देश में कचरे से ऊर्जा का उत्पादन समय की जरूरत

लेखक- राकेश कुमार भट्ट

(लेखक सामाजिक विश्लेषक है। डेढ दशक से प्रकृति, पर्यावरण और मानव संसाधन प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हुए है और कई शोध पत्र तैयार किया है। इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

दुनिया के सबसे तेजी से उभरते विकासशील देशों में से भारत एक है। इस प्रकार के तीव्र विकास को प्रगति के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो आगे चलकर भारत को ऊर्जा का राष्ट्र बना सकता है। ज्यादातर भारतीय शहर कचरा प्रबंधन एवं जीवाश्मी-ईंधन से होने वाले उत्सर्जन की समस्या से ग्रस्त हैं, जो कि न सिर्फ पर्यावरण किंतु हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं। ऊर्जा के उत्पादन के लिए ठोस कचरे को गैस में परिवर्तित किया जा सकता है। हम लैंडफिल में पाए जाने वाले ठोस कचरे को जलाकर बिजली पैदा कर सकते हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए हम एक तरफ नगर पालिका द्वारा एकत्रित कचरे के पुन: यथाचित प्रयोग पर काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ, जीवाश्मी-ईंधन से होने वाले प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए सौर और वायु जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दे सकते हैं।

वर्तमान में भारत मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। भारत का तीव्र विकास न केवल अपने संसाधनों पर भारी दबाव डाल रहा है बल्कि उस पर खर्च करने को मजबूर कर रहा है। इस विकास प्रक्रिया के कुछ दुष्परिणाम भी हैं। जैसे कचरे का उत्पादन। 1.2 अरब की आबादी, प्रतिदिन 0.5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति अपशिष्ट पैदा कर रही है। इस तरह का कचरा न केवल संसाधनों को खा जाता है बल्कि खर्च की भी मांग करता है। इससे अर्थव्यवस्था और राष्ट्र का पतन हो सकता है। बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और जीवन के पैटर्न में बदलाव, जो आर्थिक विकास की प्रक्रिया के साथ होते हैं, कचरे की बढ़ती मात्रा को जन्म देते हैं, जिससे पर्यावरण के लिए खतरा बढ़ जाता है।

हाल के वर्षों में ऐसी प्रौद्योगिकियां विकसित की गई हैं जो न केवल पर्याप्त मात्रा में विकेंद्रीकृत ऊर्जा पैदा करने में मदद करती हैं बल्कि इसके सुरक्षित निपटान के लिए कचरे की मात्रा को कम करने में भी मदद करती हैं। ऊर्जा आपूर्ति और अपशिष्ट प्रबंधन ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिनका सामना मनुष्यों ने सहस्राब्दियों से किया है। भविष्य में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, अर्थव्यवस्था में प्रगति करना आवश्यक है। जहां प्रत्येक परमाणु का सर्वोत्तम संभव तरीके से उपयोग किया जाता है। शहरी भारत में सालाना 62 मिलियन टन (एमएसडब्ल्यू) (म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट) कचरा उत्पन्न होता है, और यह भविष्यवाणी की गई है कि यह 2030 में 165 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। 43 मिलियन टन म्युनिसिपल ठोस कचरा सालाना एकत्र किया जाता है, जिसमें से 31 मिलियन लैंडफिल साइटों में डंप होता है। सिर्फ 11.9 मिलियन का इलाज किया जाता है। अपशिष्ट से ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का एक प्रमुख मुद्दा है। ऊर्जा प्रणाली के दृष्टिकोण से, अपशिष्ट से ऊर्जा कम कार्बन वाले समाज के विकास में योगदान देगा। हम हर दिन पैदा होने वाले कचरे को कुछ अच्छे में बदल सकते हैं। जैसे बिजली, गर्मी या ईंधन, पॉवर में। ऊर्जा के उत्पादन के लिए ठोस कचरे को गैस में परिवर्तित किया जा सकता है। किंतु क्या एक ऐसा समाधान संभव है जो इन दोनों समस्याओं को एक साथ सुलझाने में सक्षम हो? भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान मुंबई के प्रोफेसर प्रकाश घोष एवं उनके सह-वैज्ञानिकों ने इस जटिल समस्या का समाधान करने का प्रयत्न कर एक ऐसे माइक्रोबियल ईंधन सेल (एम. एफ. सी.) की रचना की है, जो भू-भरण स्थलों से कचरे से रिसने वाले द्रव्य का उपयोग कर ऊर्जा उत्पादन करने में सक्षम है।

