ट्विन टावर को गिराना काफी नहीं है…?

लेखक:- प्रदीप गुप्ता
(समाजसेवी एवं कारोबारी हैं। व्यापारी एकता समिति संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष है और राजनीतिक एवं सामाजिक विषयों पर बेबाकी से राय रखते हैं।

आखिरकार सुपरटेक के ट्विन टॉवर्स अपेक्स और सियान जमींदोज हो ही गए। गिराए जाने से पहले इसे भ्रष्टाचार की इमारत कहा जा रहा था और गिराए जाने के बाद भी अब ये कहा जा रहा है कि भ्रष्टाचार की इमारत अब गिरा दी गई। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस इमारत को बनाने के लिए सिर्फ बिल्डर ही दोषी था? सिर्फ बिल्डर के खिलाफ ही इस मामले में कार्रवाई होनी चाहिए थी? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बिल्डर के खिलाफ एक्शन तो हो गया क्या नोएडा प्राधिकरण के उन तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भी इसी तरह की कोई सख्त कार्रवाई होगी? जिनकी शह पर या मिलीभगत से पिछले 10 सालों से ज्यादा समय से यह इमारत बन रही थी। क्या जिन विभागों ने सुरक्षा विभाग, अग्निशमन विभाग, स्ट्रक्चर विभाग, हाइट डिपार्टमेंट तथा अन्य इस प्रकार के विभाग दो बराबर बिल्डिंग बनाने में एनओसी देते रहे, उन सब लोगों ने क्या देखा? क्या उन सब के ऊपर कभी कड़ी कार्रवाई हो पाएगी? या नहीं! अगर सुप्रीम कोर्ट इससे संबंधित सभी दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करें, तभी इस कार्रवाई का फायदा है, क्योंकि सबसे बड़े दोषी यह लोग हैं, यह लोग अगर रास्ता नहीं दिखाएंगे तो कोई भी बिल्डर लालच मे ऐसे काम करने की सोच भी नहीं पाएगा।

हमारा सिस्टम इतना बेहतर होना चाहिए कि ऐसी इमारतों की नींव ही ना रखी जाए। मगर सिस्टम के अधिकारी ही पहले भ्रष्टाचार की दीवार को उठाने में अपना पूरा सहयोग देते है, जब कार्रवाई होती है तो अपनी गर्दन बचाकर बिल्डर को बलि का बकरा बना देते है। इस इमारत को गिराने के बाद पूरे देश में लोग खुशियां मना रहे हैं, लेकिन क्या ये सवाल अब भी बरकरार नहीं है कि न जाने इस देश में इस तरह की कितनी ऐसी भ्रष्टाचार की इमारतें अब भी खड़ी हैं जो आज भी नियम-कानून, प्रशासन, अदालत सभी को चुनौती दे रही है। हम अगर वाकई इस तरह के भ्रष्टाचार के मामले को लेकर गंभीर हैं, हमारी सरकारें गंभीर हैं, हमारा सिस्टम गंभीर है तो हमें जल्द से जल्द ऐसा सिस्टम या तंत्र विकसित करने की जरूरत है।

जिससे कि भविष्य में भ्रष्टाचार की ऐसी कोई इमारत देश के किसी भी हिस्से में खड़ी ना हो सके। इस मामले में राज्य सरकार ने प्राधिकरण के कुछ भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया है। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि क्या इतने भर से उनके गुनाहों का हिसाब हो जाएगा? क्या सरकार की इस कार्रवाई के बाद प्राधिकरण के कोई अफसर या कर्मचारी बिल्डर से रिश्वत लेने की हिम्मत नहीं जुटा सकेंगे? अगर इसका जवाब ना है तो एक बार फिर हमें इस मामले पर गहराई से चिंतन और मंथन करना होगा और जिस तंत्र की में बात कर रहा था उस तंत्र को बनाना होगा। ताकि ऐसे भ्रष्टाचार की इमारत की बनने की शुरुआत ही ना हो सके। क्योंकि जब ऐसे मामलों की शुरुआत नहीं होगी तो फिर अंत की जरूरत भी नहीं होगी।