बिहार में बखेड़ों की बहार, नौकरी नहीं मिलेगी लाठी

बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद कोई न कोई नया बखेड़ा आए दिन खड़ा हो रहा है। ऐसे में जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की गठबंधन सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। राजद सुप्रीमो एवं पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दोनों लाल एक बार फिर सत्ता का सुख भोग रहे हैं। भाजपा से नाता तोड़ नीतीश कुमार अब राजद की गोद में जा बैठे हैं। बिहार सरकार में राजद नेता तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव दोनों को मंत्री पद से नवाजा गया है। तेजस्वी यादव पुन: डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। नई सरकार के गठन के बाद से बिहार में नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों पर लाठीचार्ज किए जाने का है।

7वें चरण की शिक्षण भर्ती की बहाली की मांग पुरजोर तरीके से उठाने पर विद्यार्थियों को पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा गया। अपर जिलाधिकारी (लॉ एंड ऑर्डर) के.के. सिंह के कृत्य से जुड़ा वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। इस वीडियो में प्रशासनिक अधिकारी जमीन पर गिरे पड़े छात्र को लाठी से बेरहमी से पीटते दिखाई दे रहे हैं। निहत्था छात्र हाथ में तिरंगा लेकर जान की भीख मांगता नजर आता है, मगर प्रशासनिक अधिकारी का दिल मानो पत्थर हो जाता है। वह तिरंगे की मर्यादा को भी भूलकर छात्र पर ताबड़तोड़ लाठी बरसाते रहते हैं। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल होने के बाद से बिहार सरकार की खूब लानत-मलानत हो रही है।

विपक्षी दलों ने यह मुद्दा जोर-शोर उठाया है। इसके बावजूद दोषी अफसर पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सरकार ने मामले पर पर्दा डालने के लिए अफसर के खिलाफ जांच बैठा देने की औपचारिकता का निर्वहन कर दिया है। प्रदर्शनकारी छात्रों की मांग गलत नहीं थी। बिहार में लंबे समय से सातवें चरण की शिक्षक भर्ती की बहाली नहीं हो सकी है। 2019 के क्वालीफाई छात्र नौकरी की आस लगाए बैठे हैं। हालाकि सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग सकी है। बिहार में बेरोजगारी चरम पर है। पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा। इसके चलते युवाओं को निराश होकर मेहनत-मजदूरी करनी पड़ रही है। जो मेहनत-मजदूरी नहीं करना चाहते वे अपराध की दुनिया का रूख कर रहे हैं।

नतीजन राज्य में अपराधों का ग्राफ भी तेजी से बढ़ रहा है। नौकरी की मांग करने पर अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज कराकर नीतिश सरकार ने अपनी कथनी एवं करनी का अंतर उजागर कर दिया है। दरअसल डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा था कि सरकार द्वारा 10 लाख नौकरी दी जाएंगी। इसके अलावा भी रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे और 20 लाख युवाओं को रोजगार मिलेगा। तेजस्वी ने सत्ता में आने के बाद यह भी कहा था कि वह नौकरी और रोजगार को लेकर पूर्व में लड़ाई लड़ते रहे हैं। बिहार की मौजूदा स्थिति को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वहां 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने के अलावा 20 लाख युवाओं को रोजगार के साधन दिए जा सकेंगे।

सवाल यह भी उठता है कि जब सरकारी नौकरी के ऑप्शन नहीं हैं तो परीक्षा कराकर युवाओं को भ्रमित क्यूं किया जाता है। तीन साल पहले परीक्षा को क्वालीफाई कर चुके सफल अभ्यर्थियों को आखिर कब तक नौकरी के लिए इंतजार करना पड़ेगा, इस बारे में सरकार या संबंधित विभाग कोई ठोस जवाब देने को तैयार नहीं है। ऐसे में बेरोजगारों का गुस्सा फूटना स्वभाविक बात है। बिहार की राजनीति में जनता दल (यू) और राजद का गठबंधन इसके पहले भी हो चुका है, मगर पहला गठबंधन ज्यादा समय तक टिकाऊ नहीं रह पाया था। तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के साथ टयूनिंग सही न बैठने पर नीतीश कुमार को अपना फैसला बदलना पड़ा था। हालाकि नीतीश कुमार एक बार ठोकर खाने के बाद भी संभल नहीं पाए हैं। सत्ता की लालसा में उन्होंने दोबारा ऐसे दल के साथ हाथ मिला लिया है, जिसे वह कभी पानी पी-पीकर कोसा करते थे।

बिहार में नई सरकार को अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, लेकिन राजद खेमे की तरफ से नए-नए कारनामे भी सामने आने लगे हैं। कुछ दिन पहले डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने वरिष्ठ नौकरशाहों के साथ मीटिंग की थी। इस मीटिंग में उनके राजनीतिक सलाहकार की उपस्थिति से राजनीति में तूफान आ गया था। विपक्ष ने इस मुद्दे पर भी सरकार को घेरने के साथ-साथ नीतीश कुमार से जवाब मांगा था। तेज प्रताप यादव तो तेजस्वी यादव से भी बढ़कर निकले। उन्होंने सरकारी मीटिंग में नियमों का मखौल उड़ाकर अपने एक रिश्तेदार तक को बैठा लिया था। यह दो घटनाएं तेजस्वी और तेज प्रताप की राजनीतिक अपरिपक्वता की मिसाल भी पेश करती हैं। तेजस्वी यादव थोड़े बहुत गंभीर भी दिखाई दें, मगर तेज प्रताप यादव कब किस बात पर आपा खो बैठें, कोई नहीं जानता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार परिवारवाद की राजनीति पर तीखा कटाक्ष कर चुके हैं।

पीएम मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि परिवारवाद की राजनीतिक देश और समाज के लिए खतरनाक है। खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में परिवारवाद की राजनीति हमेशा हावी रही है। परिवारवाद की राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस है। कांग्रेस आज भी गांधी परिवार के इर्द-गिर्द घूम रही है। इसी प्रकार बिहार में लंबे समय तक लालू यादव ने शासन किया था। आज लालू के बेटे इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी परिवारवाद की राजनीति का प्रमुख उदाहरण कही जा सकती है। अलबत्ता बिहार के नागरिकों का भविष्य क्या होगा, यह अभी कहना जल्दबाजी होगी। इतना जरूर है कि यदि गठबंधन सरकार ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध और विकास जैसे जरूरी बिंदुओं की अनदेखी की तो निश्चित रूप से इसके परिणाम घातक साबित होंगे।