्थापना और निवेश के नवीनतम आंकड़े जो कि चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक के हैं वह भी उतने उत्साहजनक नहीं हैं। एमएसएमई सेक्टर को पुनर्जीवित करने के लिए कई अहम कदम तत्काल उठाए जाने की जरूरत है। दरअसल सरकार को एमएसएमई सेक्टर को बूस्टर डोज की जरूरत है। यह बूस्टर डोज ऐसा हो जो धरातल पर उद्यमियों को लाभ पहुंचाने में मदद करे। एमएसएमई सेक्टर का विकास ही देश के आर्थिक विकास की योजना को सफल बनाएगा।