गाजियाबाद कोर्ट ने आतंकवादी वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाई, वाराणसी सीरियल बम ब्लास्ट में आया कोर्ट का फैसला

  • कोर्ट ने कहा- तब तक फंदे पर लटकाएं जब तक उसकी मौत न हो जाए

गाजियाबाद। वाराणसी जनपद में वर्ष-2006 यानी 16 साल पहले हुए सिलसिलेवार बम धमाके में हुई 18 लोगों की मौत के मामले में दोषी आतंकी वलीउल्लाह को जिला एवं सत्र न्यायाधीश जितेंद्र कुमार सिन्हा की अदालत ने सोमवार को करीब साढ़े तीन बजे फांसी की सजा सुनाई। शनिवार को ही कोर्ट ने वलीउल्लाह को दोषी करार दिया था। वाराणसी में हुए बम ब्लास्ट में 18 लोगों की मौत हुई थी और 50 लोग घायल हुए थे। यह सभी लोग इस चर्चित बम ब्लास्ट मामले में अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे थे। सुनवाई से पहले कचहरी में कड़े सुरक्षा इंतजाम किए गए। कचहरी में तीन रास्तों से आवागमन बंद कर दिया गया है। सिर्फ एक रास्ते से चेकिंग के बाद ही कचहरी में प्रवेश करने दिया गया।

सुरक्षा के लिहाज से जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत की तरफ जाने वाली गैलरी पर पुलिसकर्मी तैनात रहे। उन्होंने आवागमन बंद कर दिया था। इस मामले से जुड़े अधिवक्ताओं के अलावा अन्य किसी अधिवक्ता को भी जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत की तरफ जाने नहीं दिया गया। बम निरोधक दस्ता और डॉग स्क्वॉयड भी मौके पर मौजूद रहा। जिला शासकीय अधिवक्ता राजेश चंद शर्मा ने बताया कि सात मार्च-2006 को वाराणसी में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। पहला बम धमाका शाम 6.15 बजे वाराणसी के लंका थाना क्षेत्र में संकटमोचन मंदिर में हुआ था। इसमें सात लोग मारे गए थे,जबकि 26 लोग घायल हुए थे।उसी दिन 15 मिनट के बाद 6.30 बजे दशाश्वमेध घाट थाना क्षेत्र में जम्मू रेलवे फाटक की रेलिंग के पास कुकर बम मिला था। पुलिस की मुस्तैदी के चलते यहां विस्फोट होने से बच गया था।इन दोनों मामलों में हत्या,हत्या का प्रयास,चोटिल व अंग भंग करने, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम व आतंकी गतिविधि के आरोप में अदालत आतंकी वलीउल्लाह को दोषी करार दे चुकी है। जबकि जीआरपी वाराणसी थाना क्षेत्र में वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन पर प्रथम श्रेणी के विश्राम कक्ष के सामने हुए धमाके में 9 लोग मारे गए थे और 50 लोग घायल हुए थे। इसमें साक्ष्यों के अभाव में अदालत उसे बरी कर चुकी है।

24 दिसंबर 2006 को सुनवाई के लिए गाजियाबाद हुआ था स्थानांतरित 
बता दें कि वाराणसी में अधिवक्ताओं ने वलीउल्लाह की पैरवी करने से मना कर दिया था। प्रयागराज हाईकोर्ट के आदेश पर 24 दिसंबर 2006 को यह मामला सुनवाई के लिए गाजियाबाद स्थानांतरित हुआ था। वलीउल्लाह प्रयागराज की फूलपुर स्थित नलकूप कालोनी का रहने वाला है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि दोषी को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए,जब तक उसकी मौत न हो जाए। धमाकों के करीब 16 साल बाद यह फैसला आया है। धमाके संकट मोचन मंदिर, दशाश्वमेघ घाट और कैंट रेलवे स्टेशन पर एक के बाद एक हुए थे। धमाके में 18 लोगों की मौत हुई थी।डीजीसी (जिला शासकीय अधिवक्ता) क्रिमिनल राजेश चंद्र शर्मा ने बताया कि संकट मोचन मंदिर वाराणसी पर हुए बम धमाके में 7 लोग मारे गए थे और 26 लोग घायल हुए थे। इस मामले में 47 गवाह पेश किए गए। कोर्ट ने दोषी वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाई है।

