सुनो सरकार उद्यमी है बेहाल

लेखक – विजय मिश्र

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इंडियन एक्सप्रेस, जी न्यूज, दैनिक जागरण, अमर उजाला, नई दुनिया सहित कई प्रमुख समाचार पत्र एवं न्यूज चैनल के साथ काम कर चुके हैं। उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)

कारोबारी करोबार करते हैं और कोरोबार के पथ को सुगह बनाने के लिए सरकार को टैक्स देते हैं। कारोबारियों को टैक्स देने से कोई परेशानी नहीं है। अधिकांश कारोबारी नियमानुसार टैक्स देते हंै। फिर भी उन्हें कड़े सरकारी नियम और अधिकारियों के उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है। साढ़े चार वर्ष पहले जब सरकार ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू किया गया तब भी व्यापारियों ने इसे स्वीकारा। लेकिन जीएसटी लागू करते समय सरकार ने उद्यमियों के साथ जो वायदा किया था। उन वायदों को जीएसटी लागू होने के बाद भूला दिया गया। सरल कर प्रणाली की वकालत के तहत जीएसटी को लागू किया गया था। लेकिन जीएसटी लागू होने के कई वर्ष बाद भी छोटे कारोबारियों और उद्यमियों को ना तो सरल कर प्रणाली मिली और ना ही उन्हें इंस्पेक्टर राज से छूटकारा मिला है। छोटे, लघु और मध्यम उद्यमियों एवं कारोबारियों के लिए तो जीएसटी जजिया कर जैसा बन गया है। जीएसटी कानून में दंड, जुर्माना को लेकर इतने कड़े प्रावधान हैं कि जरा सी चूक होने पर कारोबारियों को जीएसटी से अधिक जुर्माना भरना पड़ रहा है। जीएसटी के पेंचिदा नियमों ने व्यापारियों की मुश्किलें बढ़ा रखी है। नाराज व्यापारियों ने शुक्रवार को देशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। उद्यमी ना सिर्फ सरकार को टैक्स देता है बल्कि अधिक से अधिक रोजगार के अवसर पैदा करता है। फिर सरकार का उद्यमियों के प्रति रवैया निराशाजनक ही रहा है। हड़ताल के जरिये कारोबारी सरकार के समाने बेहाली सुनाना चाहते हैं। सरकार को उद्यमियों की परेशानियों को सुनने के साथ उसे दूर करने के उपाय भी तलाशने होंगे। मेक इन इंडिया और स्वाबलंबी योजनाएं तभी सफल होगी जब सरकार जीएसटी का सरलीकरण करने के साथ छोटे, लघु एमएसएमई को दंडात्मक तरीके से हतोत्साहित करने के बजाय उन्हें प्रोत्साहित करेगी।
ध्यान देने की बात यह है कि केंद्र सरकार ने समय-समय पर जीएसटी में संशोधन किए हैं। इसके बावजूद यह प्रणाली सरल नहीं हो पाई है। नतीजन व्यापार करना टेड़ी खीर साबित हो रहा है। उद्यमी को सरकार की मंशा पर कोई शक नहीं है। लेकिन सरकारी अधिकारियों के रवैये, जीएसटी की जटिलता और कड़े जुर्माने का प्रावधान सरकार के प्रति उद्यमियों का गुस्सा बढ़ा रही है। गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को संसद ने विगत 9 अगस्त 2016 में मंजूरी दी थी। इसके बाद 8 सितम्बर 2016 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जीएसटी बिल को अनुमति प्रदान कर दी थी। इसके बाद समूचे देश में एक अप्रत्यक्ष कर लागू करने का रास्ता क्लीयर हो गया था। जीएसटी को संसद से मंजूरी मिलने के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि नए बिल से व्यापारियों को टैक्स टेररिज्म से छुटकारा मिल सकेगा। यानि व्यापारियों को टैक्स के मकडजाल से आतंकित नहीं होना पड़ेगा। इसके उलट व्यापारियों को जीएसटी ने आज आतंकित कर रखा है। जीएसटी की जटिल प्रक्रियाओं ने व्यापारियों की मनोस्थिति खराब