एलईडी लाइट घोटाला: नगर निगम पाक साफ लेकिन शासन का दामन दागदार

भाजपा पार्षद ने दी सरकार के खिलाफ कोर्ट में जाने की चेतावनी

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। एलईडी घोटाले में प्रारंभिक रूप से जो तथ्य सामने आये हैं उसमें गाजियाबाद नगर निगम का दामन पाक साफ है लेकिन शासन का दामन पूरी तरह से दागदार है। नगर निगम के अधिकारी भले ही शासन के खिलाफ कुछ ना बोलें लेकिन शासन में बैठे कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की वजह से करोड़ों रुपये का नुकसान सरकार को हुआ है। इस मामले में भाजपा के पार्षद राजेंद्र त्यागी ने पूरी तरह से मोर्चा खोल दिया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि भले ही उन्हें सरकार के खिलाफ ही क्यों ना जाना पड़े वह इस मामले को कोर्ट तक पहुंचाएंगे। उधर, पार्षद द्वारा इस मामले को उठाये जाने के बाद मेयर आशा शर्मा और म्युनिसिपल कमिश्नर डॉ. दिनेश चंद्र सिंह ने भी इसे गंभीरता से लिया है। मंगलवार को गाजियाबाद नगर निगम द्वारा शासन को एक पत्र भी लिखा गया जिसमें कंपनी की कार्यशैली, नगर निगम सदन द्वारा कंपनी को ब्लैक लिस्ट करके भुगतान रोकने और कम काम के बावजूद ढ़ाई गुणा अधिक भुगतान किये जाने पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई गई।
मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस कर इस मामले का खुलासा करने वाले भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने चेतावनी दी है कि अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड को हुए करोड़ों रुपये के भुगतान की जांच कराने के बाद दोषी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं करती है तो वह सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। करीब नौ करोड़ रुपये के इस घोटाले से सरकार की छवि को भी झटका लगा है। दरअसल भाजपा सरकार अब तक कहती आई है कि उनके कार्यकाल में कोई घोटाला नहीं हुआ है मगर जिस तरह से निगम बोर्ड से ब्लैक लिस्ट घोषित कंपनी को शासन ने बिना गाजियाबाद नगर निगम की संस्तुति और कार्योें का सत्यापन कराये बगैर लगभग 9 करोड़ रुपये का भुगतान किया है वह गंभीर मामला है। कंपनी को 3.36 करोड़ 88 हजार 395 रुपए भुगतान करने की संस्तुति गाजियाबाद नगर निगम द्वारा की गई थी जबकि शासन से कंपनी को 8 करोड़ 97 लाख 13 हजार 602 रुपए का भुगतान कर दिया गया। भाजपा पार्षद ने म्युनिसिपल कमिश्नर डॉ. दिनेश चंद्र के समक्ष भी इस पूरे मामले को रखा और कार्रवाई की मांग की। म्युनिसिपल कमिश्नर ने इस मामले के संज्ञान में लेते हुए मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव नगर विकास को पत्र लिखकर गाजियाबाद नगर निगम की आपत्तियों से अवगत कराया है। राजेंद्र त्यागी ने बताया कि जिस व्हाईट प्लाकार्ड कंपनी को नगर निगम बोर्ड बैठक में निगम द्वारा ब्लैक लिस्ट पिछले साल किया गया था। इसके खिलाफ सिहानी गेट थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी। उसे शासन से बिना गाजियाबाद नगर निगम को सूचना दिये कैसे भुगतान कर दिया गया।

क्या है पूरा मामला
एलईडी लाइट लगाने वाली कंपनी मेसर्स व्हाईट प्लाकार्ड लिमिटेड के साथ 7 जनवरी-2016 को एक अनुबंध किया था। अनुबंध के तहत कंपनी को नगर निगम सीमा क्षेत्र में पुरानी स्ट्रीट लाइट हटाकर उनके स्थान पर 50,214 नई एलईडी लाइट लगानी थी। इससे बिजली की बचत होगी और बिजली बिल में कमी आएगी। अनुबंध के मुताबिक जितनी बिजली बिल में बचत होगी उसका इसका 75 प्रतिशत पैसा कंपनी को दिया जाएगा। जबकि 25 प्रतिशत पैसा नगर निगम को मिलेगा। सात साल तक सभी लाइट का अनुरक्षण भी कंपनी को करना था। मगर कंपनी द्वारा सिर्फ 48,113 एलईडी लाइट लगाना ही दशार्या गया। गाजियाबाद के म्युनिसिपल कमिश्नर के आदेश पर जब इसकी जांच कराई तो सिर्फ 35,388 नग एलईडी लाइट ही लगाने की पुष्टि हुर्ई। कंपनी ने अनुबंध की शर्तों का उलंघन्न किया। कपंनी ने न तो अनुरक्षण किया और न ही कंट्रोल रूम स्थापित किया। पार्षदों के मुताबिक शहर में 25 प्रतिशत एलईडी लाइट खराब मिली। 27 अगस्त, 2018 को हुई कार्यकारिणी की बैठक में फर्म को ब्लैक लिस्ट करने का प्रस्ताव पास हुआ। दिसंबर 2017 से 31 मार्च, 2019 तक एलईडी लगने से हुई बचत का 75 प्रतिशत पैसा कंपनी ने मांगा। विद्युत बिलों के आधार पर जून 2018 से मार्च 2019 तक 7 करोड़ 20 लाख रुपए की विद्युत बचाई। मगर कंपनी को लगभग 9 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। इस पर स्थानीय निदेशक डॉ.काजल के हस्ताक्षर हैं। इतना ही नहीं शासन से ब्लैक लिस्ट कंपनी को भुगतान करने की जानकारी भी गाजियाबाद नगर निगम को नहीं दी गई।
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