अमित शाह के नेतृत्व में आंतरिक मोर्चे पर देश को मजबूती

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बेहद कुशल राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें राजनीति का चाणक्य भी माना जाता है। गृहमंत्री के तौर पर वह काफी अच्छा काम कर रहे हैं। उनके भगीरथी प्रयासों से देश को आंतरिक मजबूती मिली है। नक्सवाद की समस्या पहले जैसी नहीं रह गई है। नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में नक्सलवादियों के पांव उखड़ने लगे हैं। देशविरोधी ताकतों की दाल नहीं गल पा रही है। इसका श्रेय अमित शाह की कामयाब रणनीति को दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जुगलबंदी से समूचा देश वाकिफ हैं।

मोदी और शाह के बीच हमेशा से मधुर संबंध रहे हैं। दोनों राजनेता न सिर्फ एक-दूसरे का भरपूर सम्मान करते हैं बल्कि विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए मिलकर काम भी करते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के गृहमंत्री होने के नाते शाह के पास असीम पावर है। इसके बावजूद अपनी पावर का वह कभी गलत इस्तेमाल करते नहीं देखे गए हैं। राजनीतिक विरोधी बेशक उनके खिलाफ तीखे जुबानी हमले करें, मगर वह कभी आपा नहीं खोते। शाह को यदा-कदा आक्रामक मुद्रा में देखा गया है। आमतौर पर वह बेहद शांत स्वभाव के नजर आते हैं।

जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां सत्ता पक्ष के खिलाफ यदि विपक्ष आक्रामक बयानबाजी कर दे तो तुरंत गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज कर दी जाती है। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में देखने को मिला है। जहां निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति पर उद्धव ठाकरे सरकार ने संगीन धाराओं में केस दर्ज कराकर गिरफ्तार करा दिया था। राणा दंपति ने मातोश्री यानी ठाकरे आवास के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की घोषणा की थी। इसी बात से तिलमिला कर सरकार ने राणा दंपति को प्रताड़ना करना शुरू कर दिया।

इसके विपरित कुछ दिन पहले टीएमसी सांसद ने गृहमंत्री अमित शाह को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया था। सांसद ने कहा था कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री आवास पर भी बुलडोजर चलाया जाना चाहिए। इस बयान की तीखी आलोचना की गई थी। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह का रूख शांत रहा। उन्होंने इस मुद्दे को दरकिनार कर दिया। विपक्ष के नेता अक्सर पीएम और गृहमंत्री के प्रति अभद्र टिप्पणी करते रहते हैं। कई नेता मर्यादा की लक्ष्मण रेखा तक लांघ चुके हैं। जिससे शिष्टाचार की राजनीति का मखौल उड़ता है। गृहमंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद से अमित शाह देश को आंतरिक मोर्चे पर मजबूत करने में सफल रहे हैं।

देशविरोधी ताकतों को अब सिर उठाने का मौका नहीं मिल पा रहा है। विभिन्न राज्यों में नक्सलियों पर दबाव बढ़ चुका है। नक्सली अब पहले की भांति सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटवाने में अमित शाह के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता। जम्मू-कश्मीर के हालात पर वह निरंतर नजर बनाए रखते हैं। घाटी में पत्थरबाजी की घटनाएं बिल्कुल बंद हो चुकी हैं। आतंकियों के सफाए का अभियान बदस्तूर जारी है। जहरीले भाषणों के जरिए कश्मीर का माहौल करने वाले नेताओं पर नकेल कसी जा चुकी है।

सफल व्यापारी से कुशल राजनेता बने अमित शाह में अथाह खूबियां हैं। वह जो कहते हैं, उसके करके दिखाते हैं। उनके लिए राष्ट्र हमेशा सर्वोपरि रहा है। पिछले दिनों संसद में उन्होंने विपक्ष के उस सवाल का बेवाकी से जवाब दिया था, जिसमें उन पर आरोप लगाया था कि शाह अक्सर विपक्ष के नेताओं पर भड़क जाते हैं। विपक्ष को वह डांटने लगते हैं। इस पर शाह ने कहा था कि वह कभी नेताओं पर ना गुस्सा होते हैं और ना डांटते-फटकाते हैं। दरअसल उनके बोलने का अंदाज जरा ऊंचा है। वह ऊंची आवाज में अपनी बात रखते हैं। यह पैदाइशी समस्या है। शाह के इस बयान पर संसद में खूब ठहाके भी लगे थे।

अमित शाह को 2014 के आम चुनाव में भाजपा के शानदार प्रदर्शन का श्रेय दिया जाता है। उन्हें मोदी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी के रूप में माना जाता है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्य सरकार में कई प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी संभाली थी। अहमदाबाद में अपने कॉलेज के दरम्यान वह आरएसएस स्वयंसेवक बन गए थे। आरएसएस में उनके कार्यकाल के दौरान 1982 में उन्होंने मोदी से मुलाकात की। शाह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत आरएसएस के छात्र संगठन के नेता के रूप में की और 1986 में भाजपा में शामिल हो गए।

वहां उन्होंने भाजपा के प्रमुख कार्यकर्ता के रूप में काम किया और प्रधानमंत्री की राजनीतिक मेज की बगल में अपनी जगह बनाई। शाह की खेलकूद में भी काफी दिलचस्पी है। भाजपा अध्यक्ष का दायित्व भी उन्होंने बखूवी ढंग से निभाया था। कार्यक्रमों में अमित शाह का संबोधन अक्सर भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश पैदा कर देता है। शाह के भाषण को सुनने के बाद भाजपा कार्यकर्ता दोगुने जोश और ऊर्जा के साथ संगठन की मजबूती के काम में जुट जाते हैं।

कार्यकर्ताओं के साथ भी शाह का रिश्ता हमेशा मधुर रहता है। भाजपा को दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल बनाने में अमित शाह ने भी कम ऊर्जा नहीं खपाई है। किसी राज्य में विधान सभा चुनाव होने पर आज भी वह भाजपा के लिए माहौल बनाने में सबसे आगे रहते हैं।