संक्षेप में ऊर्जा और पर्यावरण दोनों मानकों के लिए और विशेष रूप से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिए अपशिष्ट से ऊर्जा को सर्वोत्तम अपशिष्ट प्रबंधन विकल्प के रूप में प्रदर्शित किया गया है। स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण शहरी बस्तियों के पास बनाए जाने के लिए डब्ल्यूटीई सुविधाओं को हमेशा सार्वजनिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञों के नोबेल पुरस्कार विजेता स्वतंत्र पैनल, इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपशिष्ट से ऊर्जा को एक प्रमुख ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन शमन प्रौद्योगिकी के रूप में मान्यता दी है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने अपनी 2009 की रिपोर्ट, ‘ग्रीन इन्वेस्टिंग: टुवर्ड्स ए क्लीन एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर’ में अपशिष्ट से ऊर्जा की पहचान की है।

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अपशिष्ट से ऊर्जा की क्षमता को संयुक्त राज्य अमेरिका में भी अपनाया गया है। अमेरिकी महापौरों के सम्मेलन ने 2004 में एक संकल्प को अपनाया, जिसमें ग्रीन हाउस गैस में कमी से ऊर्जा के लिए अपशिष्ट के लाभों को मान्यता दी गई थी। कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीट्यूट द्वारा बुलाई गई ग्लोबल राउंडटेबल ऑन क्लाइमेट चेंज (जीआरओसीसी) ने 20 फरवरी 2007 को एक बयान जारी किया, जिसमें बिजली उत्पादन क्षेत्र द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने और लैंडफिल से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के साधन के रूप में ऊर्जा के लिए अपशिष्ट की पहचान की गई।

ऊर्जा समस्याओं के समाधान के रूप में हम न केवल कचरे की मात्रा को कम कर सकते हैं, बल्कि उसी से ऊर्जा का उत्पादन भी कर सकते हैं, इस प्रकार अपशिष्ट प्रबंधन के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। भारत में ऊर्जा के लिए अपशिष्ट की वर्तमान स्थिति, नगर पालिका ठोस अपशिष्ट के प्रबंधन में शामिल निर्णय निर्माताओं, योजनाकारों और निकायों को वर्तमान स्थिति को समझने और भविष्य की चुनौतियां के पहलुओं को कम कर सकते हैं। अपशिष्ट से ऊर्जा, अक्षय र्इंधन स्रोत से स्वच्छ, विश्वसनीय ऊर्जा उत्पन्न करती है, अपशिष्ट से ऊर्जा के अवसर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में मौजूद हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक अध्ययन के अनुसार भारत के लगभग आधे अपशिष्ट से ऊर्जा (डब्ल्यूटीई) संयंत्र, जो गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे को परिवर्तित करने के लिए हैं, निष्क्रिय हैं।

बंद होने के प्रमुख कारण मिश्रित ठोस कचरे को संभालने में संयंत्रों की अक्षमता और उनके द्वारा उत्पन्न बिजली की उच्च लागत है, जो इसे बिजली कंपनियों के लिए अनाकर्षक बनाती है। पिछले कुछ साल के दौरान देश में कचरा प्रबंधन की रणनीति में काफी बदलाव आया है। मौजूदा नीति की बात करें तो केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) 2.0 में कचरे को अलग-अलग करने, सूखे और गीले कचरे का प्रसंस्करण करने और कचरा फेंकने के लिए निर्धारित लैंडफिल साइट पर भेजे जाने वाले कचरे को न्यूनतम करने का प्रावधान किया गया।

अपशिष्ट से ऊर्जा अभी भी भारत में एक नई अवधारणा है। नगर निगमों एवं शहरी स्थानीय निकायों द्वारा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 के अनुपालन के निम्न स्तर को देखते हुए, अलग-अलग नगर पालिका ठोस अपशिष्ट आमतौर पर संयंत्र स्थल पर उपलब्ध नहीं होते हैं, जिसके कारण अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों की अनुपलब्धता होती है। नगर निगमों एवं शहरी स्थानीय निकायों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी, भूमि आवंटन, कचरे की आपूर्ति और बिजली खरीद एवं निकासी सुविधाओं के संबंध में राज्य सरकारों से अनुकूल नीति दिशा-निर्देशों का अभाव है।

इसके लिए शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को समयबद्ध दृष्टिकोण के भीतर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) नियम-2016 के अनुसार अपशिष्ट प्रबंधन पर एक कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए और अपशिष्ट प्रबंधन के प्रमुख तत्वों को बढ़ावा देना और अपनाना चाहिए। अपशिष्ट प्रबंधन के प्रमुख तत्वों, स्रोत पर अलगाव, जागरूकता फैलाने, शहर के लिए विकेंद्रीकृत प्रौद्योगिकियों को अपनाकर कचरा प्रबंधन के लिए एक कार्ययोजना तैयार करने पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है। यह न केवल डब्ल्यूटीई की प्रभावशीलता में सुधार करेगा, बल्कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) में परिकल्पित हमारे पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार भी सुनिश्चित करेगा।