ग्रीन दीपावली मनाएं, पर्यावरण हित में पटाखे न जलाएं

लेखक:गौरव पांडेय 
(लेखक हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)

दीपावली पर्व पर सभी भारतीयों को दिल से बधाई। दीपावली पर्व पर देश एवं विदेश में बसे भारतीयों के मन में खुशी का संचार हो जाता है। यह त्यौहार देश के सभी वर्ग के लोगों के लिए अपार खुशियां और समृद्धि लेकर आए, ऐसी कामना है। दीपावली पर्व को प्रदूषण मुक्त तरीके से मनाएं। हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को रंगोली सजाकर मनाएं। कृत्रिम रंगों की बजाय प्राकृतिक रंगों से रंगोली बनाएं, सफेद रंग के लिए चावल के पाउडर का उपयोग करें, पीले रंग के लिए हल्दी का इस्तेमाल करें। भूरे रंग के लिए दालचीनी का, हरे रंग के लिए सौंफ और लाल रंग के लिए कुमकुम का इस्तेमाल करें। इसके अलावा फूलों से भी रंगोली बनाई जा सकती है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित मूर्तियों के बजाय कोशिश करें कि मिट्टी की मूर्तियां जो इकोफ्रेंडली होती हैं, उन्हें उपयोग करें। मिट्टी के दीपक जलाएं, जो पर्यावरण के मित्र का काम करते हैं। सस्ते होने के साथ ये स्वाभाविक तरीके से नष्ट भी हो जाते है। साथ ही घर को भी पारंपरिक लुक देते हैं। पटाखों की भयानक आवाज न केवल लोगों एवं विशेषकर बुजुर्गों की क्षमता को कमजोर करती है, बल्कि इससे हार्ट अटैक के मामलों में भी वृद्धि होती है। ऐसे में पटाखों के विकल्प के तौर पर सूखे पत्ते, घास और लकड़ी जैसी चीजों से बोनफायर जलाकर रोशनी के इस त्योहार को किसी खुली जगह पर सबके साथ मनाएं। अगर बच्चे पटाखे जलाने की जिद करें तो उन्हें प्राकृतिक पटाखे जलाने के लिए दें। अमूमन ये देखा गया है कि दीपावली के बाद होने वाले स्मॉग से वातावरण पर बेहद दुष्प्रभाव पड़ता है और सांस के रोगियों को समस्या आने लगती है। दीपावली पर गिफ्ट देने के लिए जूट का बैग या कागज के बने बैग का उपयोग करें। मिठाई एवं अन्य खाद्य पदार्थ उतने ही खरीदें जितने आप उपयोग में ला सकते हों, यदि उपयोग से अधिक वस्तुएं आपके पास हों तो उन्हें पास ही किसी जरूरतमंद को दे दें।  अपने घर की आस-पास नजर रखें और यदि हम ऐसे किसी के घर एक दीपक जला सकें जो दीपावली की खुशियों से वंचित है तो कवि गोपालदास नीरज की कविता चरितार्थ हो जाएगी।

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मत्र्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
सृजन है अधूरा अगर विश्वभर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही,
भले ही दिवाली यहां रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्दय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अंधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।