कर रखी है। उन्हें व्यापार करने में ढेरों कठिनाई पेश आ रही हैं। व्यापारियों की मानें तो मंजूरी मिलने के बाद से जीएसटी में अब तक 900 बार संशोधन हो चुका है, मगर उन्हें राहत नहीं मिल पाई है। वित्त मंत्रालय द्वारा हाल-फिलहाल में भी कुछ संशोधन किए गए हैं। जिसके विरोध में व्यापारियों ने एकजुट होकर आवाज बुलंद की है। केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए देशभर के व्यापारियों ने एकजुटता का प्रदर्शन करने को शुक्रवार को देशव्यापी हड़ताल की घोषणा की है। हड़ताल में 8 करोड़ से अधिक व्यापारियों के शामिल होने की संभावना है। व्यापारियों को ट्रांसपोर्टरों का भी समर्थन मिला है। द कंफेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स ने जीएसटी प्रणाली को सरल बनाने की पुरजोर मांग की है। संगठन के प्रतिनिधियों का कहना है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों और जीएसटी परिषद को माल एवं सेवा कर के कठोर नियमों को समाप्त करना चाहिए। देशव्यापी हड़ताल में आॅल इंडिया एफएमसीजी डिस्ट्रिब्यूटर्स फैडरेशन, फैडेरेशन आॅफ एलूमिनियीयम यूटेंसिलस मैन्यूफैक्चर्स एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन, नार्थ इंडिया स्पाईसिस ट्रेडर्स एसोसिएशन, आॅल इंडिया वूमेंन एंटरप्रिनियर्स एसोसिएशन, आॅल इंडिया कंप्यूटर डीलर एसोसिएशन, आॅल इंडिया कॉस्मेटिक मैम्युफैक्चर्स एसोसिएशन इत्यादि संगठन शामिल होंगे। व्यापारियों ने राष्ट्रीय अग्रिम नियम प्राधिकरण का गठन, अपीलीय न्यायाधिकारण का गठन, प्री जीएसटी और पोस्ट जीएसटी की अवधि के रिफंड जारी करने, जांच एजेंसियों द्वारा अनुचित उत्पीड़न रोकने, प्रत्येक जनपद में जीएसटी समिति का गठन कर उसमें वरिष्ठ विभागीय अधिकारी और ट्रेड लीडर शामिल किए जाने की मांग भी की है। कारोबारियों की यह मांग देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जरूरी है। देश में आजादी के बाद से टैक्स के जंजाल में उलझे व्यापारियों को राहत देने के लिए मोदी सरकार ने जीएसटी प्रणाली पर जोर दिया था। हालांकि यह प्रणाली सरल न होकर इतनी जटिल है कि आज तक व्यापारियों की उलझन दूर नहीं हो पाई है। जीएसटी में बार-बार संशोधन कर देने से काम नहीं चल रहा है। देश में ई-कॉमर्स कंपनियों का वर्चस्व निरंतर बढ़ रहा है। इस कारण व्यापारियों को काफी प्रतिर्स्धा का सामना करना पड़ रहा है। विदेशी कंपनियों द्वारा आॅनलाइन कारोबार करने और जगह-जगह विशाल आउटलेट खोल दिए जाने से गली-मौहल्लों और कॉलोनियों में खुली व्यापारियों की छोटी-बड़ी दुकानों पर प्रतिकूल असर पड़ा है। व्यापारियों के ग्राहक और आमदनी दोनों कम होते जा रहे हैं। ऊपर से जीएसटी ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। कोरोना काल ने तो व्यापारियों की रीढ़ की हड्डी तोड़कर रख दी है। फिर भी सरकारी अधिकारी व्यापारियों की टूटी हुई रीढ़ पर डंडा चलाने में तनिक भी संकोच नहीं करते। साफ शब्दों में कहें तो टैक्स विभाग के अधिकारियों द्वारा उद्यमियों का उत्पीड़न किया जा रहा है। छोटे और लघु मध्यम उद्यमी इन अधिकारियों के आसान शिकार बन रहे हैं। कोरोना काल में प्रभावित कारोबार से अब तक व्यापारियों को पूरी तरह से उबरने का मौका नहीं मिल पाया है। आम बजट में भी व्यापारियों को ज्यादा राहत नहीं मिल पाई। सरकार को जीएसटी में सुधार के साथ सरकारी अधिकारियों को भी सुधारने की जरूरत है।