विस्फोटक अधिनियम की धारा 3,4 और 5 में वलीउल्लाह को 10-10 साल कैद की सजा
डीजीसी ने बताया कि दूसरा मुकदमा दशाश्वमेघ घाट पर बम धमाके से जुड़ा था। विस्फोटक अधिनियम की धारा 3,4 और 5 में वलीउल्लाह को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई है। जबकि यूएपीए अनलॉफुल एक्टीविअिज (प्रीवेंशन) एक्ट में उसे उम्रकैद हुई है। 7 मार्च 2006 को सीरियल बम धमाके में 18 लोग मारे गए थे और करीब 76 लोग घायल हुए थे। 5 अप्रैल 2006 को पुलिस ने इस मामले में प्रयागराज जिले के फूलपुर गांव निवासी वलीउल्लाह को गिरफ्तार किया। वलीउल्लाह से पूछताछ में उसके साथियों मुस्तकीम, जकारिया और शमीम के नाम भी सामने आए थे। ये सभी उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। बम धमाकों के 16 साल बाद भी ये आरोपी नहीं पकड़े जा सके हैं। ऐसा माना जाता है कि सुरक्षा एजेंसियों का शिकंजा कसने के बाद ये आरोपी बांग्लादेश के रास्ते पाकिस्तान भाग गए थे और फिर लौटकर नहीं आए। इन धमाकों में 16 साल बाद भी तीन आरोपियों का नहीं पकड़ा जाना देश की सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े करता है।

फांसी की सजा होने पर जेल में बढ़ी निगरानी
वाराणसी के सीरियल बम धमाकों में फांसी की सजा होने के बाद आतंकी वलीउल्लाह की डासना जेल में निगरानी बढ़ा दी गई है। जेल अधीक्षक आलोक सिंह ने बताया कि जेलर व डिप्टी जेलरों के साथ प्रधान बंदी रक्षक को निर्देश दिए गए हैं कि वलीउल्लाह पर नजर रखें। उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आए तो इस बारे में तुरंत सूचना दें। जेल अधीक्षक ने बताया कि 15 दिसंबर 2006 को वलीउल्लाह को वाराणसी से डासना जेल में ट्रांसफर किया गया था।वह तभी से एकल संवेदनशील कमरे में रह रहा है। आम कैदियों से उसे मिलने-जुलने नहीं दिया जाता। खाना भी उसके कमरे में पहुंचाया जाता है।वलीउल्लाह शुरुआत से ही शांत और एकाकी रहा है। 48 वर्षीय वलीउल्लाह की एक तिहाई उम्र गाजियाबाद की डासना स्थित जिला कारागार में बीत गई है। इस दौरान उसके व्यवहार में कभी कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। वह पूरी तरह स्वस्थ है और जरूरत पडऩे पर खांसी, जुकाम व बुखार की ही दवा दी गई है।

जेल अधीक्षक ने बताया कि पेशी पर ले जाने के दौरान पुलिस विभाग से समन्वय कर सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता रही। पेशी के बाद शाम करीब चार बजे वलीउल्लाह जेल लौटा। इस दौरान उसके स्वास्थ्य जांच की गई। रक्तचाप सामान्य रहा और इस दौरान उसने स्वास्थ्यकर्मियों एवं जेल के कर्मचारियों से भी कोई बात नहीं की।फांसी की सजा होने के बाद उसके हाव-भाव भी बदले हुए नजर नहीं आए। जांच के बाद अपना सामान लेकर चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया। उसके कमरे के बाहर बंदीरक्षक को लगा दिया है। अधिकारियों से भी कहा कि जेल परिसर के भ्रमण के दौरान वलीउल्लाह का जायजा जरूर लें।