त्योहारी सीजन से पहले रुपये में गिरावट, सरकार को उठाने चाहिए प्रभावी कदम

गाजियाबाद। डॉलर के मुकाबले रुपये में ऐतिहासिक गिरावट जारी है। आज एक बार फिर रुपए में भारी गिरावट देखने को मिली है। डॉलर के मुकाबले रुपया 62 पैसे तक गिरकर 81.09 के स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ ही रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने रेपो दर में 75 आधार अंकों की वृद्धि की थी, जो उम्मीदों के अनुरूप समान परिमाण की निरंतर तीसरी वृद्धि है, जिसका अनिवार्य रूप से मतलब है कि निवेशक मौद्रिक के बीच बेहतर और स्थिर रिटर्न के लिए अमेरिकी बाजारों की ओर बढ़ें। फेडरल रिजर्व ने यह भी संकेत दिया है कि अधिक दरों में बढ़ोतरी आ रही है और ये दरें 2024 तक ऊंची रहेंगी। इस बीच भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के निचले स्तर पर है।

इस साल की शुरूआत में रूस-यूक्रेन तनाव के युद्ध में बढ़ने के बाद से भंडार में लगभग 80 बिलियन अमरीकी डालर की गिरावट आई है। रुपये में गिरावट को रोकने के लिए बाजार में आरबीआई के संभावित हस्तक्षेप के कारण पिछले कुछ महीनों से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार निरंतर घट रहा है। दिसंबर 2014 के बाद से रुपये में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। लोकसभा के मॉनसून सत्र में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक लिखित जवाब में आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक बताया कि रुपया 31 दिसंबर 2014 के रेट के मुकाबले 25 फीसदी तक गिर गया है। 31 दिसंबर 2014 को डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 63.33 थी, जो कि 11 जुलाई 2022 को 79.41 रुपये प्रति डॉलर दर्ज की गई है। यह 25 फीसदी तक की गिरावट है।

मंत्री ने बताया कि यूएस डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में आई गिरावट के पीछे कई वैश्विक तथ्य जैसे कि रूस-यूक्रेन संघर्ष, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और दबाव में चल रही वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां शामिल हैं। व्यापारी एकता समिति संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप गुप्ता का कहना है कि रुपये को मजबूत करने के लिए सरकार को हरसंभव कदम उठाने चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके, जिससे कि आने वाले त्योहारी सीजन में बाजार की सेहत दुरुस्त हो सके। बता दें कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक लम्बे समय में 2 प्रतिशत की दर से अधिकतम रोजगार और मुद्रास्फीति हासिल करना चाहता है और यह अनुमान लगाता है कि लक्ष्य सीमा में चल रही बढ़ोतरी उचित होगी।

ब्याज दरें बढ़ाना एक मौद्रिक नीति साधन है जो आमतौर पर अर्थव्यवस्था में मांग को दबाने में मदद करता है, जिससे मुद्रास्फीति दर में गिरावट में मदद मिलती है। अमेरिका में उपभोक्ता मुद्रास्फीति हालांकि अगस्त में मामूली रूप से घटकर 8.3 प्रतिशत रह गई, जो जुलाई में 8.5 प्रतिशत थी, मगर यह लक्ष्य 2 प्रतिशत से कहीं अधिक है। आमतौर पर रुपये में भारी गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई डॉलर की बिक्री सहित तरलता प्रबंधन के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप करता है। रुपये में गिरावट आमतौर पर आयातित वस्तुओं को महंगा बनाती है।

फॉरेक्स मार्केट के जानकार मानते हैं कि डॉलर इंडेक्स में मजबूती से रुपये में आधा से पौने फीसदी की गिरावट आनी चाहिए थी पर यह एक से सवा फीसदी तक लुढ़क गया है। ऐसे में अब बाजार की नजर इस बात पर टिकी है कि केंद्रीय बैंक आरबीआई गिरते रुपये को संभालने के लिए क्या कदम उठाता है? हालांकि इस बात की संभावना कम है कि आरबीआई इस बार रुपये पर लगाम लगाने की कोशिश करेगा। क्योंकि रुपया 80 का लेवल पहले ही तोड़ चुका है। आरबीआई इंतजार कर सकता है कि किस स्तर पर जाकर रुपया स्टेबल होता है या इसका अलग लेवल क्या है?