राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक स्वाभिमान का प्रतीक मातृभाषा: लक्ष्मी त्यागी

-प्राथमिक विद्यालय खुरर्मपुर प्रथम में मनाया गया अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस

गाजियाबाद। दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता व बहुभाषिता को बढ़ावा देने और मातृभाषाओं से जुड़ी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है। इस दिन 1952 में ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध-प्रदर्शन किया था। यह प्रदर्शन एक नरसंहार में बदल गया। उस समय तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाई थीं। इस घटना में 16 लोगों की जान गई थी। भाषा के इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में 1999 में यूनेस्को ने पहली बार मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी।

यह बातें सोमवार को मुरादनगर के प्राथमिक विद्यालय खुरर्मपुर प्रथम में अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर बच्चों को जागरूक करते हुए विद्यालय की प्रधानाध्यापिका लक्ष्मी त्यागी ने कहीं। उन्होंने कहा किसी भी देश की राष्ट्रीय अस्मिता और सांस्कृतिक स्वाभिमान का प्रतीक मातृभाषा होती है। प्रिंट मीडिया सशक्त माध्यम है। समाचार पत्रों के माध्यम से बच्चों में नैतिकता व अच्छे संस्कार भरने के साथ साथ समसामयिक समाचारों के माध्यम से राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षिक, तकनीकी, आर्थिक, खेलों आदि की स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जानकारी मिलती है। भाषायी विकास के लिए विद्यालय द्वारा बच्चों की विभिन्न गतिविधियों का भी आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय भाषाओं सम्बन्धित चित्रकला, स्लोगन व निबंध गतिविधि कराई गई।

भारत के नक्शे पर बच्चों द्वारा विभिन्न राज्यों तथा पड़ोसी देशों की भाषाओं को दर्शाया गया। आयोजन का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सन्देश देना था कि अपनी मातृ भाषा से प्रेम करने के साथ साथ अन्य भाषाओं को भी सम्मान देना चाहिए। इस मौके पर बच्चों द्वारा हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत में कविता वाचन भी किया गया। दो बच्चों द्वारा अपनी भाषा में लोकगीत भी प्रस्तुत किये गए। इस दौरान अर्चना, रुचिका जैन, रेणुका,नवीन, मनोज आदि उपस्थित रहे।