सिद्धिपीठ है बाबा बैद्यनाथ धाम देवघर: तरुण मिश्र

-सिद्धपीठ (ज्योतिर्लिंग) बाबा बैद्यनाथ मन्दिर में समाज कल्याण और भाजपा की जीत के लिए ब्राह्मण सेवन की पूजा अर्चना

झारखंड। बैद्यनाथधाम (देवघर) के सिद्धपीठ (ज्योतिर्लिंग) बाबा बैद्यनाथ मन्दिर में रविवार को ब्राह्मण सेवक तरुण मिश्र ने सम्पूर्ण समाज के कल्याण और भाजपा की जीत के लिए पूजा अर्चना की। बाद में मन्दिर के मुख्य प्रबंधक रमेश परिहस्त ने तरुण मिश्र का सम्मान भी किया। इस दौरान भाजपा की जीत 400 पार के लिए बाबा की पूजा अर्चना की। तरुण मिश्र ने बैद्यनाथधाम (देवघर) के सिद्धपीठ (ज्योतिर्लिंग) के बारे बताया कि देवघर बाबा वैद्यनाथ का मंदिर के मध्य प्रांगण में बना शिव का मंदिर कब और किसने बनाया इसका कोई वास्तविक साक्ष्य नहीं है। यह अब भी शोध का विषय बना हुआ है। लोक मान्यता है कि देव शिल्प विश्वकर्मा ने मंदिर का निर्माण कराया। पुराणों में उल्लेख है कि रावण जब सशर्त शिवलिंग लेकर लंका जा रहे थे। अचानक देवघर के समीप लघुशंका के दौरान उन्होंने एक चरवाहा(विष्णु) को शिवलिंग दे दी थी। जिसके बाद शिवलिंग जमीन पर उन्होंने रख दी। लाख कोशिश के बाद जब रावण शिवलिंग को उठा नहीं पाए तो थकहार कर वे लंका चले गए। इसके बाद भगवान विष्णु वैद्यनाथ के दर्शन को वहां पहुंचे थे। जहां उन्होंने षोड़षोपचार पद्धति से शिव की अराधना की थी। इसके बाद भगवान शंकर ने विष्णु से कहा था कि यहां एक मेरा सुंदर सा मंदिर का निर्माण आप कराएं क्योंकि आपके अलावा यह शक्ति किसी और नहीं है। बाद में विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के बाहर द्वार पर एक शिलालेख है। जिसमें उल्लेखित है कि नृपाति: खलु पूरण: स्वयं वर पद्यं विरचय्य मंदिरे, मठनिम्मितवर्ष वोधक व्यलिखद्वार शिलोपरि स्फुटम।

मंदिर निर्माण की शुरुआत 1514 शाक में शुरू हुई जो तीन वर्ष बाद 1517 को मंदिर बनकर तैयार हो गया। इस मंदिर के भीतरी भाग में एक चमकता रत्न है जिसे चंद्रकांत मणि कहा जा रहा है। वर्ष 1962 में इस रत्न का तब पता चला जब शिवजी के ऊपर लगे चंदवा को खोला गया तथा उसके उपर सर्च लाइट फेंका गया। तब यह पता चला कि चतुर्पाश्व के आकार का अष्टदल कमल बना हुआ है। जिसमें पता चला कि बीच में एक लघुकुंड है। कहा जाता है कि इससे प्रत्येक मिनट एक बूंद शीतल जल बाबा के मस्तक पर गिरता है। बाबा बैद्यनाथ धाम एक सिद्धिपीठ भी है। कहा जाता है कि तपस्या, योग और तांत्रिक प्रयोग होने वाला स्थल में सिद्धि की प्राप्ति होती है। सिद्धपीठ को एक प्रकार देव निवास स्थल होता है। सिद्धपीठ को हम सिद्ध, भूमि, सिद्ध क्षेत्र और सिद्धाश्रम भी कहते हैं। एक बार नारद ऋषि हनुमान से कहा कि हे वायुतनय। जहां (वैद्यनाथधाम) विश्वेश्वर खुद ही अशुचियों को मोक्ष देने वाले हैैं।

जहां महाकाल के साथ काली विराजमान करती हैं या बटुक, भगवान सूर्यदेव, गणेश विराजमान करते हैैं। यह इलाका सिद्धि पाने का सबसे उत्तम स्थल है। रावणेश्वर वैद्यनाथ जहां विद्यामान हो वह मुक्ति का ध्रुव है। जहां कामना लिंग है, वहां कामनाएं सिद्ध होती रही है। उन्होंने बताया प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंग के नामों का जप कर लेने मात्र से ही कई दोषों का निवारण अपने आप हो जाता है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग जिसे बैजनाथ भी कहते हैं। यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। देवघर का साधारण भाषा में अर्थ समझे तो देवताओं का स्थान.. सावन मास में लाखों की संख्या में श्रद्धालू 100 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज से पवित्र गंगा नदी का जल लेकर देवघर पहुंचते हैं। यहां मन्दिर की चोटी पर त्रिशूल नहीं बल्कि पंचशूल लगा हुआ है जो मंदिर का सुरक्षा कवच है।