दुनियाभर पर मंडराता प्रदूषण का खतरा

लेखक- राकेश कुमार भट्ट

(लेखक सामाजिक विश्लेषक है। डेढ दशक से प्रकृति, पर्यावरण और मानव संसाधन प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हुए है और कई शोध पत्र तैयार किया है। इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

वास्तव में मानव ने उद्योग, परिवहन, ऊर्जा आदि के क्षेत्रों में जो प्रगति की है उसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव वायु प्रदूषण के रूप में हो रहा है। यह संकट आज संपूर्ण विश्व पर गहराता जा रहा है। एक शोध के अनुसार अगर इसी तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ता रहा तो सन 2050 तक पृथ्वी का वातावरण 4 से 5 डिग्री तक बढ़ जाएगा। जबकि अगर पृथ्वी का तापमान 2 से 3 प्रतिशत भी बढ़ता है, तो पृथ्वी के हिम ग्लेशियर पिघल जाएंगे, जिससे भयंकर बाढ़ आ सकती है और पूरी पृथ्वी नष्ट हो सकती है। प्रदूषण सभ्य दुनिया के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। जीव मंडल का आधार वायु है और वायु में उपस्थित ऑक्सीजन पर ही जीवन निर्भर है।

इसी से प्राणियों एवं जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन प्राप्त होती है, और इसी से वनस्पति को कार्बन-डाई-ऑक्साइड मिलती है, जिससे उसका पोषण होता है। प्राणी वायुमंडल से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन-डाई-ऑक्साइड निष्कासित करते हैं, जिसे हरे पौधे ग्रहण कर लेते हैं और एक संतुलित चक्र चलता रहता है। किंतु इस संतुलन में उस समय रूकावट आ जाती है जब उद्योगों, वाहनों एवं अन्य घरेलू उपयोगों से निकलता धुआं एवं अन्य सूक्ष्म कण, विभिन्न प्रकार के रसायनों से उत्पन्न विषैली गैस, धूल के कण, रेडियोधर्मी पदार्थ आदि वायु में प्रवेश करके, स्वास्थ्य के लिए ही नहीं अपितु समस्त जीव-जगत् के लिए हानिकारक बना देते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) पर जोर दिया है।

एनसीएपी पर काम कर वायु प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकता है। नागरिकों को भी वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। एनसीएपी प्रोग्राम की मदद से भारत को प्रदूषण मुक्त बनाने में मदद मिल सकती है। वायु प्रदूषण प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में से एक है। विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार हर साल लगभग 7 मिलियन लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो जाती है। वास्तव में वायु में उपस्थित गैसों पर बाहरी प्रभाव ही वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। हमारे वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा 24 प्रतिशत थी लेकिन धीरे-धीरे इसकी मात्रा कम होती जा रही है।

एक रिसर्च के अनुसार हमारे वातावरण में अभी ऑक्सीजन की मात्रा 22 प्रतिशत ही रह गई है। स्वच्छ हवा और ऑक्सीजन की कमी के कारण असमय जीव-जंतुओं की मृत्यु हो रही है और साथ ही कुछ प्रजातियां तो विलुप्त भी हो गई है। वैसे तो वायु प्रदूषण की समस्या कोई नई नहीं है क्योंकि अनेक प्राकृतिक कारणों जैसे ज्वालामुखी का विस्फोट, तेज हवाओं से मिट्टी के कणों का वायु में मिलना या जंगल की आग से प्राचीन काल से वायु प्रदूषण होता आ रहा है। जब से मानव ने आग का प्रयोग प्रारंभ किया, तभी से प्रदूषण का प्रारंभ हो गया, पशु चारण से उडऩे वाली रेत, खनन या गंदगी से सूक्ष्म जीवाणुओं का वायु में फैल जाना प्राचीन काल से होता रहा है।

किंतु तब तक यह समस्या नहीं थी, क्योंकि जनसंख्या सीमित थी, आवश्यकताएं कम थीं, ईंधन का उपयोग बहुत कम किया जाता था, प्राकृतिक वनों का पर्याप्त विस्तार था, जिसके कारण प्रदूषित पदार्थ पर्यावरण से अपने-आप ही नष्ट हो जाते थे, उनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती थी, क्योंकि वायुमंडलीय प्रक्रिया में स्वत: ही शुद्ध एवं संतुलित होने की अपूर्व क्षमता होती है। किंतु आज की औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने इस गणित को गलत कर दिया है, क्योंकि मानव तीव्र गति से वायु मण्डल में अवशिष्ट पदार्थ विस्तारित करने लगा है, जो वायु प्रदूषण का मूल कारण है। किसी भी रूप में प्रदूषण, चाहे वह हवा हो या पानी, स्वास्थ्य के लिए एक पर्यावरणीय जोखिम है।

