श्रीराम का संपूर्ण जीवन प्रेरणादायी

लेखिका : गरिमा पंत
(वरिष्ठ पत्रकार, समाजविज्ञानी एवं लेखिका हैं। महत्वपूर्ण मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं।)

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन आदर्श जीवन था। उनका जीवन भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म का पर्याय था। श्रीराम दशरथ के पुत्र थे, माता इनकी कौशल्या थीं। पांच वर्ष की आयु में इनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। उसके उपरांत विद्यारंभ हुआ। चारों भाई बचपन से ही विश्वामित्र के आश्रम में रहकर ब्रह्मचर्य की साधना करते थे। शिक्षा पूर्ण होने के उपरांत इनका विवाह राजा जनक की पुत्री सीता से हो गया। आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है कि श्रीराम की उम्र विवाह के समय 25 वर्ष एवं सीताजी की 18 वर्ष थी।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम अविनाशी परमात्मा है। जो सबके सृजन हार एवं पालनहार है। श्रीराम जी क्रोधित नहीं होते थे। वह मानवीय आत्मा की विजय के प्रतीक महापुरुष है, जिन्होंने धर्म और सत्य की स्थापना करने के लिए अधर्म एवं अत्याचार को ललकारा। अंधेरों में उजाले, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई का प्रतीक बने। रामनवमी पर्व धर्म की स्थापना एवं बुराइयों के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। भगवान श्रीराम ने आदर्श जीवन मर्यादा के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता यहां तक पत्नी का साथ छोड़ा। राम जी का परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है।

श्री राम अनंत मर्यादा के पुरुष हैं। इसलिए इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पुकारा जाता है। हमारे समाज में राम जी जैसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है, जो मर्यादित हो न्याय प्रिय हो और भारतीय संस्कृति के मूल्यों को मानने वाला हो। श्री राम ने लंका के अत्याचारी राजा का वध कर भारतीय संस्कृति को जागृत किया। तुलसीदास जी की रामचरितमानस एक कालजई रचना है। जो भारतीय मनीषा के समस्त लौकिक, पारलौकिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का श्रीराम के चरित्र में चित्रण है, जो ऐसा प्रतीत कराती है कि मानो किसी कुशल शिल्पी ने नगीने जड़े हों। तुलसीदास ने श्रीराम के जीवन के कई प्रसंगों का व्याख्यान करते हुए उनको ईश्वरत्व का इशारा किया है।

अर्थात तुलसी ने श्रीराम के चरित्र को दो परस्पर विरोधी और विपरीत धाराओं मे समन्वय का प्रयास करके इसे और भव्यता प्रदान की है। श्रीराम लोक नायक एवं मानव चेतना के आदि पुरुष भी थे। भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों में दो अक्षरों का एक राम नाम में गहरी पैठ समाया हुआ है। श्रीराम का संपूर्ण जीवन विलक्षणता एवं विशेषताओं से ओत-प्रोत हैं। उनका ह्रदय करुणा का सागर है। श्रीराम का संपूर्ण जीवन विलक्षणता एवं विशेषताओं से ओत-प्रोत है, प्रेरणादायी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन से यही शिक्षा मिलती है कि हमें मर्यादित रहना चाहिए। सभी बड़ों का सम्मान एवं छोटों को स्नेह करना चाहिए, दूसरों को सम्मान देना चाहिए और एक आदर्श जीवन जीना चाहिए।

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन रामनवमी पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को रामजन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। राम जी के जन्म पर्व के कारण ही इस तिथि को रामनवमी कहा जाता है। भगवान राम को विष्णु का अवतार माना जाता है। धरती पर असुरों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में श्रीराम के रूप में मानव अवतार लिया था। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में कई कष्ट सहकर भी मर्यादित जीवन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया।

उन्होंने विपरीत परिस्थियों में भी अपने आदर्शों को नहीं त्यागा और मर्यादा में रहकर पूरा जीवन गुजारा। इसलिए उन्हें उत्तम पुरुष का स्थान दिया गया है। रामनवमी के दिन विशेष रूप से भगवान राम की पूजा-अर्चना के अलावा विभिन्न आयोजन किए जाते हैं। वैसे तो संपूर्ण भारत में भगवान राम का जन्मदिन उत्साह के साथ मनाया जाता है, मगर खासतौर से श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में इस पर्व को बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के समय अयोध्या में भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालुओं के अलावा साधु-संन्यासी भी पहुंचते हैं और रामजन्म का उत्सव मनाते हैं।

रामनवमी के दिन आमतौर पर हिंदू परिवारों में व्रत-उपवास, पूजा पाठ व अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होता है। कई घरों में विशेष साज-सज्जा कर, घर को पवित्र कर कलश स्थापना की जाती है। श्रीराम जी का पूजन कर, भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। इस दिन विशेष तौर पर श्रीराम के साथ माता जानकी और लक्ष्मण जी की भी पूजा होती है। माता कैकयी द्वारा राम जी के पिता महाराजा दशरथ से वरदान मांगे जाने पर, श्रीराम ने राजपाट छोड़कर 14 साल के वनवास को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया और वनवास के दौरान कई असुरों समेत अहंकारी रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। अयोध्या छोड़ते समय श्रीराम के साथ माता जानकी और भाई लक्ष्मण भी 14 साल के वनवास पर गए। यही कारण है कि रामनवमी पर उनकी भी पूजा श्रीराम के साथ की जाती है।