पिछले 7 साल में ज्यादा बिगड़े देश के हालात

लेखक : श्याम कुमार मित्तल
रिटायर्ड राजस्व अधिकारी
उद्यमी एवं समाजसेवी
(लेखक रिटायर्ड राजस्व अधिकारी हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)

देश में राजनीति का स्तर गिर रहा है। पिछले 7 साल में हालात काफी बिगड़े हैं। भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को बढ़ावा मिला है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मोदी सरकार सफल नहीं हो पाई है। भ्रष्टाचार बढ़ने और आपसदारी खत्म होने से नुकसान हो रहा है। जो काम कभी सिर्फ 200 रुपए में करा लिया जाता था, वह आज 20 हजार में हो रहा है। इससे भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है। पहले आपसदारी के जरिए काम आसानी से करा लिए जाते थे। आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। सही बात कोई सुनने को राजी नहीं है।

सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की वजह से आमजन की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। बेरोजगारी भी सुरसा के मुंह की तरफ निरंतर बढ़ रही है। रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं हो रहे बल्कि पुराने रोजगार भी धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। एमएसएमई और मजदूर भी संकट में हैं। देश में एमएसएमई पर रोजगार की बड़ी जिम्मेदारी है। वर्तमान में एमएसएमई खुद संकट में फंसा है। माल खरीदने के लिए पैसा नहीं है। छोटे एवं लघु उद्योगों का संचालन मुश्किल हो गया है। एमएसएमई को संकट से उबारने के लिए सरकार की तरफ से कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

वित्तीय वर्ष 2022-23 के आम बजट में एमएसएमई सेक्टर को कुछ नहीं मिल पाया है। इसके चलते उद्यमियों की चिंता और बढ़ गई है। कोरोना काल में पलायन कर चुके मजदूर वापस नहीं लौट रहे हैं। आर्थिक तंगी के कारण उद्योग धंधे लगाातर बंद हो रहे हैं। मोदी और योगी सरकार के खिलाफ माहौल तेजी से बन रहा है। हर वर्ग दोनों सरकारों से बुरी तरह त्रस्त है। 7 साल के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान मोदी के आर्थिक आंकड़ें बेहद फीके रहे हैं। कोरोना महामारी ने इसे और खराब कर दिया और अर्थव्यवस्था का उम्मीद से भी खराब प्रदर्शन जारी है। पीएम मोदी ने वादा किया था कि वह 2025 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन डॉलर की बना देंगे।

उनका यह सपना अब पाइप लाइन में अटका नजर आता है। क्योंकि मुद्रास्फीति के बाद देश की अर्थव्यवस्था तीन लाख करोड़ डॉलर ही पहुंच पाएगी। पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान भारत बांग्लादेश जैसे छोटे प्रतिद्वंद्वी से भी तेजी से मार्केट शेयर हार चुका है। बांग्लादेश ने तेजी से वृद्धि दर्ज की है और खासकर निर्यात के मामले में जो उसके श्रम प्रधान वस्त्र उद्योग पर टिका हुआ है। इसके अलावा खर्चे बढ़ रहे हैं और टैक्स या निर्यात से उतनी कमाई नहीं हो पा रही है। सरकार स्वास्थ्य सेवा को निरंतर नजरअंदाज कर रही है।

दुनिया में भारत ऐसे देशों में शामिल है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर सबसे कम सार्वजनिक धन खर्च किया जाता है। आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को सत्ता में आने के बाद से अब तक की सबसे खराब रेटिंग मिली है। एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। उधर, महंगाई की वजह से ज्यादातर नागरिकों को अपने खर्च प्रबंधन में भी मुश्किल हो रही है। अधिकांश नागरिक अपने खर्र्चों का प्रबंधन करने में मुश्किलों का सामना करने को विवश हैं। महामारी की वजह से वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी श्रेणी के आम आदमी की आय बुरी तरह प्रभावित हुई है।

इस दौरान आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई और व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ा। क्षेत्रों में कई कंपनियों और प्रतिष्ठानों ने महामारी और अंतत: लॉक डाउन के कारण वेतन में कटौती और छंटनी का सहारा लिया। आमजन के लिए महंगाई पिछले साल एक प्रमुख चिंता का विषय रही। देश में पेट्रोल-डीजल एवं रसोई गैस के दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं। इसका असर घर की रसोई से लेकर कारोबार तक पर पड़ा है। ज्वलंत एवं जरूरी मुद्दों पर चर्चा करने की बजाए सरकार बेवजह के मामले उठाकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।

सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया जा रहा है। सरकार के खिलाफ आवाज उठाने पर विपक्षी नेताओं और नागरिकों को प्रताड़ित कर जेल में डाल दिया जाता है। तीन नए कृषि कानूनों को जबरन देश पर थोपने की कोशिश की गई। यदि किसानों ने हुंकार न भरी होती तो आज तीनों काले कानून अमल में ला दिए गए होते। योगी सरकार की नीतियां भी पूर्णत: जनविरोधी हैं। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के रूखसत करने का समय आ गया है। परेशान जनता अब मतदाधिकार के जरिए अपनी नाराजगी को व्यक्त करेगी।