डब्ल्यूएचओ के वैश्विक वायु प्रदूषण डेटाबेस के अनुसार दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 15 में से 14 शहर, भारत के हैं, जिसे हवा में रासायनिक, जैविक या भौतिक प्रदूषकों के मापन से पहचाना जा सकता है। कई प्रदूषक हैं जो मनुष्यों में बीमारी के प्रमुख कारक हैं, उनमें से, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), सांस के माध्यम से श्वसन प्रणाली में प्रवेश करते हैं, जिससे श्वसन और हृदय रोग, प्रजनन और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की शिथिलता और कैंसर होता है। बीमारियों में मुख्य रूप से श्वसन संबंधी समस्याएं जैसे क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, ब्रोंकियोलाइटिस, और फेफड़ों का कैंसर, हृदय संबंधी घटनाएं, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की शिथिलता और त्वचीय रोग शामिल हैं।

सभी तरह के प्रदूषण पयाज़्वरण से जुड़े हुए हैं, जो ओजोन परत को हानि पहुँचा कर सूयज़् की हानिकारक किरणों को पृथ्वी पर आमंत्रित करते हैं। वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए हमें दैनिक आधार पर अपनी क्रिया-कलापों में बड़े स्तर पर परिवतज़्न लाने होंगे।प्रभावी प्रदूषण नियामक नीतियों के अभाव में,भारत में 2015 में 1.1 मिलियन मौतें रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, छह प्रमुख वायु प्रदूषकों में ओजोन, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और लेड शामिल हैं।

कई रिपोटोज़्ं ने खराब वायु गुणवत्ता के संपकज़् में आने और रुग्णता और मृत्यु दर की बढ़ती दर के बीच सीधा संबंध प्रकट किया है, जो ज्यादातर हृदय और श्वसन रोगों के कारण होता है। वायु प्रदूषण को अस्थमा, फेफड़े के कैंसर, वेंट्रिकुलर हाइपरट्रॉफी, अल्जाइमर और पाकिंसंज़्स रोग, मनोवैज्ञानिक जटिलताओं, ऑटिज्म, रेटिनोपैथी, भ्रूण की वृद्धि और जन्म के समय कम वजन जैसी कुछ बीमारियों की घटनाओं और प्रगति में प्रमुख पयाज़्वरणीय जोखिम कारक माना जाता हैे वायु प्रदूषण की वजह से लोगों को मानसिक समस्याएं जैसे चक्कर आना,कमजोरमेमोरी होना, दिल की बीमारी, फेफड़ों की बीमारी, कैंसर, किडनी की बीमारी, प्रेग्नेंट महिला और उसके होने वाले बच्चे की जान को खतरा होना, अस्थमा, जीने की औसतन उम्र को कम करना, ब्लड कैंसर इत्यादि हो सकती हैं।

परमाणु शक्ति का प्रयोग जहाँ एक ओर असीम शक्ति प्राप्त करने के लिये किया जा रहा है, वहीं तनिक-सी असावधानी न केवल वायु प्रदूषण अपितु मौत का कारण बन जाती है। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों से वहाँ का वायुमण्डल इतना अधिक प्रदूषित हुआ कि उसके कतिपय अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। भारत में यद्यपि उद्योगों द्वारा वायु प्रदूषण औद्योगिक देशों की तुलना में कम है किंतु कुछ नगरों में जहाँ पयाज़्प्त उद्योग हैं, इसका स्तर स्वास्थ्य को खतरा पैदा कर रहा है। वतज़्मान समय में कृषि की प्रक्रिया से भी वायु प्रदूषण होने लगा है। यह प्रदूषण कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से हो रहा है।

कृषि में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को रोकने के लिए विषैली दवाओं का छिड़काव किया जाता है, अनेक प्रकार के पेंट, स्प्रे, पॉलिश आदि करने के लिए जिन विलायकों का प्रयोग किया जाता है वे हवा में फैल जाते हैं क्योंकि इनमें हाइड्रो कार्बन पदार्थ होते हैं और वायु को प्रदूषित कर देते हैं। हमारे पूरे देश में जब भी कोई निर्माण होता है, तो वह खुले में होता है जिसके कारण चारों तरफ धूल मिट्टी उड़ती रहती है और पूरा वातावरण प्रदूषित हो जाता है। जब भी हम निर्माण कार्य करें तो उसे किसी कपडे से ढककर करना चाहिए जिससे वायु प्रदूषण नहीं हो। ऊर्जा के लिए नए स्रोत खोजने चाहिए। हमें कोयले और परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कम करना चाहिए।

हमें सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अधिक मात्रा में करना चाहिए जिसके कारण वायु प्रदूषण भी नहीं होगा और हमें ऊर्जा भी पूरी मिल जाएगी। किसी भी प्रकार के प्रदूषण पर हमें अगर नियंत्रण पाना है तो लोगों को प्रदूषण के बारे में पता होना चाहिए। हमें प्रदूषण के बारे में लोगों को सचेत करना चाहिए और स्कूलों में प्रदूषण के बारे में पाठ्यक्रम होना चाहिए। जिससे बचपन से ही बच्चों को पता हो की किस काम को करने से प्रदूषण फैलता है।अगर हमें वायु प्रदूषण को कम करना है तो हमें अधिक मात्रा में सावज़्जनिक वाहनों का उपयोग करना होगा, वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए हमारी सरकार को नए नियम बनाने चाहिए और वायु प्रदूषण कानून को लागू करने में सख्ती दिखानी चाहिए।