आतंकियों की बौखलाहट और कश्मीरी पंडितों पर हमले

जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों एवं प्रवासियों पर एक बार फिर आतंकी हमले तेज हो गए हैं। इससे घाटी में माहौल निरंतर गरमा रहा है। सरकारी अधिकारी एवं कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या के बाद से देशभर में गम और गुस्सा देखने को मिला है। इस घटना के प्रकाश में आने के बाद हर किसी ने दिवंगत राहुल की आत्मा की शांति की प्रार्थना कर शोक संतृप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना जाहिर की है। इसके अलावा दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की पुरजोर मांग उठ रही है। राहुल भट्ट को असमय खोकर पूरा परिवार बदहवास है। बुजुर्ग पिता की आंखों से आंसू थम नहीं रहे। राहुल की बेवस पत्नी जार-जार कर रो रही है।

राहुल की मासूम बेटी को यह भी मालूम नहीं कि उसके सिर से हमेशा-हमेशा के लिए पिता का साया उठ गया है। वह अपने दादा से बार-बार सिर्फ एक सवाल पूछती रही कि पापा उठ क्यूं नहीं रहे हैं ? सोशल मीडिया पर दिवंगत राहुल भट्ट के पिता और मासूम बेटी की भावुक कर देने वाली फोटो ने हर किसी की आंखों में आंसू ला दिए हैं। इस फोटो में मासूम पोती वृद्ध दादा की आंखों के आंसू पोंछ कर उन्हें ढांढस बंधाती नजर आ रही है। जिस किसी ने भी इस फोटो को देखा, उसने राहुल के हत्यारों को दिल से बद्दुआ जरूर दी होगी। जम्मू-कश्मीर के बडगाम में तहसीलदार के दफ्तर में घुसकर कुछ आतंकियों ने राहुल को निशाना बनाया था।

जहां राहुल बतौर राजस्व विभाग के अधिकारी के तौर पर काम कर रहे थे। आतंकियों ने उन्हें दिनदहाड़े गोली मार दी थी। बाद में हत्यारे आराम से चहल-कदमी करते वहां से चले गए। गंभीर रूप से घायल अधिकारी को आनन-फानन में नजदीक के निजी अस्पताल में ले जाया गया। जहां उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। राहुल भट्ट हत्याकांड के बाद यह बात एक बार फिर साफ हो चुकी है कि बौखलाहट में आतंकी घाटी को अशांत रखने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। सुरक्षा बलों को उकसाने और आतंक फैलाने के लिए कश्मीरी पंडितों और प्रवासियों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। हालाकि सुरक्षा बल की तरफ से आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब मिल रहा है।

सरकारी अफसर राहुल भट्ट की हत्या के बाद उनके परिवार की तरफ से भी तीखी प्रतिक्रिया सुनने को मिली है। राहुल की पत्नी ने हत्यारों को घसीट-घसीट कर मारने की मांग उठाई है। इसके अतिरिक्त घाटी में सरकारी सेवा में कार्यरत कश्मीरी पंडितों ने भी विरोध-प्रदर्शन किया है। केंद्र सरकार एवं जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के खिलाफ नारेबाजी तक की गई। कश्मीरी पंडितों की पीड़ा यह है कि उन्हें पर्याप्त सुरक्षा देने में केंद्र सरकार और कश्मीर प्रशासन ठोस कदम नहीं उठा रहा है। इसके चलते उन्हें जान हथेली पर रखकर अपना जीवन यापन करना पड़ रहा है। वैसे पिछले कुछ साल में जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में कमी देखने को मिली है।

सक्रिय आतंकियों की संख्या भी महज 150 रह गई है, मगर सीआरपीएफ के मुताबिक इस ट्रेंड में चिंता का विषय ये है कि 60 फीसदी से ज्यादा कश्मीरी मूल के आतंकी हैं। यानी की वह स्थानीय हैं। वहीं, 85 विदेशी मूल के आतंकी बताए जा रहे हैं। जिनके सफाए के लिए सुरक्षा बल दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दरअसल सुरक्षा बलों पर दुश्मन कभी सामने से वार नहीं करता। वह पीछे से अथवा भीड़ का फायदा उठाकर हमला कर भागने की फिराक में रहता है। यानी दुश्मन में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह भारतीय सुरक्षा बलों के सामने आकर सीधी लड़ाई लड़ सके।

5 अगस्त 2019 को नरेंद्र मोदी सरकार ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 और 35ए को निरस्त कर दिया था। सरकार ने दावा किया था कि कश्मीर में अब सब कुछ ठीक हो जाएगा. मगर हालात अब तक पूरी तरह से सुधर नहीं पाए हैं। पिछले कुछ समय से देशभर में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स काफी चर्चाओं में है। फिल्म ने कमाई का रिकॉर्ड भी कायम किया है। इस फिल्म पर सियासत भी खूब गरमा रही है। इसके बावजूद कश्मीर पंडित और बाकी कश्मीरी हिंसा की चपेट से आजाद नहीं हो पा रहे हैं।

राइट टू इंफॉरमेशन एक्टिविस्ट पी.पी. कपूर ने पिछले साल जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के कार्यालय में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हिंसा, माइग्रेशन और पुनर्वास के अलग-अलग पहलुओं के विषय में जानने के लिए एप्लीकेशन दायर की थी। दायर सूचना के जवाब में पाया गया है कि हिंसा या हिंसा की धमकी के कारण कश्मीर घाटी से पलायन करने वाले 1.54 लाख नागरिकों में से 88 प्रतिशत हिंदू थे। जबकि 1990 के बाद से हिंसा की वजह से सबसे ज्यादा दूसरे धर्म के नागरिकों की जान गई है। बहरहाल जम्मू-कश्मीर में पंडितों और प्रवासियों की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए पुन: चिंतन-मनन करना होगा। आतंक के खिलाफ प्रत्येक कश्मीरी को आगे आने की जरूरत है।