ट्वीन टावर : बिल्डर की मनमानी और नोएडा अथॉरिटी की मेहरबानी, बड़ा सबक है करप्शन की यह कहानी

नोएडा। नोएडा के सुपरटेक ट्वीन टावर की गूंज आज देश-विदेश में सुनाई पड़ रही है। सरकारी नियमों की अनदेखी और रेजीडेंट्स के जीवन की परवाह किए बगैर बिल्डर ने दौलत और रसूख के बल पर ट्वीन टावर खड़े कर डाले थे। पर्दे के पीछे से नोएडा प्राधिकरण की फुल सपोर्ट मिलती रही। 2 टावरों के निर्माण में ना मानचित्र का पालन किया गया और न दोनों के मध्य निर्धारित दूरी रखी गई थी। कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने की लालसा अब सुपरटेक कंपनी को भारी पड़ गई है। भ्रष्टाचार की नींच पर खड़े किए इन टावर के निर्माण पर लगभग 200-300 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। जबकि इन्हें जमींदोज करने का खर्च भी साढ़े 17 करोड़ रुपए से ज्यादा आंका गया है। बिल्डर के अन्याय और करप्शन के खिलाफ रेजीडेंट्स को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। संघर्ष का परिणाम सामने आने पर रेजीडेंट्स ने राहत की सांस ली है। सुपरटेक ट्वीन टावर प्रकरण न सिर्फ बेलगाम बिल्डरों बल्कि अथॉरिटीज के लिए भी किसी सबक से कम नहीं है। पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ईमानदारी से न्याय कर भ्रष्टाचार की बहुमंजिला इमारतों के ध्वस्तीकरण का रास्ता प्रशस्त कर दिया था।

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दिल्ली-एनसीआर में 90 के दशक के बाद रियल एस्टेट ने तेजी से उड़ान भरी शुरू की थी। इसके बाद गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद जैसे इलाकों में बिल्डरों ने धड़ाधड़ बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर खूब चांदी काटी। भूकंप की दृष्टि से दिल्ली-एनसीआर को संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। इसके बावजूद बहुमंजिला इमारतों के निर्माण में भूकंपरोधी तकनीकी को गंभीरता से आज तक अपनाया नहीं गया है। गनीमत यह है कि अभी तक ज्यादा रिक्टर स्केल पर भूकंप नहीं आया है। अन्यथा परिणाम की कल्पना भी करना संभव नहीं है। नोएडा सेक्टर-93ए में सुपरटेक ग्रुप ने एपेक्स और सियाने नामक बहुमंजिला टावर का निर्माण कराया था। इसके लिए नोएडा प्राधिकरण की तरफ से 23 नवंबर 2004 को भूमि का आवंटन किया गया था। बिल्डर को कुल 84 हजार 273 वर्ग मीटर भूमि आवंटित की गई थी। मानचित्र के हिसाब से जहां 32 मंजिला 2 टावर खड़े हैं, वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था। इसके अलावा छोटी इमारत का निर्माण प्रस्तावित था। 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिला था। भूखंड नंबर-4 पर आवंटित भूमि के पास 6.556.61 वर्ग मीटर भूमि का टुकड़ा निकल आया था, जिसकी अतिरिक्त लीज डीड भी बिल्डर के नाम कर दी गई थी, मगर ये 2 भूखंड 2006 में मानचित्र स्वीकृत होने के बाद एक भूखंड बन गया था। इस भूखंड पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग की थी।

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11 मंजिला टावर की थी योजना
इस प्रोजेक्ट में भूतल के अलावा 11 मंजिल के 16 टावर बनाने की योजना थी। इसके बाद उप्र सरकार के एक फैसले से इस प्रोजेक्ट में विवाद पैदा हो गया। शासन ने फरवरी 2009 में नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके अलावा पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया। एफएआर बढ़ने से संबंधित भूमि पर बिल्डर अधिक फ्लैट्स का निर्माण कर सकते थे। ऐसे में सुपरटेक ग्रुप को इमारत की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की मंजूरी मिल गई, मगर तीसरी बार रिवाइज्ड प्लान में इसकी ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के अतिरिक्त 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिलने पर होम बायर्स का माथा ठनक गया।

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मानचित्र न दिखाने पर शुरू हुई रार
इसके बाद होम बायर्स ने मानचित्र देखने के लिए प्रयास शुरू किए। बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी से बार-बार अनुरोध किए जाने के बाद भी होम बायर्स को मानचित्र नहीं दिखा गया। ऐसे में बायर्स के मन में शक गहरा होता चला गया। आरोप है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर से मिलीभगत कर दोनों टावरों की ऊंचाई नियम विरूद्ध तरीके से बढ़ाने की मंजूरी दी थी। बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक निर्माण स्थल पर प्रोजेक्ट का मानचित्र लगाया जाना अनिवार्य है, मगर इस मामले में ऐसा भी नहीं किया गया था। विरोध बढ़ने के बाद बिल्डर ने इसे अलग प्रोजेक्ट बता दिया। किसी भी स्तर पर सुनवाई न होने पर होम बायर्स ने 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खट-खटाया। कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने इस मामले की जांच की। पुलिस जांच में सच्चाई सामने आने के बाद भी जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

16 की बजाए सिर्फ 9 मीटर की दूरी
नियमानुसार टावर्स की ऊंचाई बढ़ाने पर 2 टावर के मध्य का अंतर बढ़ाया जाता है। इसके तहत एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए थी, मगर एमराल्ड कोर्ट के टावर से इसकी दूरी सिर्फ 9 मीटर रखी गई। इस मसले पर भी नोएडा प्राधिकरण ने चुप्पी साधे रखी। प्राधिकरण की तरफ से दमकल विभाग को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। दरअसल 2 टावरों के मध्य में पर्याप्त दूरी न होने पर रेजीडेंट्स को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता। हवा एवं धूप में रूकावट आने के साथ आग लगने की दशा में बड़ी जनहानि होने का खतरा था। आरोप है कि नए मानचित्र में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह मामला पहुंचने के दौरान दोनों टावर की सिर्फ 13 मंजिल का निर्माण पूरा किया गया था, मगर डेढ़ साल के भीतर बिल्डर ने काम में तेजी लाकर 32 मंजिल का निर्माण करा दिया।। इससे साफ है कि बिल्डर को कोर्ट का डर था।

निर्माण पर 300 करोड़, गिराने पर 17.55 करोड़ का खर्च
सुपरटेक ग्रुप ने 32 मंजिला ट्वीन टावर के निर्माण पर लगभग 200-300 करोड़ रुपए खर्च किए थे। बिल्डर का इरादा दोनों टावरों को 39 से 40 मंजिला बनाने का था। यदि कोर्ट का दखल न होता तो आज मौके पर 39 से 40 मंजिल ऊंचे टावर खड़े भी हो जाते। अब इन दोनों टावरों के ध्वस्तीकरण पर करीब 17.55 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। एपेक्स और सियाने नामक टावर में कुल 711 फ्लैटों की बुकिंग हो चुकी थी। बिल्डर ने 652 ग्राहकों के साथ सेटलमेंट भी कर लिया था। दोनों टावरों के 59 ग्राहकों को अब तक रिफंड नहीं मिल पाया है। हालाकि रिफंड की अंतिम तिथि 31 मार्च 2022 निर्धारित की गई थी। बताया जाता है कि सुपरटेक के इंसोल्वेंसी में जाने से रिफंड प्रक्रिया अधूरी रह गई।